जर्मनी की क्रिस्टल रात - क्या हुआ

 


जर्मनी की क्रिस्टल रात - क्या हुआ

जर्मनी की तमाम रातों में 9-10 नवंबर 1938 की रात ऐसी रही जो आज तक नहीं बीती है। न वहां बीती है और न ही दुनिया में कहीं और। उस रात को CRYSTAL NIGHT कहा जाता है। उस रात की आहट आज भी सुनाई दे जाती है। कभी कभी सचमुच आ जाती है। हिटलर की जर्मनी में यहुदियों के क़त्लेआम का मंसूबा उसी रात जर्मनी भर में पूरी तैयारी के साथ ज़मीन पर उतरा था। उनका सब कुछ छीन लेने और जर्मनी से भगा देने के इरादे से, जिसके ख़िलाफ़ वर्षों से प्रोपेगैंडा चलाया जा रहा था। 1938 के पहले के कई वर्षों में इस तरह की छिटपुट और संगीन घटनाएं हो रही थीं। इन घटनाओं की निंदा और समर्थन करने के बीच वे लोग मानसिक रूप से तैयार किये जा रहे थे जिन्हें प्रोपेगैंडा को साकार करने लिए आगे चलकर हत्यारा बनना था। अभी तक ये लोग हिटलर की नाना प्रकार की सेनाओं और संगठनों में शामिल होकर हेल हिटलर बोलने में गर्व कर रहे थे। हिटलर के ये भक्त बन चुके थे। जिनके दिमाग़ में हिटलर ने हिंसा का ज़हर घोल दिया था। हिटलर को अब खुल कर बोलने की ज़रूरत भी नहीं थी, वह चुप रहा, चुपचाप देखता रहा, लोग ही उसके लिए यहुदियों को मारने निकल पड़े। हिटलर की सनक लोगों की सनक बन चुकी थी। हिटलर की विचारधारा ने इन्हें ऑटो मोड पर ला दिया, इशारा होते ही क़त्लेआम चालू। हिटलर का शातिर ख़ूनी प्रोपेगैंडा मैनेजर गोएबल्स यहूदियों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा की ख़बरें उस तक पहुंचा रहा था। उन ख़बरों को लेकर उसकी चुप्पी और कभी-कभी अभियान तेज़ करने का मौखिक आदेश सरकारी तंत्र को इशारा दे रहा ता कि क़त्लेआम जारी रहने देना है। हिटलर की इस सेना का नाम था SS, जिसके नौजवानों को जर्मनी के लिए ख़्वाब दिखाया था। सुपर पावर जर्मनी, यूरोप का बादशाह जर्मनी। सुपर पावर बनने का यह ख़्वाब फिर लौट आया है। अमरीका फ्रांस के नेता अपने देश को फिर से सुपर-पावर बनाने की बात करने लगे हैं।

“हमें इस बात को लेकर बिल्कुल साफ रहना चाहिए कि अगले दस साल में हम एक बेहद संवेदनशील टकराव का सामना करने वाले हैं। जिसके बारे में कभी सुना नहीं गया है। यह सिर्फ राष्ट्रों का संघर्ष नहीं है,बल्कि यह यहुदियों, फ्रीमैसनरी, मार्क्सवादियों और चर्चों की विचारधारा का भी संघर्ष है। मैं मानता हूं कि इन ताकतों की आत्मा यहुदियों में है जो सारी नकारात्मकताओं की मूल हैं। वो मानते हैं कि अगर जर्मनी और इटली का सर्वनाश नहीं हुआ तो उनका सर्वनाश हो जाएगा। यह सवाल हमारे सामने वर्षों से है। हम यहुदियों को जर्मनी से बाहर निकाल देंगे। हम उनके साथ ऐसी क्रूरता बरतेंगे जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की होगी।“

यह भाषण आज भी दुनिया भर में अलग अलग संस्करणों में दिया जा रहा है। भारत से लेकर अमरीका तक में। SS का नेता हिम्मलर ने 9-19 नवंबर 1938 से चंद दिन पहले संगठन के नेताओं को भाषण दिया था ताकि वे यहुदियों के प्रति हिंसा के लिए तैयार हो जाएं। तैयारी पूरी हो चुकी थी। विचारधारा ने अपनी बुनियाद रख दी थी। अब इमारत के लिए बस ख़ून की ज़रूरत थी। हम इतिहास की क्रूरताओं को फासीवाद और सांप्रदायिकता में समेट देते हैं, मगर इन संदूकों को खोल कर देखिये, आपके ऊपर कंकाल झपट पड़ेंगे। जो कल हुआ,वही नहीं हो रहा है। बहुत कुछ पहले से कहीं ज़्यादा बारीक और समृद्ध तरीके से किया जा रहा है। विचारधारा ने जर्मनी के एक हिस्से को तैयार कर दिया था।

