ओवेसी का समर्थन क्यो करती है युवा पिढी? New Generation and Owasi

युवा क्यो करते है ओवेसी का समर्थन ? बिहार मे एम आय एम को किस तरह मिली ५ सीट 

 

देश - भारत देश आझाद हो कर तकरीबन ७० साल से भी ज्यादा हो गए. जबसे देश आझाद हुआ तबसे अब तक भारत का मुस्लीम समाज कॉंग्रेस और उसके घटक पक्ष के जीत का भागीदार रहा है. भारत का मुस्लीम कॉंग्रेस और घटक पक्ष को ये सोच कर मतदान करता है की ये धर्म निरपेक्ष पार्टीया है. लेकीन हर राज्यमे प्रादेशिक पक्ष है कूछ कॉंग्रेस के सात है तो कूछ बीजेपी के साथ है. मुस्लीम समाज कॉंग्रेस के साथ खुदको सुरक्षीत महेसुस करता था. लेकीन कूछ इस तऱ्ह के हालत देश मे बन गए या बना दिए गये की उस वक़्त  मुस्लीम समाज को ये सोचने का मौका मिला की  जिस पक्ष और उसके घटक को हम साथ दे रहे है क्या वो हुमारे साथ है या हुमारा इस्तेमाल कर रहा है. १९९२ का बाबरी मसला हो, २००४ की गुजरात दंगल, या आए दिन जात के नाम पर मुस्लीम और दलीत युवाओ की सरेआम हत्या या मुस्लीम और दलीत महिलाओ के इज्जत के साथ खेलना इसी के साथ ६५,०००  से भी ज्यादा मुस्लीम नौजवान को उच्च शिक्षा हासील कर रहे थे उन्हे आतंकवाद और दहेशतवाद के नाम पार सलाखो के पिछे डाला गया जो आज दस दस साल बाद निर्दोष रिहा हो रहे है

            इसीके के साथ २००५ मे सच्चर समितीने खुलासा कर दिया की देश के आझादी के बाद मुस्लीम समाज की हालत बद से बदतर हुई है. और इस समाज को मुख्य प्रवाह मे  लानेके के लिए इन्हे आरक्षण, स्वरक्षण,शिक्षण बहुत जरुरी है. सच्चर कमिटी के बाद रहेमानिया कमेटी, गुंडू कमेटी और न जाने कितने कमिटी बनी और सबने ये सुजाव दिया की मुस्लीम समाज को मुख्य प्रवाह मे लाया जाए. 

            २००५ मे केंद्र मे यु पी ए की सरकार थी. पुरे देश से सच्चर कमिटी लागू करणे की मांग के बावजुत उसे अंमल मे नही लाया गया. अब देखने वाली बात ये है की यु पी ए और कॉंग्रेस को सच्चर कमिटी लागू करनेसे किसने रोखा? कॉंग्रेस ने क्यो लागु नही किया ? जो समाज कॉंग्रेस के साथ आझादी से पहेले भी था और बादमे भी है फिर ऐसी क्या मजबुरी थी की मुस्लीम समाज को मुख्य प्रवाह मे आने से रोखा गया?

        २०१२ तक एम आय एम पक्ष और पक्ष अध्यक्ष यु पी ए गाठबंदन से जुडे रहे. २०१२ तक एम आय एम यु पी का हिस्सा रही लेकीन उसके बाद एम आय एम के अध्यक्ष खासदार असदुद्दिन ओवेसी ने यु पी ए से बहार निकाल कर अपनए पक्ष का विस्तार करने का फैसला किया और तभी से कॉंग्रेस और यु पी ए के घटक पक्ष एम आय एम और ओवेसी को बीजेपी के एजंट बताकर मुस्लीम समाज को घुमराह करने मे लगे है. ऐसा लगता  है कॉंग्रेस को ये बात गवरा नही की मुस्लीम और दलीत जो सालो से उन्हे वोट डालते आ राहे है वो ओवेसी और उनकी पार्टी के साथ जाए. कॉंग्रेस ने तो मुस्लीम समाज को वोट बँक के अलावा कूछ समजा नही?

        २०१२ के बाद जैसे ही एम आय एम हैदराबाद से बार निकाली तो उन्हे महाराष्ट्र की जनता ने साथ देकर नांदेड जैसे इलाके से ११ नगरसेवक चुनकर दिया और एम आय एम की एन्ट्री महाराष्ट्र मे होगायी. २०१४ के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मे जनता ने एम आय एम के २ आमदार को महराष्ट्र विधान सभा मे भेजा और ये सिलसिला चालू रहा औरंगाबाद महानगर पालीका, धुलिया, बीड,उस्मानाबाद, जैसे इलाको मे  एम आय एम ने जीत दर्ज कर बतादिया कि अब जनता को परियाय की जरुरत है और एम आय एम  एक बहेतरीन विकल्प है,

        २०१९ के लोकसभा चुनाव मे औरंगाबाद से खासदार इम्तियाज जलील को जीत हासील होनेके कारन युवा पिढी मे एक जोश का वातावरण निर्माण हुआ. महाराष्ट्र विधानसभा मी २०१९ मी २ आमदार के बाद अब बिहार मे  एम आय एम को  सिमंचाल जैसे इलाके से   ५ जगह जीत हासील हुई.                                    

        सवाल ये है जो सिमंचाल कॉंग्रेस और आर जे डी को हमेशा साथ देता था ऐसा क्या हुआ की एम आय एम के साथ जाना पसंद किया. क्या उन्हे अब कॉंग्रेस पर भरोसा नही रहा? सिमंचाल मे आज भी कोई विकास नही है जिस सिमंचाल ने केंद्र और राज्य के पक्ष को सालो साल वोट डाले आज वो ये सोचने पर मजबूर है की उनका विकास क्यो नही हुआ? बिहार मे एम आय एम की जीत ने ये साबीत कर दिया की अब युवा विकास चाहती है उन्हे बदलाव चाहिए , उन्हे राजनीती के परे अपना ,अपने समाज का, अपने  प्रभाग का, अपने राज्य का,अपने देश का विकास चाहिये और ये https://www.videosprofitnetwork.com/watch.xml?key=8918e3ebc1d8b81261ae6dde0667357dउम्मीद सिमंचाल की जनता को एम आय एम और उनके पार्टी अध्यक्ष खासदार असदुद्दिन ओवेसी ने दिलाई है. जिस तऱ्ह महाराष्ट्र के बाद बिहार मे एम आय एम उभर रही है और देश का युवा पिढी एम आय एम के साथ जुड रहा है तो सबसे ज्यादा परेशानी कॉंग्रेस को हो रही है ऐसा लगता है. कॉंग्रेस ने बिहार चुनाव मे अपने सबसे बडे विरोधी बीजेपी को छोड एम आय एम पर निशाना सदा और एम आय एम को बीजेपी का एजंट बतानेमे अपनी सारी मेहनत व्यर्थ की. हर प्रचार सभा मे कॉंग्रेस बीजेपी से ज्यादा एम आय एम पार निशाना सादती रही. जैसे उन्हे बीजेपी से ज्यादा एम आय एम का खतरा है. साहजिक है जिस समाज की मदत से कॉंग्रेस इतने साल सत्ता मे टीकी रही उस समाज का अपने पास से खिसक जाने का दर उन्हे ये बुलवा रहा है.       

       हर समाज का नवजवान अब ओवेसी का साथ दे रहा है आने वाले दिनोमे बंगाल, उत्तर प्रदेश और जहा जहा चुनाव होंगे वाहपर एम आय एम चुनाव मैदान मे उतरेंगी ये फैसला एम आय एम अध्यक्ष असदुद्दिन ओवेसी ने लिया है. 

        एम आय एम को ये उम्मीद है जिस तरह महाराष्ट्र और बिहार की जनता ने उन्हे अपनाया है उसी तरह बंगाल और उत्तर प्रदेश की जनता भी उन्हे अपनायेंगी.अब असदुद्दिन ओवेसी के साथ देश की राजनीती मे उनका साथ देने औरंगाबाद के खासदार इम्तियाज जलील भी मैदान मे है.  खासदार इम्तियाझ जलील ने कहा है की कॉंग्रेस अपना आत्मपरीक्षण करे और एम आय एम पर अपनी नाकामियो का ठिकरा फोडण बंद करे. 

        बिहार सिमंचाल मी जहा जहा एम आय एम ने अपने उमिदवार मैदान मी उतारे थे ऐसा एक भी विधानसभा शेत्र नही है जहा कॉंग्रेस या आरजेडी एम आय एम के कारन हारे है.    


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ऑल इंडिया मुस्लिम OBC ऑर्गनायझेशनच्या महासचिव पदी- हाजी इर्शादभाई...

अब सारा गुस्सा ओवेसी पर?...

महाराष्ट्र के बाद अब बिहार मे एम आय एम की धूम ....

औरंगाबादचे खासदार इम्तियाज जलील यांची जादू औरंगाबाद सोडून आता बिहारमध्येही.....

  

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ऑल इंडिया मुस्लिम OBC ऑर्गनायझेशनच्या महासचिव पदी- हाजी इर्शादभाई

 हाजी इर्शाद अशरफी यांची निवड 


महाराष्ट्र - ऑल इंडिया मुस्लिम OBC ऑर्गनायझेशन या शासन मान्य नोंदणीकृत संघटनेच्या महासचिव पदी हाजी इर्शादभाई यांची नियुक्ती करण्यात आली असल्याची माहिती महाराष्ट्र शासन OBC आयोगाचे मा. सदस्य व संघटनेचे राष्ट्रीय अध्यक्ष हाजी शब्बीर अंसारी यांनी पुणे येथे दिली आहे. 

        हाजी इर्शादभाई हे राष्ट्रवादी काँग्रेस पक्षाचे प्रदेश उपाध्यक्ष असून त्यांना अनेक पुरस्कारांनी सन्मानीत करण्यात आले आहे. 

           https://www.videosprofitnetwork.com/watch.xml?key=8918e3ebc1d8b81261ae6dde0667357d" हाजी इर्शादभाई यांचे नियुक्ती मुळे संघटनेस बळ मिळून मुस्लिम समाजाचे प्रश्न सोडविण्यासाठी चालना मिळेल "असा विश्वास राष्ट्रीय अध्यक्ष हाजी शब्बीर अंसारी यांनी व्यक्त केला आहे. 

           " मुस्लिम समाजाच्या जात दाखल्या संदर्भातील प्रश्न, आरक्षण, वक्फ प्रॉपर्टी संदर्भातील प्रश्न यांसाठी सनदशीर मार्गाने लढा देऊन प्रश्न मार्गी लावण्यासाठी प्रयत्न करणार असल्याचे हाजी इर्शादभाई यांनी सांगितले. 

         यावेळी संघटनेचे पुणे जिल्हा अध्यक्ष जब्बारभाई शेख, मुस्लिम बँकेचे संचालक इम्तियाज शिकीलकर, ऑल इंडिया उलमा बोर्ड ( लिगल सेल) चे प्रदेशाध्यक्ष अॅड .सुफीयान शेख, संविधान साक्षरता अभियानचे प्रमुख अलीम वजीर पटेल, वक्फ फोर्सचे अनवर शेख, अॅड. साजिद शेख, फैयाज सय्यद, अकीलभाई आतार, सरवर पठान आदि मान्यवर उपस्थित होते.

