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ओवेसी का समर्थन क्यो करती है युवा पिढी? New Generation and Owasi

युवा क्यो करते है ओवेसी का समर्थन ? बिहार मे एम आय एम को किस तरह मिली ५ सीट 

 

देश - भारत देश आझाद हो कर तकरीबन ७० साल से भी ज्यादा हो गए. जबसे देश आझाद हुआ तबसे अब तक भारत का मुस्लीम समाज कॉंग्रेस और उसके घटक पक्ष के जीत का भागीदार रहा है. भारत का मुस्लीम कॉंग्रेस और घटक पक्ष को ये सोच कर मतदान करता है की ये धर्म निरपेक्ष पार्टीया है. लेकीन हर राज्यमे प्रादेशिक पक्ष है कूछ कॉंग्रेस के सात है तो कूछ बीजेपी के साथ है. मुस्लीम समाज कॉंग्रेस के साथ खुदको सुरक्षीत महेसुस करता था. लेकीन कूछ इस तऱ्ह के हालत देश मे बन गए या बना दिए गये की उस वक़्त  मुस्लीम समाज को ये सोचने का मौका मिला की  जिस पक्ष और उसके घटक को हम साथ दे रहे है क्या वो हुमारे साथ है या हुमारा इस्तेमाल कर रहा है. १९९२ का बाबरी मसला हो, २००४ की गुजरात दंगल, या आए दिन जात के नाम पर मुस्लीम और दलीत युवाओ की सरेआम हत्या या मुस्लीम और दलीत महिलाओ के इज्जत के साथ खेलना इसी के साथ ६५,०००  से भी ज्यादा मुस्लीम नौजवान को उच्च शिक्षा हासील कर रहे थे उन्हे आतंकवाद और दहेशतवाद के नाम पार सलाखो के पिछे डाला गया जो आज दस दस साल बाद निर्दोष रिहा हो रहे है

            इसीके के साथ २००५ मे सच्चर समितीने खुलासा कर दिया की देश के आझादी के बाद मुस्लीम समाज की हालत बद से बदतर हुई है. और इस समाज को मुख्य प्रवाह मे  लानेके के लिए इन्हे आरक्षण, स्वरक्षण,शिक्षण बहुत जरुरी है. सच्चर कमिटी के बाद रहेमानिया कमेटी, गुंडू कमेटी और न जाने कितने कमिटी बनी और सबने ये सुजाव दिया की मुस्लीम समाज को मुख्य प्रवाह मे लाया जाए. 

            २००५ मे केंद्र मे यु पी ए की सरकार थी. पुरे देश से सच्चर कमिटी लागू करणे की मांग के बावजुत उसे अंमल मे नही लाया गया. अब देखने वाली बात ये है की यु पी ए और कॉंग्रेस को सच्चर कमिटी लागू करनेसे किसने रोखा? कॉंग्रेस ने क्यो लागु नही किया ? जो समाज कॉंग्रेस के साथ आझादी से पहेले भी था और बादमे भी है फिर ऐसी क्या मजबुरी थी की मुस्लीम समाज को मुख्य प्रवाह मे आने से रोखा गया?

        २०१२ तक एम आय एम पक्ष और पक्ष अध्यक्ष यु पी ए गाठबंदन से जुडे रहे. २०१२ तक एम आय एम यु पी का हिस्सा रही लेकीन उसके बाद एम आय एम के अध्यक्ष खासदार असदुद्दिन ओवेसी ने यु पी ए से बहार निकाल कर अपनए पक्ष का विस्तार करने का फैसला किया और तभी से कॉंग्रेस और यु पी ए के घटक पक्ष एम आय एम और ओवेसी को बीजेपी के एजंट बताकर मुस्लीम समाज को घुमराह करने मे लगे है. ऐसा लगता  है कॉंग्रेस को ये बात गवरा नही की मुस्लीम और दलीत जो सालो से उन्हे वोट डालते आ राहे है वो ओवेसी और उनकी पार्टी के साथ जाए. कॉंग्रेस ने तो मुस्लीम समाज को वोट बँक के अलावा कूछ समजा नही?