7 नवंबर 1938 की रात पेरिस में एक हत्या होती है जिसके बहाने जर्मनी भर के यहुदियों के घर जला दिये जाते हैं। इस घटना से हिटलर और गोएबल्स के तैयार मानस-भक्तों को बहाना मिल जाता है जैसे भारत में नवंबर 1984 में बहाना मिला था, जैसे 2002 में गोधरा के बाद गुजरात में बहाना मिला था। 7 नवंबर को पेरिस में जर्मनी के थर्ड लिगेशन सेक्रेट्री अर्नस्ट वॉम राथ की हत्या हो जाती है। हत्यारा पोलैंड मूल का यहूदी था। गोएबल्स के लिए तो मानो ऊपर वाले ने प्रार्थना कबूल कर ली हो। उसने इस मौको को हाथ से जाने नहीं दिया। हत्यारे के बहाने पूरी घटना को यहुदियों के खिलाफ़ बदल दिया जाता है। यहुदियों को पहले से ही प्रोपेगैंडा के ज़रिये निशानदेही की जा रही थी। उन्हें खलनायक के रूप में पेश किया जा रहा था। चिंगारी सुलग रही थी, हवा का इंतज़ार था, वो पूरा हो गया। गोएबल्स ने अंजाम देने की तैयारी शुरू कर दी। उसके अगले दिन जर्मनी में जो हुआ, उसके होने की आशंका आज तक की जा रही है।

पिछले सात आठ सालों से हिटलर ने अपने समर्थकों की जो फौज तैयार की थी, अब उससे काम लेने का वक्त आ गया था। उस फौज को खुला छोड़ दिया गया। पुलिस को कह दिया गया कि किनारे हो जाए बल्कि जहां यहुदियों की दुकानों को जलाना था, वहां यहुदियों को सुरक्षा हिरासत में इसलिए लिया गया ताकि जलाने का काम ठीक से हो जाए। सारे काम को इस तरह अंजाम दिया गया ताकि सभी को लगे कि यह लोगों का स्वाभाविक गुस्सा है। इसमें सरकार और पुलिस का कोई दोष नहीं है। जनाक्रोश के नाम पर जो ख़ूनी खेल खेला गया उसका रंग आज तक इतिहास के माथ से नहीं उतरा है। ये वो दौर था जब यूरोप में आधुनिकता अपनी जवानी के ग़ुरूर में थी और लोकतंत्र की बारात निकल रही थी।

गोएबल्स ने अपनी डायरी में लिखा है, “ मैं ओल्ड टाउन हॉल में पार्टी के कार्यक्रम में जाता हूं, काफी भीड़ है। मैं हिटलर को सारी बात समझाता हूं। वो तय करते हैं कि यहूदियों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन होने दो, पुलिस से पीछे हटने को कहो। यहूदियों को लोगों के गुस्से का सामना करने दो। मैं तुरंत बाद पुलिस और पार्टी को आदेश देता हूं। फिर मैं थोड़े समय के लिए पार्टी कार्यक्रम में बोलता हूं। खूब ताली बजती है। उसके तुरंत बाद फोन की तरफ लपकता हूं। अब लोग अपना काम करेंगे”

आपको गोएबल्स की बातों की आहट भारत सहित दुनिया के अख़बारों में छप रहे तमाम राजनीतिक लेखों में सुनाई दे सकती है। उन लेखों में आपको भले गोएबल्स न दिखे, अपना चेहरा देख सकते हैं। जर्मनी में लोग खुद भीड़ बनकर गोएबल्स और हिटलर का काम करने लगे। जो नहीं कहा गया वो भी किया गया और जो किया गया उसके बारे में कुछ नहीं कहा गया। एक चुप्पी थी जो आदेश के तौर पर पसरी हुई थी। इसके लिए प्रेस को मैनेज किया गया। पूरा बंदोबस्त हुआ कि हिटलर जहां भी जाए, प्रेस उससे यहूदियों के ख़िलाफ़ होने वाली हिंसा को लेकर सवाल न करे। हिटलर चुप रहना चाहता था ताकि दुनिया में उसकी छवि ख़राब न हो। चेक संकट से बचने के लिए उसने यहूदी वकीलों के बहिष्कार के विधेयक पर दस्तख़त तो कर दिया मगर यह भी कहा कि इस वक्त इसका ज़्यादा प्रचार न किया जाए। वैसे अब प्रोपेगैंडा की ज़रूरत नहीं थी। इसका काम हो चुका था। यहूदियों के ख़िलाफ़ हिंसा के दौर का तीसरा चरण होने वाला था।

1933 की शुरूआत में जर्मनी में 50,000 यहूदी बिजनेसमेन थे। जुलाई 1938 तक आते आते सिर्फ 9000 ही बचे थे। 1938 के बसंत और सर्दी के बीच इन्हें एकदम से धकेल कर निकालने की योजना पर काम होने लगा। म्यूनिख शहर में फरवरी 1938 तक 1690 यहूदी बिजनेसमेन थे, अब सिर्फ 660 ही बचे रह गए। यहूदियों के बनाए बैंकों पर क़ब्ज़ा हो गया। यहूदी डॉक्टर और वकीलों का आर्थिक बहिष्कार किया जाने लगा। आर्थिक बहिष्कार करने के तत्व आज के भारत में भी मिल जायेंगे। आप इस सिक्के को किसी भी तरफ से पलट कर देख लीजिए, यह गिरता ही है आदमी के ख़ून से सनी ज़मीन पर। यहूदियों से कहा गया कि वे पासपोर्ट पर J लिखें। यहूदी मर्द अपने नाम के आगे इज़राइल और लड़कियां सैरा लिखें जिससे सबको पता चल जाए कि ये यहूदी हैं। नस्ल का शुद्धिकरण आज भी शुद्धीकरण अभियान के नाम से सुनाई देता ही होगा। चाहे आप कितना भी रद्दी अख़बार पढ़ते होंगे।