 

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मखदुम सोसायटी च्या वतीने मौलाना आजाद यांना अभिवादन.... 

अर्णब गोस्वामी की याचीका पर इतने जल्द सूनवाई क्यो? ....

क्या है ई वी एम का राझ?....

अब सारा गुस्सा ओवेसी पर?..

अर्णब गोस्वामी की याचीका पर इतने जल्द सूनवाई क्यो? Arnab Goswami

सुनवाई की इतनी जल्द क्यो?



वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने सुप्रीम कोर्ट से अरनब गोस्वामी के मामले की जल्द सुनवाई की आलोचना की है।उन्होंने इसे प्रशासनिक ताक़त का गलत इस्तेमाल बताया है।उन्होंने कहा कि अर्नब की पिटीशन कुछ ही घण्टो में listed हो गयी।क्या वह एक super citizen है? । ज्ञातव्य हो कि अर्नब की याचिका मंगलवार को दायर हुई और बुधवार को को तत्काल इस पर सुनवाई हो गयी।जबकि कोर्ट दीवाली की छुट्टी के लिए बन्द है।बार एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ दुष्यंत दवे ने इस #सेलेक्टिव लिस्टिंग की आलोचना की है और कहा है कि अदालत के सामने सुनवाई के लिए और भी मामले हैं लेकिन इस मामले को प्राथमिकता दी गयी। । दुष्यंत दवे ने ऐसे अनेक मामलों का ज़िक्र किया जीनमे लंबे समय से हिरासत में रखे जाने के बाद भी या तो सुनवाई की तारीख नही मिली या बहुत विलंब किया गया । प्रशांत भूषण ने कहा कि जब CAA ,हैबियस कॉर्पस ,इलेक्टोरल बांड जैसे मामले कई महीनों तक सूचीबद्ध नही होते ,तो अर्नब गोस्वामी की याचिका कुछ ही घण्टो में सूचीबद्ध कैसे हो जाती है! क्या अर्नब सुपर सिटीजन है? . दुष्यंत दवे ने कहा कि ज़मानत और सुनवाई का हक़ सबको है ।उन्होंने कहा, "ये अदालत की गरिमा का सवाल है, किसी भी नागरिक को ये नहीं लगना चाहिए कि वो दूसरे दर्जे का है, सभी को ज़मानत और जल्द सुनवाई का हक़ होना चाहिए, सिर्फ़ कुछ हाई प्रोफाइल मामलों और व़कीलों को नहीं." दुष्यंत दवे ने यह भी कहा, "ज़मानत और सुनवाई का हक़ ऐसे सैंकड़ों लोगों को नहीं दिया जा रहा, जो सत्ता के क़रीब नहीं हैं, ग़रीब हैं, कम रसूख़वाले हैं या जो अलग-अलग आंदोलनों के ज़रिए लोगों की आवाज़ उठा रहे हैं, चाहे ये उनके लिए ज़िंदगी और मौत का सवाल हो." । कुछ भी हो ,अर्नब मामले में साहसी तबका सवाल उठा रहा है और इन सवालों का जवाब #देश_पूछ्ता_है 
https://dangerprickly.com/azp33ctwgz?key=f5e461ccbeb850c3df0b07f34593b0c2By,
 Mohammad Arif Dagia 

ये भी देखे-

क्या है ई वी एम का राझ? Is EVM can be hacked

 ई वी एम का राझ?


मैं यह दावा तो नहीं करता कि ईवीएम हैक हो सकती है या नहीं लेकिन इतना जरूर कहूंगा कि आजतक इसकी पारदर्शिता पर सवाल बरकरार है। ईवीएम के खिलाफ सबसे पहले बीजेपी ही कोर्ट गई थी। सुब्रमण्यम स्वामी 2014 से पहले ही ईवीएम के खिलाफ एक बड़ी लड़ाई लड़ चुके हैं। सबसे पहले ईवीएम पर किताब बीजेपी ही लेकर आई थी।


बीजेपी के वरिष्ठ नेता नितिन गडकरी जी ने इस किताब का विमोचन किया था। किताब का नाम था "लोकतंत्र खतरे में हैं" क्या हम ईवीएम पर भरोसा कर सकते हैं? फोटो साथ में हैं। यह सच है कि समय के साथ साथ वीवीपीएटी व कई अन्य उपकरण आदि की व्यवस्था जरूर की गई लेकिन अबतक कोई खुलकर न इसके विरोध का साहस जुटा सके हैं और न खुलकर समर्थन कर सके हैं। 


ईवीएम हैकिंग पर अबतक तो कई किताबें, पत्रिकाएं, खुलासे, एक्सपर्ट राय आदि सामने हैं पर सवाल का जवाब आज भी नहीं मिला कि क्या हम ईवीएम पर भरोसा कर सकते हैं? बिहार चुनाव में कहीं भी एनडीए के पक्ष में जनसमूह नहीं था। एग्जिट पोल व उसके बाद की बातें और शुरुआती रुझान तो एक ऊपरी हवा है पर इतना फेरबदल हो जाये बात असहज नहीं करती है?


ईमानदारी से कहूं मैँ भी छोटा-मोटा राजनीतिक विश्लेषक हूँ यह फेरबदल सम्भव भी हो सकते हैं पर जनता का रुख इस बार कतई एनडीए के पक्ष में नहीं था। अब आप इसे महज विरोध की मानसिकता समझें या फिर विचार करें कि वाकई कहीं अपारदर्शी तो नहीं? अन्यथा बीजेपी तब यह विवाद क्यों खड़ा करती और अन्य दल अब क्यों करते है?


सवाल सिर्फ देश की राजनीति या सत्तासीन पार्टियों का नहीं बल्कि सम्भावना यह भी हो सकती है कि ये सब अंजान हो और इसमें अंतरराष्ट्रीय ताकतें खेल रहीं हो? कुछ भी सम्भव है क्योंकि हमने पारदर्शिता को नाक की लड़ाई से जोड़ दिया है। यह ईवीएम का विरोध नहीं बल्कि एक पारदर्शी चुनाव प्रक्रिया हेतु बहस है। 


हम यह भी मान लें कि यह एक अपनी हार को अस्वीकार करने का मात्र कारण है तो फिर इसकी पारदर्शिता अबतक संदिग्ध क्यों और यदि इसपर वाकई समस्या है तो बाकि दल चुनाव हो जाने बाद केवल दो दिन ही बातें क्यों करते हैं? फिर अगले पांच सालों तक इसपर क्यों कुछ नहीं बोलते? क्यों अदालत नहीं जाते? आंदोलन नहीं करते? चुनाव बहिष्कार नहीं करते? सवाल ये भी कायम है।

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अब सारा गुस्सा ओवेसी पर?...

शिक्षण दिवस के मौकेपर मौलाना आझाद का बयान ...

आधुनिक शिक्षण व समाज...

मखदुम सोसायटी च्या वतीने मौलाना आजाद यांना अभिवादन - Makdoom Society

मौलाना आझाद शिक्षण विस्ताराचे जनक -शाहिद काझी 



अहमदनगर :- भारताचे पहिले शिक्षणमंत्री मौलाना आझाद यांनी देशाची शैक्षणिक प्रगती व तरुणांना प्रशिक्षणाच्या गरजा लक्षात घेऊन त्यांनी शैक्षणिक धोरण आखले. शिक्षणाला राष्ट्रीय प्रवाहाचे साधन म्हणून त्यांनी अंमलात आणले. व त्यामुळे शिक्षण क्षेत्रात मोठी क्रांती होऊन शिक्षणाचे दारे सर्वांसाठी खुली झाली. त्यामुळे शिक्षण विस्ताराचे जनक म्हणून त्यांच्याकडे पाहिले जाते, असे प्रतिपादन शाहिद काझी यांनी केले.

 मौलाना अबुल कलाम आझाद यांच्या 132 व्या जयंती व राष्ट्रीय शिक्षण दिना निमित्त मखदुम सोसायटी, अल करम सोसायटी, मुस्कान असोसिएशन व अहमदनगर सोशल फाऊंडेशन ट्रस्टच्यावतीने त्यांना अभिवादन करण्यात आले. याप्रसंगी राहिल शेख,अमीन शेख, सैफ शेख,नादिर खान,अँड. अमीन धाराणी, नईम सरदार, आदि उपस्थित होते.

 पुढे बोलताना शाहीद काझी म्हणाले, शिक्षणाचे महत्व विशद करतांना संसदेत मौलाना आझाद म्हणाले होते की, देशाचे अंदाजपत्रकात शिक्षणाला महत्वाचे स्थान देणे गरजेचे आहे. अन्न, वस्त्रानंतर शिक्षणाचा क्रम लावला पाहिजे. त्यांचे असे मत होते की, देशाच्या पंचवार्षिक योजनेचा हेतू केवळ शेती, उद्योग, वीज, दळणवळणाची साधने यांची प्रगती एवढाच असू नये तर देशाच्या नवीन पिढीची जडण घडण योग्य प्रकारे होण्यासाठी शिक्षणाकडेही तेवढेच लक्ष दिले पाहिजे. म्हणूनच सुरुवातीच्या काळात देशाचे शैक्षणिक बजेट दोन कोटीचे होते. ते 1958 साली 30 कोटींचे झाले. शैक्षणिक विकासासाठी त्यांनी ठोस पाऊले उचलली. अनेक नविन शैक्षणिक संस्था निर्माण करुन विकसित केल्या.

 यावेळी शेर अली शेख म्हणाले, 1923 साली अवघ्या 35 व्या वर्षी ते काँग्रेस पक्षाचे सर्वात तरुण अध्यक्ष बनले. धारासना सत्याग्रहाचे ते प्रमुख क्रांतीकारक होते. पुढे 1940-45 या काळात सलग सहा वर्षे ते काँग्रेस पक्षाचे अध्यक्ष राहिले. त्यांच्याच काळात 1942 चे अंग्रेजो भारत छोडो ही चळवळ उभी राहिली. स्वातंत्र्यासाठी एकूण साडे सात वर्षे त्यांनी कारावास भोगला. स्वातंत्र्य लढ्यात सर्वाधिक काळ कारावास भोगण्याचा उच्चांक त्यांच्या नावावर आहे. त्यांच्या आयुष्यातील सरासरी आठवड्यातील एक दिवस कारावासात गेला आहे. 

 कार्यक्रमाचे प्रास्तविक आबीद दुलेखान यांनी तर सूत्रसंचालन तौसिफ तांबोली यांनी केले. आभार सैय्यद समीर यांनी मानले.

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अलकरम सोसायटीतर्फे मौलाना आझाद जयंतीनिमित्त मोतीबिंदू शस्त्रक्रिया शिबीर...

लायनेस क्लब च्या वतीने मानवसेवा येथे फराळ भेट...

मौलाना मुहम्मद बाकीर भारत देश के पहले शहीद पत्रकार ....