        २०१२ के बाद जैसे ही एम आय एम हैदराबाद से बार निकाली तो उन्हे महाराष्ट्र की जनता ने साथ देकर नांदेड जैसे इलाके से ११ नगरसेवक चुनकर दिया और एम आय एम की एन्ट्री महाराष्ट्र मे होगायी. २०१४ के महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव मे जनता ने एम आय एम के २ आमदार को महराष्ट्र विधान सभा मे भेजा और ये सिलसिला चालू रहा औरंगाबाद महानगर पालीका, धुलिया, बीड,उस्मानाबाद, जैसे इलाको मे  एम आय एम ने जीत दर्ज कर बतादिया कि अब जनता को परियाय की जरुरत है और एम आय एम  एक बहेतरीन विकल्प है,

        २०१९ के लोकसभा चुनाव मे औरंगाबाद से खासदार इम्तियाज जलील को जीत हासील होनेके कारन युवा पिढी मे एक जोश का वातावरण निर्माण हुआ. महाराष्ट्र विधानसभा मी २०१९ मी २ आमदार के बाद अब बिहार मे  एम आय एम को  सिमंचाल जैसे इलाके से   ५ जगह जीत हासील हुई.                                    

        सवाल ये है जो सिमंचाल कॉंग्रेस और आर जे डी को हमेशा साथ देता था ऐसा क्या हुआ की एम आय एम के साथ जाना पसंद किया. क्या उन्हे अब कॉंग्रेस पर भरोसा नही रहा? सिमंचाल मे आज भी कोई विकास नही है जिस सिमंचाल ने केंद्र और राज्य के पक्ष को सालो साल वोट डाले आज वो ये सोचने पर मजबूर है की उनका विकास क्यो नही हुआ? बिहार मे एम आय एम की जीत ने ये साबीत कर दिया की अब युवा विकास चाहती है उन्हे बदलाव चाहिए , उन्हे राजनीती के परे अपना ,अपने समाज का, अपने  प्रभाग का, अपने राज्य का,अपने देश का विकास चाहिये और ये https://www.videosprofitnetwork.com/watch.xml?key=8918e3ebc1d8b81261ae6dde0667357dउम्मीद सिमंचाल की जनता को एम आय एम और उनके पार्टी अध्यक्ष खासदार असदुद्दिन ओवेसी ने दिलाई है. जिस तऱ्ह महाराष्ट्र के बाद बिहार मे एम आय एम उभर रही है और देश का युवा पिढी एम आय एम के साथ जुड रहा है तो सबसे ज्यादा परेशानी कॉंग्रेस को हो रही है ऐसा लगता है. कॉंग्रेस ने बिहार चुनाव मे अपने सबसे बडे विरोधी बीजेपी को छोड एम आय एम पर निशाना सदा और एम आय एम को बीजेपी का एजंट बतानेमे अपनी सारी मेहनत व्यर्थ की. हर प्रचार सभा मे कॉंग्रेस बीजेपी से ज्यादा एम आय एम पार निशाना सादती रही. जैसे उन्हे बीजेपी से ज्यादा एम आय एम का खतरा है. साहजिक है जिस समाज की मदत से कॉंग्रेस इतने साल सत्ता मे टीकी रही उस समाज का अपने पास से खिसक जाने का दर उन्हे ये बुलवा रहा है.       

       हर समाज का नवजवान अब ओवेसी का साथ दे रहा है आने वाले दिनोमे बंगाल, उत्तर प्रदेश और जहा जहा चुनाव होंगे वाहपर एम आय एम चुनाव मैदान मे उतरेंगी ये फैसला एम आय एम अध्यक्ष असदुद्दिन ओवेसी ने लिया है. 

        एम आय एम को ये उम्मीद है जिस तरह महाराष्ट्र और बिहार की जनता ने उन्हे अपनाया है उसी तरह बंगाल और उत्तर प्रदेश की जनता भी उन्हे अपनायेंगी.अब असदुद्दिन ओवेसी के साथ देश की राजनीती मे उनका साथ देने औरंगाबाद के खासदार इम्तियाज जलील भी मैदान मे है.  खासदार इम्तियाझ जलील ने कहा है की कॉंग्रेस अपना आत्मपरीक्षण करे और एम आय एम पर अपनी नाकामियो का ठिकरा फोडण बंद करे. 

        बिहार सिमंचाल मी जहा जहा एम आय एम ने अपने उमिदवार मैदान मी उतारे थे ऐसा एक भी विधानसभा शेत्र नही है जहा कॉंग्रेस या आरजेडी एम आय एम के कारन हारे है.    