यहूदियों के पूजा घरों को तोड़ा जाने लगा। क़ब्रिस्तानों पर हमले होने लगे। 9 नवंबर की रात म्यूनिख के सिनेगॉग को नात्ज़ी सेना ने जला दिया। कहा गया कि इसके कारण ट्रैफिक में रूकावट आ रही थी। आग बुझाने वाली पुलिस को आदेश दिया गया कि यहुदियों की जिस इमारत में आग लगी है, उस पर पानी की बौछारें नहीं डालनी हैं, बल्कि उसके पड़ोस की इमारत पर डालनी है ताकि किसी आर्यन मूल के जर्मन का घर न जले। आग किसी के घर में और बुझाने की कोशिश वहां जहां आग ही न लगी हो। यही तर्क अब दूसरे रूप में है। आप जुनैद की हत्या के विरोध में प्रदर्शन कीजिए तो पूछा जाएगा कि कश्मीरी पंडितों की हत्या के विरोध में प्रदर्शन कब करेंगे। जबकि जो पूछ रहे हैं वही कश्मीरी पंडितों की राजनीति करते रहे हैं और अब सरकार में हैं। कभी कभी बताना चाहिए कि कश्मीरी पंडितों के लिए किया क्या है। बहरहाल, नफ़रत की भावना फैलाने में जर्मन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसरों ने भी सक्रिय भूमिका निभाई। वे क्लास रूम में यहुदियों का चारित्रिक और मनोवैज्ञानिक विश्लेषण कर पढ़ा रहे थे जैसे आज कर व्हाट्स अप यूनिवर्सिटी में मुसलमानों का चारित्रिक विश्लेषण होता रहता है। जर्मनी के नौकरशाह ऐसे विधेयक तैयार कर रहे थे जिससे यहुदियों की निशानदेही हो। उनके मौलिक अधिकार ख़त्म किये जाएं। जो लोग यहुदियों के समर्थन में बोल रहे थे, वहां की पुलिस पकड़ कर ले जा रही थी। दस साल के भीतर जर्मनी को यहुदियों से ख़ाली करने का आदेश हिटलर गोएबल्स को देता है। सब कुछ लोग कर रहे थे, सरकार कुछ नहीं कर रही थी। सरकार बस यही कर रही थी कि लोगों को अपने मन का करने दे रही थी।

गोएबल्स यहुदी मुक्त जर्मनी को अंजाम देने के लिए तेज़ी से काम कर रहा था। वह अपनी बेचैनी संभाल नहीं पा रहा था। इसके लिए वो सबसे पहले बर्लिन को यहूदी मुक्त बनाने की योजना पर काम करता रहता था। बर्लिन में यहुदियों को पब्लिक पार्क में जाने से रोक दिया गया। लोगों ने उनकी दुकानों से सामान ख़रीदना बंद कर दिया। दुकानों पर निशान लगा दिये गए कि यह दुकान किसी यहूदी की है। यहुदियों के लिए अलग से पहचान पत्र जारी किये गए। रेलगाड़ी में विशेष डब्बा बना दिया गया। यहूदी मिली जुली आबादी के साथ रहते थे। वहां से उजाड़ कर शहर के बाहर अलग बस्ती में बसाने की योजना बनने लगी। इसके लिए पैसा भी अमीर यहुदियों से देने को कहा गया। कोशिश यही थी कि हर जगह यहूदी अलग से दिख जाएं ताकि उन्हें मारने आ रही भीड़ को पहचानने में चूक न हो। आज कल लोग ख़्वामख़ाह आधार नंबर से डर जाते हैं। जैसे इतिहास में पहले कभी कुछ हुआ ही नहीं। आधार कार्ड से पहले भी तो ये सब हो चुका है। उसके बिना भी तो हो सकता है। बीमा कंपनियों से कह दिया गया था कि यहुदियों के दुकानों, मकानों के नुकसान की भरपाई न करें। यहुदियो को हर तरह से अलग-थलग कर दिया गया।

जर्मनी का पुलिस मुख्यालय इस नरसंहार की नोडल एजेंसी बन गया। दुकानें तोड़ी जाने लगीं। 9-10 नवंबर की रात यहुदियों के घर जलाये जाने लगे। SS के लोग दावानल की तरह फैल गए। बर्लिन में 15 सिनेगॉग जला दिये गए। हिटलर आदेश देता है कि 20-30000 यहुदियों को तुरंत गिरफ्तार किया जाए। जेल में जगह नहीं थी इसलिए सिर्फ मर्द और अमीर यहुदियों को गिरफ्तार किया गया था। जब उस रात गोएबल्स होटल के अपने कमरे में गया तो यहूदी घरों की खिड़कियां तोड़ने की आवाज़ें आ रही थीं, उसने अपनी डायरी में लिखा, शाबाश, शाबाश। जर्मन लोग अब भविष्य में याद रखेंगे कि जर्मन राजनयिक की हत्या का क्या मतलब होता है। याद रखने की राजनीति आज भी दुनिया में हो रही है। बिल्कुल आपकी आंखों के सामने। बहुत हद तक आपके समर्थन से ही!