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अलकरम सोसायटीतर्फे मौलाना आझाद जयंतीनिमित्त मोतीबिंदू शस्त्रक्रिया शिबीर- EYE CHECKUP CAMP

सामाजिक उपक्रमांमुळे राष्ट्रीय एकात्मतेला बळ मिळते -डॉ.रफिक सय्यद



 अहमदनगर -देशाच्या स्वतंत्र्यासाठी समाजातील प्रत्येक घटकांनी आपल्या जीवनाचा बलिदान देऊन या देशाला स्वातंत्र मिळवून दिले व स्वतंत्र्यानंतर जसाजसा काळ पुढे जात आहे व येणारी नवीन पिढला स्वातंत्र्यासाठी बलिदान देणार्या विषयी गांभिर्य राहिलेले नाही हे दिसून येते. अशावेळी स्वतंत्र्य सेनानी भारतरत्न मौलाना आझाद यांच्या जयंती निमित्ताने सप्ताहाचे आयोजन करुन वेगवेगळे उपक्रम राबविल्याने या उपक्रमांमध्ये समाजातील सर्व घटकांना सामिल करुन घेऊन ते पार पारडणे. अशा उपक्रमांमुळेच राष्ट्रीय एकात्मतेला खर्‍या अर्थाने बळ मिळते, असे प्रतिपादन डॉ.रफिक सय्यद यांनी केले.

         मखदुम सोसायटीच्यावतीने स्वातंत्र्यसेनानी भारतरत्न मौलाना अबुल कलाम आजाद यांच्या जयंतीनिमित्त कौमी एकता सप्ताहाचे आयोजन करण्यात आले आहे. यामध्ये अलकरम सोशल अ‍ॅण्ड एज्युकेशनल सोसायटीच्यावतीने अल-करम मॅटरनिटी हॉस्पिटल येथे आनंदऋषीजी नेत्रालय व फिनिक्स फौंडेशनच्या सहकार्याने मोफत रक्तगट, सर्वरोग निदान तपासणी व सवलतीच्या दरात मोतीबिंदू शस्त्रक्रिया शिबीराचे आयोजन करण्यात आले होते. याप्रसंगी डॉ.रफिक सय्यद, डॉ.रेश्मा चेडे, डॉ.संतोष चेडे, डॉ.रिवाजन अहेमद शब्बीर, डॉ.परवेझ अशरफी, डॉ.जहीर मुजावर, नईम सरदार, फिनिक्सचे जालिंदर बोरुडे आदि मान्यवर उपस्थित होते.

         

यावेळी सुशिल गाडेकर, मिश्रीलाल पटवा यांनी नेत्रतपासणी केली तर राहिल शेख, अमिन शेख यांनी रक्तगट तपासणी केली. प्रास्तविक आबीद दुलेखान यांनी केले . सूत्रसंचालन सय्यद समीर यांनी केले तर आभार तौसिफ तांबोळी यांनी मानले. शिबीर यशस्वीतेसाठी शोएब शेख, इम्रान शेख, शहानवाज तांबोळी, शेरअली शेख, तौसिफ तांबोळी, सय्यद समीर आदिंसह पदाधिकार्‍यांनी परिश्रम घेतले.

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अब सारा गुस्सा ओवेसी पर?...

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मौलाना मुहम्मद बाकीर भारत देश के पहले शहीद पत्रकार...

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अब सारा गुस्सा ओवेसी पर?

अब सारा ग़ुस्सा ओवैसी पर उतारा जायगा।



 

यह ग़ुस्सा ओवैसी पर नहीं है यह ग़ुस्सा इस बात पर है कि कोई मुसलमान पार्टी की हिम्मत कैसे हुई की वो किसी यादव पार्टी, पंडित पार्टी, ठाकुर पार्टी या दलित  पार्टी की बराबरी करे। सभी सेक्युलर पार्टी के लिए सबसे अच्छा मुसलमान वही है जो उनके दरवाजे पर पढे रहेते और इस मुद्रा में हमेशा सभी पार्टियों के दरवाज़े पर बैठा रहे। भाई अगर यादव वोट के बटंने और कटने पर किसी को आपत्ती नहीं है तो मुसलमानों के वोट कटने से क्यों आपत्ती है। ओवेसी की पार्टी बेईमान है धोकेबाज़ है भाजपा की बी नहीं बल्कि ए टीम है। ये प्रचार इतना किया जाता है और उसके लिये जैसे खास टीम रखी गई है. लेकीन इनहे ये कौन बताये की इस हम्माम में कौन नंगा नहीं है। 

अगर यादव अपनी पार्टी बना कर भाजपा काँग्रेस  माकपा में वोट दे सकते हैं तो मुसलमान भी ओवेसी के रहते सबको वोट दे सकते हैं। ओवैसी मुसलमानों को लंगड़ी और बैसाखी वाली राजनीती से बाहर निकाल कर मुख्यधारा में लाते हैं, सभी जातियों से संवाद करते हैं, अपने नए नारे और मुद्दे गढ़ते हैं तो इस बात में ऐसा क्या ग़लत है जिसपर योगेंद्र यादव को सबको ग़ुस्सा है। कल आप कहेंगे मुसलमानों को पढ़ने की किया ज़रूरत है, कांग्रेस और भाजपा के लोग तो पढ़ ही रहे हैं। कल आप मुसलमानों को दुकान खोलने पर एतराज़ करेंगे। फिर आप कहेंगे सौ करोड़ लोग जैसे चाहे रहें लेकिन मुसलमान नागरिक अकेले आदर्शवाद का ढकोसला ढोते रहें।  

एक बात ये भी है की योगेंद्र यादव ये कहें कि हिन्दू वोटर जैसे चाहे बर्ताव करे जहाँ चाहे जाए जैसे चाहे करे लेकिन मुसलमान वोट सिर्फ वैसे ही बर्ताव करे जैसे वह चाहते हैं यह उनकी विज्ञानता नहीं बल्कि वर्चस्ववादिता को समर्थन दिखाता है। मुसलमान को एक बराबर के नागरिक की तरह देखा जाय। अच्छा काम करने में और गलत काम करने में भी। आपको यह पूछना चाहिए कि अगर हिन्दुओं के द्वारा हिन्दुओं के नेतृत्व वाली पार्टियां अगर सम्पर्दायिक नहीं हो सकती तो मुसलमानों के द्वारा मुसलमानों के नेतृत्व वाली राजनितिक पार्टियों पर इतना वावेला किया दर्शाता है। 

अगर ओवेसी अपन एम आय एम पार्टी को पुरे देश मे विस्तार करना चाहते हैं तो ये उनका संवेधानक अधीकार है जो भारत की राज्य घटना ने दिया हैं. इसमे किसी के को नुकसान होतं है तो ये उस पार्टी की जिम्मेदारी होनी चाहिए की वो अपने मातदाता को अपना ना कर सखे 

देश की जनता बदलाव चाहाती है, विकास चाहती है और देश के साथ साथ खुदकी भी उनात्ती बडोतरी चहाती है. अगर बिहार के सिमानचल की जनता को एम आय एम पर विश्वास हैं तो ये एम आय एम की बडी कमियाबी है.

जिस तरह जनता मे एम आय एम का क्रेझ बड रहा है आने वाले बंगाल और उत्तर प्रदेश मे मे भी एम आय एम बहेतरिन प्रदर्शन करेंगी.

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महाराष्ट्र के बाद अब बिहार मे एम आय एम की धूम

औरंगाबादचे खासदार इम्तियाज जलील यांची जादू औरंगाबाद सोडून आता बिहारमध्येही.

चिराग पासवान का क्या था गेम प्लान ?

शिक्षण दिवस के मौकेपर मौलाना आझाद का बयान - MAULANA AZAD

 भारत के पहेले शिक्षण मंत्री - मौलाना अबुल कलाम आझाद 

देश -

    ये स्पीच है मौलाना अबुल कलाम आज़ाद की. जो 1947 में बकरीद के मौके पर दिल्ली की जामा मस्जिद में दी गई. उन्होंने आज़ादी मिलने पर मुसलमानों को उस वक़्त ख़िताब किया. लेकिन उनकी ये बातें पढ़कर ऐसा लगता है जैसे अभी के लिए कही हैं. 

    अबुल कलाम 11 नवंबर 1888 को सऊदी अरब के मक्का में पैदा हुए थे. 22 फ़रवरी 1958 को इस दुनिया से रुखसत हो गए. इस स्पीच (बयान) को अमेरिकन स्कॉलर चौधरी मोहम्मद नईम ने उर्दू में तहरीर किया है. आप इसे हिंदी में पढ़िए. और हर मुसलमान को पढ़नी चाहिए. जो हालत आजतक मुसलमानों के बने हुए हैं वो खुद के बनाये हुए हैं. ये स्पीच बताती है कि जब तक हम खुद को नहीं बदलेंगे, कुछ नहीं हो सकता. चाहे कितनी ही सच्चर रिपोर्टें आती रहें. नेता आते रहें. कोई फर्क नहीं पड़ेगा. तो पढ़िए और सोचिए.  

    मेरे अज़ीज़ो! आप जानते हैं कि वो कौनसी ज़ंजीर है जो मुझे यहां ले आई है. मेरे लिए शाहजहां की इस यादगार मस्जिद में ये इज्तमा नया नहीं. मैंने उस ज़माने में भी किया. अब बहुत सी गर्दिशें बीत चुकी हैं. मैंने जब तुम्हें ख़िताब किया था, उस वक्त तुम्हारे चेहरों पर बेचैनी नहीं इत्मीनान था. तुम्हारे दिलों में शक के बजाए भरोसा था. आज जब तुम्हारे चेहरों की परेशानियां और दिलों की वीरानी देखता हूं तो भूली बिसरी कहानियां याद आ जाती हैं.

    तुम्हें याद है? मैंने तुम्हें पुकारा और तुमने मेरी ज़बान काट ली. मैंने क़लम उठाया और तुमने मेरे हाथ कलम कर दिए. मैंने चलना चाहा तो तुमने मेरे पांव काट दिए. मैंने करवट लेनी चाही तो तुमने मेरी कमर तोड़ दी. हद ये कि पिछले सात साल में तल्ख़ सियासत जो तुम्हें दाग़-ए-जुदाई दे गई है. उसके अहद-ए शबाब (यौवनकाल, यानी शुरुआती दौर) में भी मैंने तुम्हें ख़तरे की हर घड़ी पर झिंझोड़ा. लेकिन तुमने मेरी सदा (मदद के लिए पुकार) से न सिर्फ एतराज़ किया बल्कि गफ़लत और इनकारी की सारी सुन्नतें ताज़ा कर दीं. नतीजा मालूम ये हुआ कि आज उन्हीं खतरों ने तुम्हें घेर लिया. जिनका अंदेशा तुम्हें सिरात-ए-मुस्तक़ीम (सही रास्ते ) से दूर ले गया था.