पढिये -

ऑल इंडिया मुस्लिम OBC ऑर्गनायझेशनच्या महासचिव पदी- हाजी इर्शादभाई...

अब सारा गुस्सा ओवेसी पर?...

महाराष्ट्र के बाद अब बिहार मे एम आय एम की धूम ....

औरंगाबादचे खासदार इम्तियाज जलील यांची जादू औरंगाबाद सोडून आता बिहारमध्येही.....

  

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कोरोना २ को कैसे रोके ?

कोरोना २ को कैसे रोके  ? 


            कोईभी बिमारीकी साथ  बिमारोकी संख्या पहले बार कम होनेके बाद जब उस बिमारिकी दुसरी लाट आती है उस वक़्त बिमारोकी संख्या पहेले से ज्यादा होनेका अंदेश रहेता है. १९१८ के दशक मे जब फ्लु महामारी दुनीयामे जोर पकडा और जब  बिमारोकी संख्या घटने लगी जनता ये समज रही थी की महामारी अब खतम हो रही है तब अचानकसे महामारी ने फिर  जोर पकडा और बिमारी  फिरसे बडने लगी और इस्की संख्या पहलेसे भी ज्यादा गतीसे बढने लगी.    

        कोविड १९ महामारी  से  पुरे दुनीया परेशान है और अब युरोपिअन देशोमे कोविड १९ फिर से अपने पैर फैला रहा है . इसे कोरोना की दुसरी लाट कहेना मुनासीफ होंगा. अब सवाल ये है की इस तऱ्ह के लाट क्यो आते है ?  

        कोईभी रोग या बिमारी  की साथ आने पर उसे काबु करने  केलीए  जनता तऱ्ह तऱ्ह की कोशीश करती है सरकार ने बताये हुए नियमो का पालन करती है. और जैसे जैसे रोग की साथ बढने लगती है नियम का पालन करनेवालो की संख्या बढने लगती है. इसके लिए हर एक व्यक्तीने जो मेहनत किया उसे भुल नही सख्ते. सरकार, पोलीस, आरोग्य से जुडे हुए डॉक्टर और कर्मचारी ,  समाजसेवक, सफाई कामगार आदी. सभीका अलग किरदार है.

       लेकीन इन्सानी फितरत ये है की वो ज्यादा दिनोतक बंदन मे नही रह सकता वो बंदन तोडने लगता है. नागरीक बताए हुए नियमोका पालन करणा कम कर देता है .उसी का कारण है की फिर मारीजोकी  संख्या बढने लागती है. बिमार लोगो कि संख्या नियमोका पालन नही करनेसे बढना शुरू होती है और फिर बिमारीकी दुसरी लाट के चपेत मे नागरिक आने लगते है.  ये लाट कभी जलद आती ही तो कभी देरीसे आती है और जनता इसके हत्ते चढ जाते है. जब तक सरकारी और खासगी दवाखाने  इस बिमारी का इलाज करनेमे सक्षम है तब तक ये हमारे काबुमे है लेकीन अगर मरीजोकी संख्या ज्यादा होगी तो ये बडी मुश्कील खडी कर देती है. सामान्य जनता की ये जिम्मेदारी है की ये बिमारी ज्यादा ना फहले. 
        
        
        जीस  देश मे थंडी का मौसम शुरू हो राहा है और वाह का तापमान बहुत कम है वहाकी जनताको अब ज्यादा समजदारी से काम लेना होंगा . अगर जरुरत नही है तो भीडवाले इलाके मे जाना टालना होंगा.     

भविष्य मे दुसरी लाट कब और किस तऱ्ह की होंगी ये बताना मुश्कील है.
  • जब तक हम सब मिलकर एक निश्चय नही करते तब तक ये मुमकिन नही.
  • जरुरत हो तो गर्दी वाले जगह पर ना जाए जितने गर्दी कम उतना धोका  कम.
  • निर्धारित नियमोका पालन करना.     
        अगर हर व्यक्तीने अपनी जिम्मेदारी समज कर खुद पर निरबंद लगाले तो कोरोना की दुसरी लाट कम दर्जे की होंगी.

        आशा करते है की  हमसब मिलकर कोरोना जैसी बिमारी का सामना करेंगे.    


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