नवंबर 1938 की उस रात सैंकड़ों की संख्या में यहुदियों की हत्या कर दी गई। महिलाएं और बच्चों को बुरी तरह ज़ख्मी किया गया। 100 के करीब पूजास्थल बर्बाद कर दिये गए। 8000 दुकानें जला दी गईं। अनगिनत अपार्टमेंट को तहत नहस कर दिया गया। बड़े शहरों के पेवमेंट पर शीशे के टुकड़े बिखरे हुए थे। दुकानों की सामनें सड़कों पर बिखरी हुई थीं। यहुदियों की स्मृतियों से जुड़ी हर चीज़ नष्ट कर दी गई थी, यहां तक कि उनकी निजी तस्वीरें भी। उस रात बहुत से यहूदी मर्दों और औरतों ने ख़ुदकुशी भी कर ली। बहुत से लोग घायल हुए जो बाद में दम तोड़ गए। पुलिस ने 30,000 मर्द यहूदियों को ज़बरन देश से बाहर निकाल दिया। सब कुछ लोग कर रहे थे। भीड़ कर रही थी। हिटलर भीड़ को निर्देश नहीं दे रहा था। जो भीड़ बनी थी, उसमें अनेक हिटलर थे। विचारधारा के इंजेक्शन के बाद उसे करना यही था कि अपने शत्रु को मारना था। जिसे हिटलर के साथी लगातार प्रोपेगैंडा के ज़रिये बता रहे थे कि हमारे शत्रु यहूदी हैं।

यहुदियों के ख़िलाफ़ हिटलर की जर्मनी में जो लगातार प्रोपेगैंडा चला, उसी के हिस्से ये कामयाबी आई। बड़े बड़े इतिहासकारों ने लिखा है कि प्रोपेगैंडा अपना काम कर गया। हर तरह एक ही बात का प्रचार हो रहा था। दूसरी बात का वजूद नहीं था। लोग उस प्रोपेगैंडा के सांचे में ढलते चले गए। लोगों को भी पता नहीं चला कि वे एक राजनीतिक प्रोपेगैंडा के लिए हथियार में बदल दिये गए हैं। आज भी बदले जा रहे हैं। जर्मनी में पुलिस ने गोली नहीं चलाई, बल्कि लोग हत्यारे बन गए। जो इतिहास से सबक नहीं लेते हैं, वो आने वाले इतिहास के लिए हत्यारे बन जाते हैं। प्रोपेगैंडा का एक ही काम है। भीड़ का निर्माण करना। ताकि ख़ून वो करे, दाग़ भी उसी के दामन पर आए। सरकार और महान नेता निर्दोष नज़र आएं। भारत में सब हत्या करने वाली भीड़ को ही दोष दे रहे हैं, उस भीड़ को तैयार करने वाले प्रोपेगैंडा में किसी को दोष नज़र नहीं आता है। कोई नहीं जांच करता कि बिना आदेश के जो भीड़ बन जाती है उसमें शामिल लोगों का दिमाग़ किस ज़हर से भरा हुआ है।

हिटलर जर्मन भीड़ पर फ़िदा हो चुका था। वो झूम रहा था। भीड़ उसके मुताबिक बन चुकी थी। यहूदी जैसे तैसे जर्मनी छोड़कर भागने लगे। दुनिया ने उनके भागने का रास्ता भी बंद कर दिया। ख़ुद को सभ्य कहने वाली भीड़ को लेकर चुप थी। यही नहीं भीड़ से प्रोत्साहित होकर हिटलर ने एक नायाब कानून बनाया। यहूदियों को अपने नुकसान की भरपाई ख़ुद ही करनी होगी। जैसे वो अपनी दुकानों और घरों में आग ख़ुद लगाकर बैठे थे। जब भीड़ का साम्राज्य बन जाता है तब कुर्तक हमारे दिलो दिमाग़ पर राज करने लगता है।

इसीलिए कहता हूं कि भीड़ मत बनिये। संस्थाओं को जांच और जवाबदेही निभाने दीजिए। जो दोषी है उसकी जांच होगी। सज़ा होगी। हालांकि यह भी अंतिम रास्ता नहीं है। हिटलर की जर्मनी में पुलिस तो भीड़ की साथी बन गई थी। मेरी राय में भीड़ बनने का मतलब ही है कि कभी भी और कहीं भी हिटलर का जर्मनी बन जाना। अमरीका में यह भीड़ बन चुकी है। भारत में भी भीड़ लोगों की हत्या कर रही है। अभी इन घटनाओं को इक्का दुक्का के रूप में पेश किया जा रहा है। जर्मनी में पहले दूसरे चरण में यही हुआ। जब तीसरा चरण आया तब उसका विकराल रूप नज़र आया। तब तक लोग छोटी-मोटी घटनाओं के प्रति सामान्य हो चुके थे। इसीलिए ऐसी किसी भीड़ को लेकर आशंकित रहना चाहिए। सतर्क भी। भीड़ का अपना संविधान होता है। अपना देश होता है। वो अपना आदेश ख़ुद गढ़ती है, हत्या के लिए शिकार भी। दुनिया में नेताओं की चुप्पी का अलग से इतिहास लिखा जाना चाहिए ताकि पता चले कि कैसे उनकी चुप्पी हत्या के आदेश के रूप में काम करती है।