    सच पूछो तो अब मैं जमूद (स्थिर) हूं. या फिर दौर-ए-उफ़्तादा (हेल्पलेस) सदा हूं. जिसने वतन में रहकर भी गरीब-उल-वतनी की जिंदगी गुज़ारी है. इसका मतलब ये नहीं कि जो मक़ाम मैंने पहले दिन अपने लिए चुन लिया, वहां मेरे बाल-ओ-पर काट लिए गए या मेरे आशियाने के लिए जगह नहीं रही. बल्कि मैं ये कहना चाहता हूं. मेरे दामन को तुम्हारी करगुज़ारियों से गिला है. मेरा एहसास ज़ख़्मी है और मेरे दिल को सदमा है. सोचो तो सही तुमने कौन सी राह इख़्तियार की? कहां पहुंचे और अब कहां खड़े हो? क्या ये खौफ़ की ज़िंदगी नहीं. और क्या तुम्हारे भरोसे में फर्क नहीं आ गया है. ये खौफ तुमने खुद ही पैदा किया है.

    अभी कुछ ज़्यादा वक़्त नहीं बीता, जब मैंने तुम्हें कहा था कि दो क़ौमों का नज़रिया मर्ज़े मौत का दर्जा रखता है. इसको छोड़ दो. जिनपर आपने भरोसा किया, वो भरोसा बहुत तेज़ी से टूट रहा है, लेकिन तुमने सुनी की अनसुनी सब बराबर कर दी. और ये न सोचा कि वक़्त और उसकी रफ़्तार तुम्हारे लिए अपना वजूद नहीं बदल सकते. वक़्त की रफ़्तार थमी नहीं. तुम देख रहे हो. जिन सहारों पर तुम्हार भरोसा था. वो तुम्हें लावारिस समझकर तक़दीर के हवाले कर गए हैं. वो तक़दीर जो तुम्हारी दिमागी मंशा से जुदा है.

    अंग्रेज़ों की बिसात तुम्हारी ख्वाहिशों के ख़िलाफ़ उलट दी गई. और रहनुमाई के वो बुत जो तुमने खड़े किए थे. वो भी दगा दे गए. हालांकि तुमने सोचा था ये बिछाई गई बिसात हमेशा के लिए है और उन्हीं बुतों की पूजा में तुम्हारी ज़िंदगी है. मैं तुम्हारे ज़ख्मों को कुरेदना नहीं चाहता और तुम्हारे इज़्तिराब (बेचैनी) में मज़ीद इज़ाफा करना मेरी ख्वाहिश नहीं है. लेकिन अगर कुछ दूर माज़ी (पास्ट) की तरफ पलट जाओ तो तुम्हारे लिए बहुत से गिरहें खुल सकती हैं.

    एक वक़्त था कि मैंने हिंदुस्तान की आज़ादी का एहसास दिलाते हुए तुम्हें पुकारा था. और कहा था कि जो होने वाला है उसको कोई कौम अपनी नहुसियत (मातम मनाने वाली स्थिति) से रोक नहीं सकती. हिंदुस्तान की तक़दीर में भी सियासी इंक़लाब लिखा जा चुका है. और उसकी गुलामी की जंजीरें 20वीं सदी की हवाएं हुर्रियत से कट कर गिरने वाली हैं. और अगर तुमने वक़्त के पहलू-बा-पहलू क़दम नहीं उठाया तो फ्यूचर का इतिहासकार लिखेगा कि तुम्हारे गिरोह ने, जो सात करोड़ मुसलमानों का गोल था. मुल्क की आज़ादी में वो रास्ता इख्तियार किया जो सफहा हस्ती से ख़त्म हो जाने वाली कौमों का होता है. आज हिंदुस्तान आज़ाद है. और तुम अपनी आंखों से देख रहे हो वो सामने लालकिला की दीवार पर आज़ाद हिंदुस्तान का झंडा शान से लहरा रहा है. ये वही झंडा है जिसकी उड़ानों से हाकिमा गुरूर के दिल आज़ाद कहकहे लगाते थे.

    ये ठीक है कि वक़्त ने तुम्हारी ख्वाहिशों के मुताबिक अंगड़ाई नहीं ली बल्कि उसने एक कौम के पैदाइशी हक़ के एहतराम में करवट बदली है. और यही वो इंकलाब है, जिसकी एक करवट ने तुम्हें बहुत हद तक खौफजदा कर दिया है. तुम ख्याल करते हो तुमसे कोई अच्छी शै (चीज़) छिन गई है और उसकी जगह कोई बुरी शै आ गई है. हां तुम्हारी बेक़रारी इसलिए है कि तुमने अपने आपको अच्छी शै के लिए तैयार नहीं किया था. और बुरी शै को अपना समझ रखा था. मेरा मतलब गैरमुल्की गुलामी से है. जिसके हाथों तुमने मुद्दतों खिलौना बनकर जिंदगी बसर की. एक वक़्त था जब तुम किसी जंग के आगाज़ की फिक्र में थे. और आज उसी जंग के अंजाम से परेशान हो.आखिर तुम्हारी इस हालत पर क्या कहूं. इधर अभी सफर की जुस्तजू ख़त्म नहीं हुई और उधर गुमराही का ख़तरा भी दर पेश आ गया.

    मेरे भाई मैंने हमेशा सियासत की ज्यादतियों से अलग रखने की कोशिश की है. कभी इस तरफ कदम भी नहीं उठाया. क्योंकि मेरी बातें पसंद नहीं आती. लेकिन आज मुझे जो कहना है उसे बेरोक होकर कहना चाहता हूं. हिंदुस्तान का बंटवारा बुनियादी तौर पर गलत था. मज़हबी इख्तिलाफ़ को जिस तरह से हवा दी गई उसका नतीजा और आसार ये ही थे जो हमने अपनी आंखों से देखे. और बदकिस्मती से कई जगह पर आज भी देख रहे हैं.

    पिछले सात बरस के हालात दोहराने से कोई फायदा नहीं. और न उससे कोई अच्छा नतीजा निकलने वाला है. अलबत्ता मुसलमानों पर जो मुसीबतों का रैला आया है वो यक़ीनन मुस्लिम लीग की ग़लत क़यादत का नतीजा है. ये सब कुछ मुस्लिम लीग के लिए हैरत की बात हो सकती है. मेरे लिए इसमें कुछ नई बात नहीं है. मैं पहले से ही इस नतीजे का अंदाजा था.

    अब हिंदुस्तान की सियासत का रुख बदल चुका है. मुस्लिम लीग के लिए यहां कोई जगह नहीं है. अब ये हमारे दिमागों पर है कि हम अच्छे अंदाज़-ए-फ़िक्र में सोच भी सकते हैं या नहीं. इसी ख्याल से मैंने नवंबर के दूसरे हफ्ते में हिंदुस्तान के मुसलमान रहनुमाओं को देहली में बुलाने का न्योता दिया है. मैं तुमको यकीन दिलाता हूं. हमको हमारे सिवा कोई फायदा नहीं पहुंचा सकता.

    मैंने तुम्हें हमेशा कहा और आज फिर कहता हूं कि नफरत का रास्ता छोड़ दो. शक से हाथ उठा लो. और बदअमली को तर्क (त्याग) दो. ये तीन धार का अनोखा खंजर लोहे की उस दोधारी तलवार से तेज़ है, जिसके घाव की कहानियां मैंने तुम्हारे नौजवानों की ज़बानी सुनी हैं. ये फरार की जिंदगी, जो तुमने हिजरत (पलायन) के नाम पर इख़्तियार की है. उसपर गौर करो. तुम्हें महसूस होगा कि ये ग़लत है.

    अपने दिलों को मज़बूत बनाओ और अपने दिमागों को सोचने की आदत डालो. और फिर देखो ये तुम्हारे फैसले कितने फायदेमंद हैं. आखिर कहां जा रहे हो? और क्यों जा रहे हो? ये देखो मस्जिद की मीनारें तुमसे उचक कर सवाल कर रही हैं कि तुमने अपनी तारीख के सफ़हात को कहां गुम कर दिया है? अभी कल की बात है कि यही जमुना के किनारे तुम्हारे काफ़िलों ने वज़ू (नमाज़ से पहले मुंह हाथ धोने का प्रोसेस) किया था. और आज तुम हो कि तुम्हें यहां रहते हुए खौफ़ महसूस होता है. हालांकि देल्ही तुम्हारे खून की सींची हुई है.

     अज़ीज़ों! अपने अंदर एक बुनियादी तब्दीली पैदा करो. जिस तरह आज से कुछ अरसे पहले तुम्हारे जोश-ओ-ख़रोश बेजा थे. उसी तरह से आज ये तुम्हारा खौफ़ बेजा है. मुसलमान और बुज़दिली या मुसलमान और इश्तआल (भड़काने की प्रक्रिया) एक जगह जमा नहीं हो सकते. सच्चे मुसलमान को कोई ताक़त हिला नहीं सकती है. और न कोई खौफ़ डरा सकता है. चंद इंसानी चेहरों के गायब हो जाने से डरो नहीं. उन्होंने तुम्हें जाने के लिए ही इकट्ठा किया था. आज उन्होंने तुम्हारे हाथ में से अपना हाथ खींच लिया है तो ये ताज्जुब की बात नहीं है. ये देखो तुम्हारे दिल तो उनके साथ रुखसत नहीं हो गए. अगर अभी तक दिल तुम्हारे पास हैं तो उनको अपने उस ख़ुदा की जलवागाह बनाओ.

    मैं क़लाम में तकरार का आदी नहीं हूं लेकिन मुझे तुम्हारे लिए बार-बार कहना पड़ रहा है. तीसरी ताक़त अपने घमंड की गठरी उठाकर रुखसत हो चुकी है. और अब नया दौर ढल रहा है. अगर अब भी तुम्हारे दिलों का मामला बदला नहीं और दिमागों की चुभन ख़त्म नहीं हुई तो फिर हालत दूसरी होगी. लेकिन अगर वाकई तुम्हारे अंदर सच्ची तब्दीली की ख्वाहिश पैदा हो गई है तो फिर इस तरह बदलो, जिस तरह तारीख (इतिहास) ने अपने को बदल लिया है. आज भी हम एक दौरे इंकलाब को पूरा कर चुके, हमारे मुल्क की तारीख़ में कुछ सफ़हे (पन्ने) ख़ाली हैं. और हम उन सफ़हो में तारीफ़ के उनवान (हेडिंग) बन सकते हैं. मगर शर्त ये है कि हम इसके लिए तैयार भी हो.

    अज़ीज़ों, तब्दीलियों के साथ चलो. ये न कहो इसके लिए तैयार नहीं थे, बल्कि तैयार हो जाओ. सितारे टूट गए, लेकिन सूरज तो चमक रहा है. उससे किरण मांग लो और उस अंधेरी राहों में बिछा दो. जहां उजाले की सख्त ज़रुरत है.

    मैं तुम्हें ये नहीं कहता कि तुम हाकिमाना इक्तेदार के मदरसे से वफ़ादारी का सर्टिफिकेट हासिल करो. मैं कहता हूं कि जो उजले नक्श-ओ-निगार तुम्हें इस हिंदुस्तान में माज़ी की यादगार के तौर पर नज़र आ रहे हैं, वो तुम्हारा ही काफ़िला लाया था. उन्हें भुलाओ नहीं. उन्हें छोड़ो नहीं. उनके वारिस बनकर रहो. और समझ लो तुम भागने के लिए तैयार नहीं तो फिर कोई ताक़त तुम्हें नहीं भगा सकती. आओ अहद (क़सम) करो कि ये मुल्क हमारा है. हम इसी के लिए हैं और उसकी तक़दीर के बुनियादी फैसले हमारी आवाज़ के बगैर अधूरे ही रहेंगे.

    आज ज़लज़लों से डरते हो? कभी तुम ख़ुद एक ज़लज़ला थे. आज अंधेरे से कांपते हो. क्या याद नहीं रहा कि तुम्हारा वजूद ख़ुद एक उजाला था. ये बादलों के पानी की सील क्या है कि तुमने भीग जाने के डर से अपने पायंचे चढ़ा लिए हैं. वो तुम्हारे ही इस्लाफ़ थे जो समुंदरों में उतर गए. पहाड़ियों की छातियों को रौंद डाला.आंधियां आईं तो उनसे कह दिया कि तुम्हारा रास्ता ये नहीं है. ये ईमान से भटकने की ही बात है जो शहंशाहों के गिरेबानों से खेलने वाले आज खुद अपने ही गिरेबान के तार बेच रहे हैं. और ख़ुदा से उस दर्जे तक गाफ़िल हो गये हैं कि जैसे उसपर कभी ईमान ही नहीं था.

    अज़ीज़ों मेरे पास कोई नया नुस्ख़ा नहीं है वही चौहदा सौ बरस पहले का नुस्ख़ा है. वो नुस्ख़ा जिसको क़ायनात का सबसे बड़ा मोहसिन (मोहम्मद साहब) लाया था. और वो नुस्ख़ा है क़ुरान का ये ऐलान, ‘बददिल न होना, और न गम करना, अगर तुम मोमिन (नेक, ईमानदार) हो, तो तुम ही ग़ालिब होगे.’

    आज की सोहबत खत्म हुई. मुझे जो कुछ कहना था वो कह चुका, लेकिन फिर कहता हूं, और बार-बार कहता हूं अपने हवास पर क़ाबू रखो. अपने गिर्द-ओ-पेश अपनी जिंदगी के रास्ते खुद बनाओ. ये कोई मंडी की चीज़ नहीं कि तुम्हें ख़रीदकर ला दूं. ये तो दिल की दुकान ही में से अमाल (कर्म) की नक़दी से दस्तयाब (हासिल) हो सकती हैं.

वस्सलाम अलेक़ुम!

फिरोज शेख 

(अहमदनगर महाराष्ट्र्र)


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   बिहार मे  एम आय एम ने ५ सीट जीतकर विरोधीयो किया परेशान 



बिहार - हैदराबाद से निकाल कर एम आय एम ने महाराष्ट्र के साथ अब बिहार मे भी अपनी पार्टी को मजबूत किया.  २०१२ मे नांदेड से अपने ११ उमीदवार जितने के बाद एम आय एम ने अपनी पार्टी को महाराष्ट्र मे मजबूत करना शुरू किया जिसके नतीजे मे २०१४ मे  एम आय एम २ आमदार महाराष्ट्र  विधानसभा भेजने मे कामीयाब हुई उसके बाद महाराष्ट्र मे एम आय एम का क्रेज नवजवानो मे दिन ब दिन बडता रहा. जिसके चलते २०१८ के लोकसभा चुनाव मे एम आय एम ने डॉ प्रकाश आंबेडकर की पार्टी वंचित बहुजन आघाडी के साथ मिलकर चुनाव मी हिस्सा लिया और औरंगाबाद से एक उमीदवार मैदान मे  उतारा और कामीयाब भी हुए. देश के लोकसभा चुनाव मे ओवेसी की एम आय एम ने पुरे देश मे ३ जगह चुनाव लढ्ने का फैसला किया जिसमे २ जगह जीत हासील किए और बिहार सिमंचाल मे ३ लाख से भी ज्यादा वोट लेकर एम आय एम ने विरोधियो को ये दिखा दिया की हमे आसन ना समजे. 

    २०१५ के चुनाव  मे एम आय एम ने अपने ६ उमीदवार उतारे थे. लेकीन २०२० तक एम आय एम पुरे ताकत के साथ मैदान मे उतरी. बिहार मे कुशवाहा और बी एस पी के साथ मिलकर तिसरा विकल्प तयार किया. चुनाव के चलते ६५ से ज्यादा सभा अकेले असदुद्दिन ओवेसी ने किया. औरंगाबाद के खासदार इम्तियाज जलील, महाराष्ट्र कार्याध्यक्ष डॉ गफ्फार कादरी विद्यार्थी प्रदेश अध्यक्ष कुणाल खरात , मोईन सय्यद, फिरोज लाला, औरंगाबाद नगरसेवक  इसाक खान, अय्युब जहागीरदार, आदी. ने बिहार चुनाव मे  मेहनतकर पुरे देशमे एक मिसाल कायम की.

    

जीन पार्टीयो की नजर मुस्लीम और दलीत मतदाता पर हमेश रहेती और ये मुस्लीम समाज को अपना वोट बँक समजते है वो बार बार असदुद्दिन ओवेसी और उनकी पार्टी को बीजेपी के एजंटबता रही है. बडी बडी सभा मे अपने किये काम से ज्यादा ओवेसी पर निशान सादा जाता था. लेकीन सिमंचाल की जनता ने एम आय एम को जिताकर उन्हे करार जवाब दिया है. 

    सिमंचाल ने आज तक जीन जीन पार्टी को साथ दिया उन्होने सिमंचाल को विकास से काफी दूर रखा इसी का नतीजा है की सिमंचाल की जनता ने नया विकल्प के तौरपर एम आय एम को चुना.

    अब एम आय एम हैदराबाद से महाराष्ट्र , महाराष्ट्र से बिहार, बिहार से बंगाल, उत्तर प्रदेश और पुरे देश मे चुनाव लडकर पिछडे जनता को न्याय दिलाने के लिये मैदान मे उतरने का प्लान कर रही है. और विरोधियो के पास एम आय एम के खिलाफ कूछ ना होने के कारन हुमेशा की तरह एजंट एजंट कर ओवेसी को बदनाम करेंगी ऐसा लगता है.        

       अब देखना ये है एम आय एम आगे कीस तरह की रणनीती पर काम करती है.

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एम आय एम का जादु अब बिहार मे 

असदुद्दिन ओवेसी ने किया विरोधियो को चॅलेंज...


क्या पोलीस की ये जिम्मेदारी नही ?- TOPHKHANA POLICE

तोफखाना पोलीस ने किया माजी नगरसेवक के साथ गैरवेव्हार-



 

रात मे बिजली के चाले जाने के कारन कूछ टुकार लडके रस्तेसे गुजरती हुई लडकीया चेड रहे थे. ये घटना प्रोफेसर कॉलोनी के पास हुई जहासे माजी नगरसेवक और रसीक ग्रुप के अध्यक्ष जयंत येलूलकर गुजर रहे थे. जयंत साहब ने उन लडको को पकडने की कोशीश की लेकीन अंधेरे का सहारा लेकर वो टपोरी लडके वहा से भाग गये. इस मामले को गम्बीरता लेते हुये जयंत सहाब पास हीके पोलीस ठाणे पहुंचे और सारी घटना बताते हुये कहा की आए दिन इसी रस्ते पर चोरिया होती राहेती है. कभी किसीका पर्स तो कभी किसी का मंगल सूत्र चोरी जाता है. ये सब घटना सविस्तर तोपखाना पोलीस ठाणे के ए पी आय रवींद्र पिंगळे साहब को बताने के बाद पिंगळे साहब ने जिस तरह से उत्तर दिया वो बहुतही शर्मनाक बात है . एक पोलीस अधिकारी ने इस तरह से बात करना और आये हुये नागरिक से गलत बर्ताव करना सही नही. पिंगळे साहब ने उस नागरीको कहा की उन्हे और भी बहुत सारे काम है. जिसके कारण उस पोलीस अधिकारी की तक्रार जिल्हा पोलीस अधिकारी को रसीक ग्रुप ने कि है. निवेदन देते हुये कहा ही की अगर पोलीस अधिकारी इस तऱ्ह से बर्ताव करेंगे तो सामान्य नागरिक को ये शक होणे लागता है के चोरो और पोलीस कही मिले हुये तो नही?

निवेदन मे शशिकांत गुळवे, प्रा प्रसाद बेडेकर,चंद्रकांत पालवे, गजानन लांडगे, प्रा.नवनाथ वाव्हळ, प्रवीण अंतेपोलू , गफ्फार शेख, हनीफ शेख, विनायक वऱ्हाडे, रवी सरोवर, राजू लांडगे, आदी के हस्ताक्षर है

लायनेस क्लब च्या वतीने मानवसेवा येथे फराळ भेट - MANAVSEVA PROJECT

लायनेस क्लब ऑफ अहमदनगरच्या वतीने मानवसेवेतील माता-भगिनींना साडी चोळी व फराळ भेट



अरणगाव येथील बेघर निराधार मनोरुग्ण माता-भगिनीं व बंधुंच्या पुनर्वसनासाठी कार्यरत असलेल्या मानवसेवा प्रकल्पातील माता- भगिनींना दिवाळीनिमित्त आज दि.१०/११/२०२० रोजी लायनेस क्लबच्या वतीने साडी चोळी व फराळ देण्यात आले. समाजाप्रती प्रत्येकाला काही तरी देणे आहे. असे समजून व्यक्ती अथवा संस्थानी समाजास उपयुक्त ठरतील अशा सामाजिक कर्तव्याचा निर्वहान करण्याची जबाबदारी नैतिक दुष्टिकोनातुन स्वीकारने गरजेचे आहे. समाजातील गरजूना मदतीचा हात दिल्यास सामाजिक सलोखा निर्माण होण्यास मदत होणार असल्याचे लायनेस क्लब ऑफ अहमदनगरच्या अध्यक्षा मा. सुरेखाताई कदम यांनी म्हटले. यावेळी लायनेस क्लब ऑफ अहमदनगर च्या सदस्या मा. शारदाताई हौशिंग, मा. शारदाताई पवार, मा.सुनंदाताई तांबे, मा.दिपालीताई आढाव, मा.सविताई शिंदे, मा. शर्मिलाताई कदम आदी उपस्थित होते. श्री अमृतवाहिनी ग्रामविकास मंडळाच्या स्वयंसेवक प्रसाद माळी, विकास बर्डे यांनी फराळ व मानवसेवा प्रकल्पातील माता-भगिनीसाठी साडी चोळी स्वीकारले. 