“THE RADICALISATION ENCOUNTERED NO OPPOSITION OF ANY WEIGHT” मैं जिस किताब से आपके लिए किस्से के रूप में पेश कर रहा हूं, उसकी यह पंक्ति देखकर चौंक गया। चौंक इसलिए गया कि लगा कि भारत के अख़बारों में ऐसा कुछ पढ़ने को तो नहीं मिला है। हिटलर की मानस सेना का किसी भी प्रकार का विरोध ही नहीं हुआ। आम लोग अपनी शर्मिंदगी का इज़हार करते रहे कि उनके समाज ये सब हुआ मगर ख़ुद को लाचार कहते रहे। जो बोल सकते थे, वो चुप रहे। अपने पड़ोसी को प्यार करने की बात सीखाने वाले चर्चों के नेता भी चुप रहे। दुनिया के कई देशों ने यहुदियों को शरण देने से मना कर दिया।

हम चुप हैं कि दिल सुन रहे हैं…..ये गाना आपको अंतरात्मा के दरवाज़े तक ले जाता है। सुनिये। प्रधानमंत्री मोदी का शुक्रिया कि वो इज़रायल दौरे पर होलोकॉस्ट मेमोरियल गए। न गए होते तो इतना कुछ याद दिलाने के लिए नहीं मिलता। उन्होंने मेमोरियल में मारे गए यहुदियों के प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित नहीं किये हैं, बल्कि मारने वाले हत्यारे हिटलर को भी खारिज किया है। वहां जाते हुए उन्होंने हिटलर की क्रूरता के निशान देखे होंगे। राष्ट्र प्रमुखों की ऐसी यात्राएं सिर्फ उनके लिए नहीं होती हैं, हमारे सीखने के लिए भी होती हैं। हम भी कुछ सीखें। समझें तो वाकई ये दुनिया मोहब्बत के रंग में रंगी एक नज़र आएगी। इज़रायल की जैसी भी छवि है, यहूदियों के साथ जो हुआ, उसके लिए दुनिया आज भी अपराधी है। मगर उसी इज़राइल पर फिलिस्तिन क्रूरता बरतने और नरसंहार करने के आरोप लगाता है। क्या हिंसा का शिकार समाज अपने भोगे हुए की तरह या उससे भी ज़्यादा हिंसा करने की ख़्वाहिश रखता है! गांधी ने तभी अंहिसा पर इतना ज़ोर दिया। अंहिसा नफ़रतों के कुचक्र से मुक्ति का मार्ग है। हम कब तक फंसे रहेंगे,

मुस्लिम स्वतंत्र सेनानींचा महाविकास आघाडी सरकारला इतका द्वेष का ? डॉ परवेज अशरफी

 

मुस्लिम स्वतंत्र सेनानींचा महाविकास आघाडी सरकारला इतका द्वेष का ? डॉ परवेज अशरफी

महविकास आघाडी सरकार आल्या नंतर प्रश्सन तर्फे राष्ट्रिय महापुरुष, थोर व्यक्ती, राष्ट्रीय दिन संदर्भात एक परिपत्रक निघतो त्यात भारत देशाला स्वतंत्र मिळवण्यासाठी व स्वतंत्र भारताचे पहिले शिक्षण मंत्री मौलना अबुल कलाम आझाद यांचे नाव सरकारने वगळे आहे. मागील तीन वर्षांपासून विविध संघटना सरकारला निवेदन देऊन या विषया कडे लक्ष केंद्रित करत आहे. परंतु दर वर्षी सरकार दुर्लक्ष करून परिपत्रकात स्वतंत्र सैनिक मौलाना अबुल कलाम आझाद यांचा नाव वगळत आहे. मौलाना यांचा नाव थोर पुरुषांच्या यादीतून जाणून बुजून वगळण्यात आले असल्याचे किंवा मुस्लीम स्वतंत्र सेनानी यांची जनतेला माहिती न व्हावी या हेतूने षडयंत्र केले असल्याचे आरोप एम आय एम जिल्हा अध्यक्ष डॉ परवेज अशरफी यांनी महाविकास आघाडी सरकारवर केले. 