*मानवसेवा हीच ईश्वर सेवा!*

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*मानवसेवा प्रकल्प*

(मन व घर हरवलेल्या मानसांच हक्काच घर)

द्वारा- *श्री अमृतवाहिनी ग्रामविकास मंडळ*

☎ (०२४१) २४२९९४२

📱९०११७७२२३३

औरंगाबादचे खासदार इम्तियाज जलील यांची जादू औरंगाबाद सोडून आता बिहारमध्येही.- Imtiyaz Jalil

 एम आय एम का जादु अब बिहार मे 



हैदराबाद मध्ये असदुद्दीन ओवेसी व अकबरुद्दीन ओवेसी या दोघा भावांनी संपूर्ण भारतामध्ये आपल्या भाषणाने व कर्तुत्वाने मुस्लिम दलित समाजाचे मन जिंकले व हैदराबाद येथे आपले वर्चस्व व अस्तित्व निर्माण केले.परंतु खऱ्या अर्थाने त्यांना गरज होती अशा सक्षम नेत्याची जो त्यांना त्यांचा डावा हात म्हणून संपूर्ण देशामध्ये एम .आय .एम पक्षाचे प्रतिनिधी उभे करून एमआयएमचे अस्तित्व व संघटन मजबूत करून देईल आणि हे काम शक्य झाले महाराष्ट्र राज्यातल्या औरंगाबाद जिल्ह्यातून मध्य विधानसभा मधून निवडून आलेले एकमेव एम.आय.एम चे आमदार इम्तियाज जलील यांच्या रूपाने त्यांच्या या प्रथम विजयामुळे यांचे अस्तित्व पूर्ण महाराष्ट्रात व देशात चमकू लागले व स्वतःच्या कर्तुत्वाचा ठसा हे आपल्या कार्यातून निर्माण करत होते. त्यानंतर यांनी खरी कमाल केली ती शिवसेना पक्षाचा सर्वात महत्त्वाचा आणि मजबूत बालेकिल्ला असलेला औरंगाबाद जिल्हा भेदुन काढला .येथे एम .आय .एम चा खासदार निवडून येणे हे जवळजवळ अशक्य विचारा पलीकडे होते परंतु इम्तियाज जलील यांच्या अथक प्रयत्नाने तसेच मजबूत संघटन निर्मिती व अमर्याद विश्वासामुळे औरंगाबाद जिल्ह्यामध्ये शिवसेनेचा बालेकिल्ला भेदणे केवळ आणि केवळ हे इम्तियाज जलील विश्वासामुळे व प्रयत्नामुळे शक्य झाले व त्यांचा ऐतिहासिक विजय हा संपूर्ण देशात लोकप्रिय ठरला परंतु एम. आय. एम पक्ष हा बीजेपी ची B टीम आहे असे आरोप हे नेहमीच एम .आय. एम वर होत असतात ही खूप मोठी शोकांतिका आहे कारण एम. आय. एम हा मुस्लिमांचा व दलितांच्या आवाज असलेला पक्ष आहे संपूर्ण देशात बीजेपी ने थैमान घातले असताना एम .आय. एम या पक्षाला बीजेपी सोबत दोन हात करण्यासाठी खूप मेहनत करावी लागते परंतु बीजेपी सोबतच काँग्रेसलाही स्वतःला सेक्युलर म्हणून घेणार्‍या पक्षांना देखील मात देण्यासाठी तेवढीच मेहनत घ्यावी लागत आहे बिहारच्या निवडणुकीत संपूर्ण देशाचे लक्ष लागून होते व एम.आय.एम चे  7 जागा सगळ्या पक्षांच्या डोळ्यात टोचत होते परंतु त्या जलील यांनी जणू काही खूणगाठ बांधली होती की, औरंगाबाद पाठोपाठ आता बिहार पण आपल्याला जिंकायची आहे परंतु सर्वात मोठे प्रतिस्पर्धी असणारी बीजेपी सोबतच काँग्रेस व इतर सेक्युलर म्हणणाऱ्या पक्षांशी देखील तेवढीच काट्याची टक्कर द्यायची होती परंतु इम्तियाज जलील यांच्या दृढनिश्चय आणि राजनीतिक परिपक्वतेमुळे असदुद्दीन ओवैसी सोबतच बिहार राज्यांमध्ये देखील इम्तियाज जलील व त्यांच्या सहकाऱ्यांनी अथक परिश्रम घेऊन बिहारचा पिछडा वर्ग व अल्पसंख्यांक यांचा कोपरा न कोपरा पिंजून काढला व त्यांचे केवळ मन च जिंकले नाहीतर बिहार निवडणुकीत देखील खासदार इम्तियाज जलील यांनी आपल्या कर्तृत्वाने स्वतःची जादू कायम ठेवत घवघवीत यश एम .आय. एम पक्ष व त्यांच्या आमदारांना मिळवून दिले.

त्यात जलील हे केवळ एम .आय. एम पक्षाचे मजबूत नेते नसून अल्पसंख्यांक मुस्लिम समाज तसेच दलितांचे परिपक्व व मजबूत व्यक्तिमत्व असणारे नेते म्हणून त्यांना लाभले आहेत .संपूर्ण देशाच्या अल्पसंख्यांक मुस्लिम समाज तसेच दलित समाज यांना अकबरुद्दीन ओवेसी ,असदुद्दीन ओवैसी यांच्या पाठोपाठ खासदार इम्तियाज जलील यांच्या खंबीर नेतृत्वाची गरज आहे निश्चितच खासदार इम्तियाज जलील यांचे नेतृत्व जर आज अल्पसंख्यांक मुस्लिम समाज व दलित समाज यांनी सर्वानुमते स्वीकारणे ही काळाची गरज आहे.

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चिराग पासवान का क्या था गेम प्लान ?

असदुद्दिन ओवेसी ने किया विरोधियो को चॅलेंज-

कर्मचाऱ्यांचे पगारासाठी जामखेड नगरपरिषद समोर केले बोंबा बोंब आंदोलन- Andolan jamkhed

जामखेड नगरपरिषदेच्या कर्मचाऱ्यांचे दोन महिन्याचे थकीत पगार देणेबाबत करण्यात आलेल्या बोंबा बोंब आंदोलनाला मिळाले यश.


नगर परिषदेचे उपमुख्य कार्यकारी अधिकारी यांच्या लेखीआश्‍वासनानंतर कर्मचाऱ्यांचे आंदोलन मागे

जामखेड -

          जामखेड नगर परिषदेतील कर्मचाऱ्यांचे ऑक्टोबर व सप्टेंबर या दोन महिन्याचे पगार देण्यात आले नव्हते. या महाभयंकर कोरोना व लॉकडाऊनच्या काळामध्ये या नगर परिषदेच्या वर्ग 2, 3 व 4 यामधील सफाई कर्मचारी व आरोग्य कर्मचारी यांनी या जामखेड शहराची साफसफाई करून शहरातील जनतेच्या आरोग्याची काळजी घेणाऱ्या गोरगरीब हातावर पोट असणाऱ्या या कर्मचाऱ्यांचे 2 महिन्यापासून पासून नगरपरिषदेने पगार थकविले आहेत.

        हे कर्मचारी सकाळी पहाटे 5 वाजल्यापासून हातात झाडू घेऊन गाव स्वच्छ करतात आणि या सणासुदीच्या काळामध्ये दिवाळी 4 दिवसांवर आली आहे. तरी देखील या कर्मचाऱ्यांच्या पगाराची नगरपरिषद दखल घेत नव्हते, त्यामुळे या कर्मचाऱ्यांचे तात्काळ थकीत दोन महिन्याचे वेतन देण्यात यावे म्हणून आज दिनांक 10 नोव्हेंबर 2020 रोजी ठीक 11 वाजता नगर परिषदेच्या समोर *बोंबा बोंब आंदोलन* करण्यात आले,

           नगर परिषदेचे सर्व कर्मचारी या आंदोलनात सहभागी झाले होते व त्यांच्या जीवांची आकांत करून बोंबा मारत होते की आम्हाला दिवाळीच्या सणासाठीआम्हाला आमच्या मुला बाळांची कपडे व कुटुंबाची गोड दिवाळी करण्यासाठी आमचा दोन महिन्याचा थकीत पगार देण्यात यावा.

         हे आंदोलन लोकाधिकार आंदोलन व वंचित बहुजन आघाडीच्या संयुक्त विद्यमाने पुकारलेल्या आंदोलनाचे नेतृत्व आदिवासी भटके-विमुक्त आघाडीचे राज्य समन्वयक अॅड.डॉ. अरुण जाधव यांनी केले,

              यावेळी लोकाधिकार आंदोलनाचे प्रवक्ते बापू ओहोळ,लोकाधिकार आंदोलनाच्या महिला जिल्हाअध्यक्षा द्वारका ताई पवार, लोकाधिकार आंदोलनाचे तालुकाअध्यक्ष विशाल पवार, वंचित बहुजन आघाडीचे तालुकाअध्यक्ष आतिश पारवे, मुकुंद घायतडक व नगर परिषदेचे कर्मचारी आंदोलनात सहभागी झाले होते.

      या कर्मचाऱ्यांच्या व्यथा मांडताना अॅड. डॉ. अरुण जाधव म्हणाले की ही नगरपरिषद सांगते की आमच्याकडे कर्मचाऱ्यांना देण्यासाठी पैसे नाहीत परंतु नगरच्या कचरा कॉन्ट्रॅक्टदार यांना महिन्याला वीस लाख रुपये देण्यासाठी कोठून पैसे येतात. या गोरगरीब कर्मचाऱ्यांना तुम्ही अस्पृश्य समजून नका. त्यांना दिवाळी गोड खाऊ द्या. नाहीतर मी तुम्हाला दिवाळी सुखाने खाऊ देणार नाही आम्ही या तालुक्याचे लोकप्रतिनिधी मा. आमदार रोहित दादा पवार व जिल्ह्याचे खासदार मा. सुजय विखे पाटील यांच्या दारात जाऊन दिवाळी मागणार आहोत.

        या आंदोलनास महाराष्ट्र नवनिर्माण सेनेचे तालुकाध्यक्ष प्रदिप टापरे प्रहार संघटनेचे तालुका अध्यक्ष जयसिंग उगले, नयुम शेख, एम.आय. एम चे जिल्हा उपाध्यक्ष सय्यद परवेज, माजी नगराध्यक्ष सोमनाथ राळेभात, नगरसेवक दिगंबर चव्हाण व माजी सरपंच सुरेश जाधव यांनी पाठिंबा दिला.

            या आंदोलनाचे यश म्हणून नगरपरिषदेचे उपमुख्य कार्यकारी अधिकारी भिसे साहेब यांनी लेखी पत्र देऊन तात्काळ सर्व कर्मचाऱ्यांचे सप्टेंबर महिन्याचे मानधन त्यांच्या बँक खात्यात जमा केले व ऑक्टोबर महिन्याचे मानधन 25 नोव्हेंबर पर्यंत कर्मचाऱ्यांच्या खात्यात वर्ग करण्यात येतील असे लेखी पत्र देण्यात आले,

        या आंदोलनाच्या यशस्वीतेसाठी लोकाधिकार आंदोलनाचे सामाजिक कार्यकर्ते सचिन भिंगारदिवे ,वैजीनाथ केसकर, सागर भांगरे ,संतोष चव्हाण, राकेश साळवे , बाबासाहेब फुलमाळी,योगेश सदाफुले पप्पू सदाफुले रवी सदाफुले बाबाराजे जाधव, अविनाश काळे, शहानुर काळे आदींनी परिश्रम घेतले


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समाजवादी पार्टी च्या अहमदनगर जिल्हा अध्यक्ष पदी अजीम राजे- Azim Raje

अजीम राजे यांची जिल्हा अध्यक्ष पदी निवड - 


 

अहमदनगर - समाजवादी पार्टीचे महाराष्ट्र प्रदेश अध्यक्ष तथा आमदार अबू आसीम आझमी यांनी अहमदनगर शहर अध्यक्ष असतांना अजीम राजे यांनी केलेल्या कामचा कौतुक करत अजीम राजे यांना जिल्हा अध्यक्ष पदी नियुक्ती केली. पार्टी चे शहर अध्यक्ष असतांना राजे यांनी केलेल्या कामची दखल घेत राजे यांना जिल्हा अध्यक्ष पदावर नियुक्ती करण्यात आली आहे. 

नियुक्ती चा पत्र प्रदेश अध्यक्ष अबू आसीम आझमी यांचे हस्ते देण्यात आले आहे. आझमी यांनी राजे यांचा अभिनंदन करून या पुढेही पक्षाला अजून बळकट करताल आणी पूर्ण जिल्ह्यात पक्ष बांदनी करून संघटन मजबूत कराल अशी अपेक्षा व्यक्त केली.

अजीम राजे यांनी सर्वांचे आभार मानले आणी म्हाणाले की पक्षाने दिलेली जबाबदारी मी योग्य रीतीने आणी लवकरात लवकर पूर्ण जिल्ह्यात संघटन मजबूत करेन अशी गवाही दिली. त्याच बरोबर लवकरच जिल्हा दौरा करणार असल्याचे राजे यांनी सांगितले.

या वेळी मुंबई महासचिव झुल्फिकार आझमी, राजू जहागीरदार, रफीक मोगल,फिरोज शेख, अरबाज पठाण, फारुख बागवान, मोहसीन सय्यद,हाजी कुद्दूस तांबटकर आदी. उपस्तीत होते.

जिल्हा अध्यक्ष नियुक्ती बाबत अझीम राजे यांचे सर्वत्र अभिनंदन होत आहे. 

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 भारतरत्न मौलाना आझाद जयंतीनिमित्त

मोफत नेत्र, रक्तगट सर्व रोग तपासणी व अल्पदरात मोतीबिंदू शस्त्रक्रिया व रक्त तपासणी शिबिराचे आयोजन


अहमदनगर- भारतरत्न स्वातंत्र्यसेनानी मौलाना अबुल कलाम आझाद यांच्या 132 व्या जयंतीनिमित्त मखदुम एज्युकेशन अँड वेल्फेअर सोसायटी व अहमदनगर जिल्हा उर्दू साहित्य परिषदेच्या वतीने कौमी एकता सप्ताहाचे आयोजन करण्यात आले आहू. यामध्ये अल करम सोशल अंड एज्युकेशन सोसायटी, फिनिक्स फाउंडेशन तर्फे व आनंदऋषीजी नेत्रालया च्या सहकार्याने बुधवार दिनांक 11 नोव्हेंबर 2020 रोजी सकाळी अकरा ते दुपारी दोन पर्यंत रामचंद्र खुंट येथील अल करम मॅटर्निटी हॉस्पिटल किंग्जगेटरोड इंगळे मेडिकल च्या मागे अहमदनगर मोफत रक्तगट व नेत्र तपासणी तसेच अल्पदरात मोतीबिंदू शस्त्रक्रिया तर पन्नास टक्के दरात सर्व रक्त तपासण्या केले जाणार आहे. तर प्रसूतीच्या मोफत तपासणी करून सवलतीच्या दरात प्रसूती केली जाईल. असे मखदुम सोसायटीचे अध्यक्ष आबीद दुलेखान यांनी कळविले आहे.

तरी या संधीचा गरजूंनी जास्तीत जास्त फायदा घ्यावा व अधिक माहितीसाठी 

तौफिक तांबोळी यांच्याशी 98 60 70 80 16 या नंबर वर संपर्क करुन किंवा समक्ष नांव नोंदणी करावी.

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चिराग पासवान का क्या था गेम प्लान ? - Mission Bihar Result

 चिराग पासवान का गेम प्लान क्या था ?


बिहार - बिहार चुनाव के चलते एल जे पी के अध्यक्ष चिराग पासवान ने जे डी यु के साथ मिलकर चुनाव लडने से मना कर दिया ये  फैसला लेने की वजह से बिहार चुनाव मे जहा जहा जे डी यु नितीश कुमार के उमिदवार चुनाव मे उतारे  थे उसी जगह पर चिराग पासवान ने अपने पार्टी के उमीदवार मैदान मे  उतारे थे. जिसका बहुत बडा नुकसान जे डी यु के उमिदवार को हुआ. चिराग पासवान ने बीजेपी के खिलाफ एक भी उमिदवार ना देकार ये बात दिया की वो एन डी ए के साथ है मगर जे डी यु के खिलाफ है.

आज जब चुनाव के नतीजे आए है तो ये साफ तौर पर नजर आ रहा है की चिराग पासवान की पार्टी एल जे पी ने सबसे ज्यादा नुकसान नितीश कुमार की पार्टी को पहुचाया है  जिसकी वजह से जे डी यु के विधायक पिछले बार से काफी घट गये है. लेकीन एन डी ए मे बीजेपी के पहेले के मुकाबले ज्यादा सीट पर बडत बनाये  हुए सबसे बडी पार्टी बनकर उभर रही है.

अब सवाल ये सामने आ रहा है की चिराग पासवान ने एन डी से अलग लडकर सिर्फ २ सिटो पर अपनी पकड बनाये हुए है. जब की जे डी यु ३५ से ज्यादा जगह पर हार का सामना करना पढ रहा है. 

क्या ये नीती के तहेत हुआ है? ये सवाल का जवाब मिलना अभी बाकी है.

हालाकी चिराग पासवान ने पहेले से ये स्पष्ट कर दिया है के वो प्रधान मंत्री मोदी के साथ है.               

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मौलाना मुहम्मद बाकीर भारत देश के पहले शहीद पत्रकार - MUHAMMAD BAQIR

 मौलाना मोहम्मद बाकीर (१७८० - १८५७) - 

भारत देश के पहले शहीद पत्रकार  


देश - 

मौलाना मोहम्मद बाकीर ने दिल्ली का पहला लिथो पर छपने वाला उर्दू अखबार शुरू किया था. 

१८५७ के समय उनके दिल्ली अखबार ने खुद को राष्ट्रीय मुद्दो के लिए समर्पित कर दिया था. 

१० मई १८५७ को विद्रोह का बिगुल बजने के बाद उन्होने अखबार का नाम "अखबार - उज-जफर' कर दिया था.

१४ सितम्बर को जब अंग्रेजी फौज दिल्ली के अंदर दाखील हुई, तो गिरफ्तार किये जाने वालो मे मौलाना पहले थे.

१६ सितम्बर को उनको मेजर हडसन के सामने लाया गया, जिसने उनको गोली मारने के आदेश दिए. 

इसके साथ वे देश के लिए शहीद होने वाले पहले पत्रकार बने.

Maulvi Muhammad Baqir  (1780-1857) started the first Litho printed urdu news paper of Delhi in 1837.

The newspaper "Delhi Urdu Akhbar" devoted itself completely to the Nationalist cause in the wake of the great revolt of 1857. 

After the revolt broke out on 10 May 1857 Maulana Baqir renamed the paperas "Akhbar-us-zafae" (Paper of zafar) to pay tribute to the leader of the revolt. 

When the British entered Delhi on 14 september 1857 he was among the first to be arrested. 

On 16 September he was produced before Major Hudson, who ordered to shoot him dead. 

Baqir was executed the same day, making him the first journalist to lay his life for the nation       


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फ्रांस राष्ट्रपती मेक्रोन का अहमदनगर मे निषेध - France President

फ्रांस राष्ट्रपती मेक्रोन का अहमदनगर मुस्लीम समाज ने किया मे निषेध




अहमदनगर - फ्रांस राष्ट्रपती मेक्रोन ने खुछ दिनो पहेले इस्लाम धर्म के अंतीम प्रेषित मोहम्मद पैगंबर स. के तालुक से गलत बयान किया था. जिसके चलते पुरे दुनीयामे मेक्रोन के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे है. कूच देश ने फ्रांस से आए समान पार भी प्रतिबंध लगा दिया है. इस विरोध का प्रतिसाद पुरे दुनिया के साथ साथ भारत मी भी देखने मिला है. अहमदनगर मी मुस्लीम समाज ने फ्रांस राष्ट्रपती मेक्रोन के खिलाफ प्रदर्शन करते हुए मेक्रोन के खिलाफ मुर्दाबाद के नारे लगाए और मेक्रोन के तस्वीर को जुतो का हार पहेनाया गया. जिसके बाद स्थानिक पोलीस ने गिरफ्तार किया है. 
आपको बातादे की फ्रांस राष्ट्रपती मेक्रोन ने इस्लाम धर्म के अंतीम प्रेषित स. के शान मी गुस्ताकी की है जिसके चलते पुरी दुनिया मी मेक्रोन के खिलाफ प्रदर्शन हो रहे है.

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असदुद्दिन ओवेसी ने किया विरोधियो को चॅलेंज- Owasi Challenge Opposition

 असदुद्दिन ओवेसी ने किया विरोधियो को चॅलेंज


जबसे ए.आय.एम.आय.एम हैदराबाद से निकलकर पुरे देश मे अपने पक्ष का विस्तार करनेमे लगी है तबसे समाज मेसे खुछ घटक और कुछ राजनेतिक पार्टीओ के कार्यकर्ता  एम.आय.एम को भजापा की बी टीम या एजंट बताने की कोशिश कर रहे है. २०१२ तक एम.आय.एम हैदराबाद तक ही सीमित थी वहा पर एम.आय.एम का एक खासदार, ७ आमदार, और महानगर पालिका मे ६० से अधीक नगरसेवक चून कर आते रहे है. लेकीन जबसे एम.आय.एम के सर्वेसर्वा खा. असदुद्दिन  ओवेसी ने कॉंग्रेस गटबंदन छोड अपने पार्टी को पुरे देशमे मे विस्तार और हर चुनाव लडणे का फैसला किया तबसे एम.आय.एम को भजापा का एजंट बनाकर पेश किया जाने लगा है. जबभी किसी राज्य मे  चुनाव रहेने पर और असद ओवेसी की पार्टी चुनाव लडणे का फैसला करती तब कूछ पार्टी आपने चुनाव से ज्यादा ओवेसी को एजंट बनामे ज्यादा मेहनत करते नजर आते है.. महारष्ट्र चुनाव हो बिहार चुनाव हो या देश मे कही पर भी चुनाव हो. हद तो ये हो गयी है की जहा पर ओवेसी की पार्टी चुनाव नही लड रही होती वहा भी हार का ठीकडा ओवेसी पर फोडणे का काम किया जा रहा है.