एम आय एम तर्फे निवेदनाचे पत्र मा. मुख्य मंत्री यांना मेल व अहमदनगर जिल्हा अधिकारी यांच्या माद्यमातून दिले. निवेदनात पुढे लिहिले आहे की भारताच्या स्वतंत्रता साठी अनेक थोर पुरुषांनी आपले योगदान दिले आहे त्यात मुस्लीम समाज ही त्यांच्या खांदे ला खांदा लाऊन लढत होता. राजधानी दिल्ली येते गेले तर आपणास इंडिया गेट येथे ९२ हजार स्वतंत्र सेनानी यांचे नाव कोरलेले दिसेल त्यात ६२ हजार नावे फक्त मुस्लीम स्वतंत्र सेनानी यांचे आहे. मुस्लिम समाज हा भारताचा एक अंग आहे कोणी कितीही प्रयत्न केले तरी मुस्लिमांना बाजूला करने आणि मुस्लीम समाजाचे योगदानाला दुर्लक्ष करणे शक्य होणार नाही. एम आय एम तर्फे मा. जिल्हा अधिकारी साहेब मार्फत महाराष्ट्राचे मुख्य मंत्री यांना विनंती करण्यात आली की त्यांनी परिपत्रकात बदल करून भारताचे पाहिले शिक्षण मंत्री मौलाना अबुल कलाम आझाद यांचे नाव समाविष्ट करावे आणी जर हे शक्य नसेल किंवा मौलाना अबुल कलाम आझाद यांना थोर पुरुष,स्वतंत्र सेनानी महाविकास आघाडी मानत नसेल तर तसे खुलेआम जाहीर करावे.निवेदनात एम आय एम जिल्हा अध्यक्ष डॉ परवेज अशरफी,जावेद शेख जिल्हा महासचिव, मुफ्ती अल्ताफ जिल्हा उप-अध्यक्ष, तौसीफ मणियार शिर्डी लोकसभा अध्यक्ष, शह्नावज तांबोळी - विध्यार्थी जिल्हा अध्यक्ष, अमीर खान - शहर युवा अध्यक्ष, इम्रान शेख - युवा शहर उपाध्यक्ष, बशीर शेख प्रवक्ता सनाउल्लाह तांबटकर - विद्यार्थी शहर अध्यक्ष आदींचे सह्या आहेत.

दिव्यांग विद्यार्थी करीता लेखनिक/ वाचक

 

दिव्यांग विद्यार्थी करीता लेखनिक/ वाचक 

                     आपल्या समाजातील अतिशय मागास आणि वंचित दुसर्याच्या मदतीवर अवलंबून असणारा आपल्या कुटुंबावर व मित्रांवर ओझ वाटणारा. पांगळया. लंगड्या आंधळ्या वेड अशी विविध नांवाने अवहेलना केली जाणारे अंध. कर्णबधिर. अस्थिव्यंग. मतिमंद. बहुविकलांग. कुष्ठरोगी. निराधार/ निराश्रीत. अपंग बेरोजगार. भिक्षेकरी अपंग. अपंग विद्यार्थी. असे विविध प्रकार अपंगामधये शासनाने केले आहेत पण आपले लोक यांना सामाजिक न्याय देण्यास तयार नाहीत. ही आपली मानसिकता आहे. 

      शासनाने अपंग साठी कल्याणकारी योजना तयार केल्या आणि समाजातील या वंचित लोकांना हक्काचे व्यासपीठ मिळाले. यामध्ये ग्रामपंचायत नगरपालिका महानगरपालिका यासाठी येणारा विकास निधी यातून पाच टक्के रक्कम अपंग कल्याणासाठी खर्च करण्याचा निर्णय शासनाने घेतला आहे. घरकुल योजना. शैक्षणिक योजना. वैद्यकीय योजना. बचत गट योजना. कला कौशल्य विभाग. अपंगांसाठी क्रिडा संकुल. करमणुक क्षेत्र. सुलभ स्वच्छता गृह. मालमत्ता सुट. पिठाची चक्की. अपंगांसाठी शेती अनुदान. अपंग विद्यार्थी शालेय सवलत गणवेश शैक्षणिक सहाय्य निधी. उच्च व तंत्रशिक्षण. अपंग विद्यार्थी साठी महाराष्ट्र लोकसेवा आयोग स्पर्धा परिक्षा. अपंग विद्यार्थी खेळाडू अर्थसहाय्य. अशा विविध योजना सुध्दा शासन विद्यार्थी व दिव्यांग लोकांसाठी राबविण्यात येतात

       ‌. शारीरिक व मानसिक दृष्ट्या दिव्यांग विद्यार्थी अतिशय हुशार असतात कारणं देवाने यांना जन्माला घालताना एक शारीरिक मानसिक शक्ती कमी केली असेल तर त्यांना बौद्धिक शक्ति प्रदान केलेली असते म्हणजे अतिशय सुंदर हुशार असे गुण यामध्ये असतात. यासाठी शासनाने वेळोवेळी शिक्षण संस्थांना अशा हुशार मुलांचा बौद्धिक विकास व समाजातील इतर घटकाप्रमाणे नोकरी व्यवसाय करण्याची शक्ति यावी यासाठी वायाचया ६/१४/ १८ या वयापर्यंत विशेष गरज असणार्या दिव्यांग विद्यार्थी यासाठी लेखनिक/ वाचक उपलब्ध करून त्यांची प्रगती विकास साधण्यासाठी मोलाची मदत करा असा शासन निर्णय शालेय शिक्षण क्रिडा विभाग शासन निर्णय क्र संक्रिरण २०१७/(११८/११९) एस डी दिनांक १५/२/२०१६ व शालेय शिक्षण व क्रिडा विभाग शासन निर्णय क्र संक्रिरण २०१७(११८/१७) एस डी व मंत्रालय विस्तार भवन मुंबई ४०००३२ दिनांक आक्टेबर २०१८ या विषयानुसार इ १ ली ते १२ वी पर्यंत विशेष गरजा असणारया दिंवयाग विद्यार्थी अध्ययन शैली नुसार मुल्यांकन बाबत व शैक्षणिक सवलती संदर्भात मार्गदर्शक सूचना शासन स्तरावरून निर्गमित केलेल्या आहेत बालकांचा सकतिचया व मोफत शिक्षणाचा अधिकार अधिनियम २००९ व भारतीय संविधान कलम ४५ नुसार शिक्षण हा प्रत्येक मुलांचा हक्क आहे. वय वर्षे ६ ते १४ वर्षाच्या प्रत्येक बालकास व विशेष गरज असणार्या विद्यार्थ्यांना वयाच्या १८ वर्षे वयोगटापरयणत मोफत व सकतिचे शिक्षण विषयक सुविधा देणे आवश्यक आहे