हालही  मे बिहार चुनाव मे एम.आय.एम ने २० जगहपर अपने उमीदवार उतारे है जिसका नतीजा १० नवंबर को आना है. लेकीन प्रचार के दौरण फिर वही कार्ड विरोधियो के तरफसे खेला जा रहा है. विरोधियो ने फिर एम.आय.एम को भाजप की बी टीम और एजंट का प्रचार जोरो शोरोसे शुरू किया. इसका जवाब देते हुए एम.आय.एम अध्यक्ष असदुद्दिन ओवेसी ने चलेंज किया है की जो मुजे भाजप का एजंट बोलता है उन्हे चेलंजे है की वो साबित करे अगर वो साबीत करते है तो उस व्यक्ती को असदुद्दिन ओवेसी की तरफ से उमरा जाने का टिकत दिया जायेंग और खास बात ये है उस व्यक्ती के साथ ओवेसी खुद भी जायेंगे और मोहम्मद पैगंबर स. इनके रोजा ए शरीफ के पास पैगंबर स. के कदम मुबारक के पास खडे होकार ओवेसी के लिये बद दुआ करे और ओवेसी खुद आमीन कहेंगे.

ओवेसी ने कहा अगर विरोधियो के पास मेरे एजंट होनेके सबूत है तो मेरा ये चेलेंज स्वीकार करे. आपको बातादे हैदराबाद से निकल कर एम.आय.एम के अब महाराष्ट्र मे एक खासदार, दो आमदार, और कही नगरसेवक और सदस्य है. अब एम.आय.एम. पुरे देश मी चुनाव लडणे का फैसला ले चुकी है. लेकीन बिहार सिमंचाल मे हवा का रुख एम.आय.एम की ओर जाता दिख रहा है.

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आधुनिक शिक्षण व समाज- Education

आधुनिक शिक्षण व समाज:

मुस्लिम समुदायाला मागासलेपणाची कीड लागली आहे.हा समाज शैक्षणिक,आर्थिक,राजकीय व सामाजिक दृष्ट्या मागास आहे.या समुदायाच्या मागासलेपणाला कारणीभूत असलेल्या कारणांची मीमांसा करतो तेव्हा सर्वांसाठी शैक्षणिक मागासलेपणा कारणीभूत असल्याचे दिसून येते. कोणत्याही समुदायाच्या उन्नती प्रगती समाजाचे शिक्षण हे महत्त्वपूर्ण भूमिका निभावत असते जो समाज शिक्षण घेऊन प्रगल्भ होतो तो समाज प्रगतीपथावर असतो.

शिक्षण हे एक मूलभूत गरज झाली आहे लोक शिक्षण घेऊन पुढे जात असताना माझा समाज मागे राहतो त्यामुळे माझ्या समाजाच्या पिढीचे भविष्य काय असेल याची चिंता होणे सहाजिक आहे.

स्वातंत्र्यानंतर 70 वर्षांहून अधिक काळ लोटला तरी मुस्लिम बांधवांच्या सामाजिक,आर्थिक,राजकीय व शैक्षणिक परिस्थितीत काहीच बदल झाला नाही दिवसेंदिवस ही स्थिती गंभीर होत आहे.अनेक आयोगाने आपल्या अहवालात या समुदायाच्या स्थितीबाबत सरकारला सूचित केले तरी येथील व्यवस्थेने या समुदायासाठी  काहीच केले नाही.समाजालाही लागलेली मागासलेपणाची कीड नष्ट तर होऊ शकत नाही परंतु कमी नक्कीच करता येऊ शकेल .सध्या समाजात आर्थिक विषमता शैक्षणिक मागासलेपण आहे. मुस्लिम समाज शिक्षणापासून वंचित राहिला आहे यासाठी घरची आर्थिक स्थिती ही कारणिभूत आहे.कोणत्याही समाजाच्या प्रगतीमध्ये शिक्षण हे महत्त्वपूर्ण मार्ग आहेत जो समाज शिक्षणाचे महत्त्व जाणून शिक्षण घेतो तो प्रगतीपथावर असतो. समाजात मजुरदारवर्ग जास्त असल्याने शिक्षणाच्या सुविधा उपलब्ध होत नाही सरकारची जबाबदारी तर आहे परंतु समाजातील श्रीमंत व बुद्धिजीवी वर्ग ने शिक्षणासाठी जागरूकता निर्माण करावी. खरे तर समाजातीलश्रीमंत लोकांची  जबाबदारी आहे की आपल्या परिसरातील गरिब परंतु हुशार मुलांना शिक्षणासाठी मदत करावी. समाजात अनेक अनाथ, निराश्रित,अपंग, मुले आहेत यांची जबाबदारी ही घेणे गरजेचे ठरते. समाजाच्या  द्यनिय स्थितिचे वर्णन 2005 मध्ये न्यायमूर्ती राजेंद्र सच्चर यांनी आपल्या कमिशनच्या शिफारिशीत केले व आपल्या शिफारशीने सरकारला समाजाच्या दयनीय स्थिती बाबत सूचना केली होती व या समुदायाच्या उन्नतीसाठी उपाययोजना अमलात आणाव्या परंतु पंधरा वर्षानंतर ही कोणत्याही सरकारने या शिफारशीकडे लक्ष दिले नसल्याने या समुदायाच्या स्थिती सुधारना झाली नाही उलट  स्थिती खूप बिकट झालेली आहे. या समाजाला आज आरक्षणाची गरज कारण या समुदायातील बहुसंख्यक लोकांकडे उत्पन्नाचे साधनच नाही. या समुयाचे जिवणमांन उचांवण्यासाठी व इरांच्या बरोबरीला आण्यासाठी शिक्षणात व नोकरीत राखीव जागांची तरतूद करणे गरजेचे आहे.

शिक्षणात मागास असल्याने सर्व श्रेत्रात मागास झाले.

शिक्षणाचे महत्व खरेतर आम्हाला समजलेच नाही.समाजाने शिक्षणाकडे बघण्याचा दृष्टीकोण बदलावा.

इस्लाम धर्म हा शिक्षणाचे महत्त्व सांगतो "इकरा" हा शब्द शिका असून नेहमी शिकण्यासाठी प्रोत्साहन देणारा असूनही आज समाज त्यावर अंमलबजावणी करीत नाही. समाजाची बहुतांश लोकांची मुलांना शिकवण्याची व उच्च शिक्षण देण्याची कुवत नसते परंतु परिस्थिती हे कारण ठरत नाही दुसरी बाब मुस्लीम समाजाचे उर्दू भाषेचे शिक्षण घेण्याचा आहे. उर्दू भाषेतून शिक्षण घेण्याचा अट्टहास लयास कारणीभुत ठरत आहे. या अध:पतनास शिक्षणाकडे बघण्याचा दृष्टीकोण ही आहे. उर्दू भाषेतून शिक्षण घेण्याचा अट्टहास करणारयानी वास्तविकता लक्षात घेतली पाहिजे.जरी उर्दू भाषेतून शिक्षण घेत असालतरी ते शिक्षण दर्जेदार असावे येथे स्थानिक व इंग्रजी भाषा दर्जेदार शिकवली जावी. फक्त उर्दू माध्यमातून शिक्षण घेतले व उर्दू आली तर तुमचे शिक्षण सफल होत नाही . इंग्रजी व मराठी ही यायला हव्या. शिक्षण  कौशल हे जिवणात उपयोग करण्यासाठी या भाषेतून शिक्षण व या भाषांत प्रभुत्व असावे.

आजच्या स्पर्धा  युगात स्थानिक भाषा व इंग्रजी या भाषेला महत्त्व आहे प्रत्येक सरकारी नोकरी प्रत्येक स्पर्धा परीक्षा    ही मराठी व इंग्रजी भाषेत आहे. मराठी व इंग्रजी भाषा व्याकरण यानां अन्यसाधारण महत्व आहे. बदलत्या जगा सोबत बदल स्वीकार केला पाहिजे. मराठी भाषा ही जर दूर्लक्षीत झाली तर शिक्षणाला अर्थ नाही.

आमचे जे मुल उर्दू भाषेतून शिक्षण घेतात तेथे मराठी, इंग्रजी दुर्लक्षित होवू नये. जर दूर्लक्षीत झाली व शिक्षण घेऊन जरी मुलगा पुढे गेलात तरी इंग्रजी व मराठी या स्पर्धा परीक्षांत राहणार. जर मराठीत व्यक्त होता येत नसेल तर आजच्या स्पर्धेच्या युगात तो टिकणार कसा. मुस्लिम बहूल क्षेत्रात इंग्रजी माध्यम व सेमी यात जरी मुलगा शिक्षण घेत असला तरी मराठी दुर्लक्षित होत आहे.आपल्या समाजातील श्रीमंताची मराठी दुर्लक्षित झाली तरी तो विविध माध्यमातून इंग्रजी भाषेवर प्रभुत्व मिळवून पुढे तो इंजिनीअर डॉक्टर होतो परंतु गरीब व मध्यमवर्गीय यांच्या मुलाचे काय? कामगारांच्या मुलांना स्पर्धेत टिकायचे असल्यात मराठी येणे गरजेचे आहे. उर्दू, मराठी, इंग्रजी या भाषात प्रभुत्व भेटल्या शिवाय आमची मुले स्पर्धत टिकणार नाही. याच बरोबर

मुस्लिम समाजाचे शिक्षणाकडे बघण्याचा दृष्टिकोन बदलायला हवा केवळ नोकरीसाठी नाही तर आपण जो व्यवसाय करतो त्यात शिक्षण कौशल्यांचा फायदा होतो.कष्टकरी कामगारांची मुल असल्याने काम करत शिक्षण घ्यावे फावल्या समयी अभ्यास करावा. शिक्षण कौशल विकास करावा . वडिलांनी ही शिक्षण घेण्यासाठी प्रोत्साहन द्यावे.दोन वेळच्या अन्नाची जुळवाजुळव करत असताना शिक्षण घेण्यासाठी अडचण येतात परंतु ही नविन पिढी शिक्षीत झाली पाहजे . याला व्यक्त होता आले पाहिजे.समाजाची बाजू मांडण्यासाठी तयार झाले पाहिजे.

शिक्षणातून उद्या लाखो  विद्वान तत्वज्ञानी तयार होतील. आधुनिक शिक्षा नवयुगाचे प्रवर्तक नवयुग स्वीकारल्याशिवाय व मराठी इंग्रजी व उर्दू यांचा समन्वय साधून जोपर्यंत येथील समुदाय शिक्षण घेत नाही तो पर्यंत  

तर्क, विवेक ,चिकित्सक विचार तो आत्मसात करणार नाही.

तो पर्यंत समाज मागासच राहणार.

दिवसातील दोन तास धार्मिक शिक्षण घेण्यासाठी खर्च करावे. शिक्षकाना योग्य मोबदला द्यावा हे

धार्मिक शिक्षण अरबी व उर्दू  भाषेतून मस्जिदीतून घावे.धार्मिक विद्वान तत्वज्ञानी व्हावे अलिम,हाफीज, मुफ्ती व्हावे. इस्लाम धर्म समजावे लोकांना समजून सांगावे.

परंतु विज्ञान, कला, वाणिज्य, गणित हे मराठी व इंग्रजी माध्यमातून घ्या

नजीर शेख, नांदेड

9561991736

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