              विशेष गरज असणारे दिंवयाग विद्यार्थ्यांना सदर शासन निर्णयातील प्रपत्र अ ब प्रपत्र ब मध्ये नमूद करण्यात आलेल्या शैक्षणिक सवलती सुविधा शालेय विद्यार्थी व इयत्ता १० वी व १२ वी चया विद्यार्थ्यांना लागू करण्यात आलेल्या आहे त्यामध्ये प्रपत्र ब. मध्ये नमूद केलेल्या लेखनिक/ वाचक या संदर्भातील तरतुदींचा समावेश आहे त्यामध्ये प्रामुख्याने पुढील महत्वाच्या तरतुदींचा समावेश करण्यात आलेला आहे

*# लेखनिक

* इ १ ली ते ९ वी आवश्यकतेनुसार लेखनिक घेण्यात परवानगी देण्यात यावी त्याकरिता लेखनिक हा मागील वर्षातील असावा

* इ १० वी ते १२ वी पर्यंत विशेष गरज असलेल्या विद्यार्थ्यांना गरजेनुसार प्रोढ लेखनिक घेण्याचे स्वातंत्र्य आहे

*# लेखनिक घेण्याबाबत निकष

* लेखनिक निवडताना प्राधान्याने परिक्षा द्यावयाच्या वर्गाच्या एक इयत्ता खालच्या वर्गाचा विद्यार्थी निवडण्यात यावा

* उपरोक्त १ मध्ये नमूद प्रमाणे लेखनिक उपलब्ध होत नसल्यास प्रौढ लेखनिक घेता येतो

* प्रौढ लेखनिक शाळेतील अथवा अन्य शाळेतील शिक्षक खाजगी शिकवणी वर्गातील शिक्षक प्रतिनिधी विद्यार्थी यांचें जवळचे नातेवाईक नसावेत तथापि विशेष बाब म्हणून जवळच्या नातेवाईकांना लेखनिक म्हणून देण्याचा अधिकार ( प्रकरणांची शहानिशा करून) संबंधित अध्यक्ष विभागीय मंडळ यांना राहतील

* दिवयांग विद्यार्थ्यांना मागील इयत्तेचा विद्यार्थी अथवा प्रौढ लेखनिक म्हणून देण्याचा अधिकार संबंधित शाळेच्या मुख्याध्यापकांना राहतील दिवयांग विद्यार्थ्यांच्या असणार्या अडचणी व गरजा याबद्दलची जाणीव व संबंधित शाळेच्या मुख्याध्यापकांना असल्याचे हे अधिकार त्यांना राहतील

*# दिवयांग विद्यार्थ्यांना लेखनिक देण्याकरिता शिफारस देण्याची जबाबदार पध्दती

इयत्ता १० वी १२ वी चया विद्यार्थ्यांकरिता शाळेतील मुख्याध्यापक/ कनिष्ठ महाविद्यालयांचे प्राचार्य सदर विद्यार्थ्यांसाठी लेखनिक देण्याबाबत स्पष्ट अभिप्राय/ शिफारशीसह संबंधित विभागीय शिक्षण मंडळाकडे आॅगसट पर्यंत करतील विभागीय मंडळ प्रस्तावाच्या मानयतेबाबत अहवाल १५ दिवसांच्या आत संबंधित शाळा कनिष्ठ महाविद्यालय यांना लेखी कळवतील

* ज्या विद्यार्थ्यांना लेखनिक दिलेजातील त्या लेखनिकाच्या तपशील शाळेचे मुख्याध्यापक/ कनिष्ठ महाविद्यालयांचे प्राचार्य संबंधित ( प्रौढ लेखनिकाचे शासनमान्य. ओळखपत्राची प्रत व पालकांचा अर्ज या तपशीलासह ) विभागीय शिक्षण मंडळाकडे सादर करतील

* अपवादात्मक परिस्थितीमध्ये ऐनवेळी लेखनिक देण्याबाबत निर्णय संबंधित परिक्षा केंद्र प्रमुखास घ्यावा लागल्यास त्यांना त्याबाबतचा अधिकार राहील त्यांनी संपूर्ण वस्तुस्थिती सह विभागीय परीक्षा मंडळाची त्याकरीता कार्य ततर मान्यता द्यावी तसेच विभागीय मंडळाने याकरिता योग्य ते सहकार्य करावे

*# लेखनिक/ वाचक उपलब्धतेबाबत मार्गदर्शक सूचना

* लेखनिक/ वाचक म्हणून शालेय शिक्षण घेत असलेल्या सामान्य विद्यार्थ्यांना प्राधान्य देण्यात यावे

* इच्छूक विद्यार्थ्यांना नोंदणी अर्ज/ संमतीपत्र भरून घेण्यात यावेत

* लेखनिक/ वाचक हे शाळेतील किंवा त्या परिस्थितील वास्तव्यास असावेत

* लेखनिक/ वाचक नोंदणी करताना लेखनिक विद्यार्थी असल्यास त्यांच्या पालकांचे संमतीपत्र घेण्यात यावे

* लेखनिक/ वाचकांना इयत्ता विषय. परिक्षेचा कालावधी वेळ. दिवयांग विद्यार्थ्यां बाबत पूर्व कल्पना देण्यात यावी

* लेखनिक/ वाचक म्हणून नोंदणी केलेलें विद्यार्थी/ प्रौढ व्यक्ती परिक्षेदरमयान अपरिहार्य कारणामुळे नकार दिल्यास अथवा उपस्थित राहू न शकल्यास पर्यायी व्यवस्था सुनिश्चित करण्यात यावी

* नोंदणीकृत लेखनिक/ वाचक यांचे समुपदेशन करण्यात यावे

* मुख्याध्यापक/ वर्गशिक्षकानी लेखनिक/ वाचक होण्यास सामान्य विद्यार्थ्यांना प्रोत्साहन करावे

*# लेखनिक/ वाचक बॅकबाबत

* विशेष गरजा असणारया दिवयांग विद्यार्थ्यांना अध्ययनासाठी लेखनिक/ वाचकांची आवश्यकता असते या विद्यार्थ्यांना लेखनिक/ वाचक म्हणून शालेय शिक्षण घेत असलेलें विद्यार्थी आणि वयाने प्रौढ असलेलें सामान्य नागरिकही सहहय करु शकतात अशा दिवयांग विद्यार्थ्यांसाठी शासनाच्या वतीने राज्य शैक्षणिक संशोधन व प्रशिक्षण परिषद महाराष्ट्र पुणे यांचें मार्फत इच्छूक लेखनिक/ वाचकांची बॅंक तयार करण्यात येत आहे. सर्व माध्यमिक शाळेचे मुख्याध्यापक व कनिष्ठ महाविद्यालयांचे प्राचार्य यांनी आपल्या शाळेतील परिसरातील विद्यार्थी/ प्रोढ नागरिक यांना या समाजपयोगी कामासाठी प्रेरित करावे जे इच्छूक विद्यार्थी/ प्रौढ नागरिक सवयंव प्रेरणेने लेखनिक वाचक म्हणून काम करण्यास इच्छूक असतील त्यांची माहिती देणे यासाठी शासन आदेश करत आहे

        मुख्याध्यापक व कनिष्ठ महाविद्यालयांचे प्राचार्य यांनी सदर शासन निर्णयातील २ मधील २.४ नुसार या संदर्भातील आपले काम जबाबदारीने पार पाडावे कोणताही दिवयांग विद्यार्थी निर्धारित सेवा सुविधा पासून वंचित राहणार नाही हे सर्व शैक्षणिक क्षेत्रातील काम करणारे यांचे परम कर्तव्य आहे

          समाजसेवा बंद आंदोलन मोर्चा उपोषण रस्ता रोको आंदोलन निवेदन तक्रार अर्ज मागणी अर्ज प्रचार प्रसार प्रसिध्दी जाहिरात वाचन लेखन संबोधन प्रबोधन आणि मग नेतृत्व करण्यासाठी

बांधकाम कामगार व इतर श्रमजीवी कर्मचारी युनियन इस्लामपूर

रुग्ण हक्क व अधिकार समिती सांगली जिल्हा

रेशन अधिनियम कायदा २०१३ रक्षक समिती सांगली जिल्हा

मौलाना आझाद विचार मंच सांगली जिल्हा

माहिती अधिकार नियोजन समिती सांगली जिल्हा

संस्थापक अध्यक्ष अहमद नबीलाल मुंडे

९८९०८२५८५९

भेसळ पनीर कारखान्यावर छापा

     

  

भेसळयुक्त पनीर उत्पादन करणाऱ्या कारखान्यावर अन्न व औषध प्रशासनाच्या दक्षता पथकाचा छापा

अन्न व औषध प्रशासनाच्या दक्षता विभागाला मिळालेल्या गोपनीय माहितीच्या आधारे दि. १९.१.२०२२ रोजी दक्षता विभाग, ठाणे यांनी मे. आर्या डेअरी कॉर्पोरेशन, तळमजला, परशुराम तबेला, विद्या वजन काटा जवळ, दापोडे भिवंडी रोड, दापोडे, ता. भिवंडी  

येथे धाड टाकली असता सदर ठिकाणी अस्वच्छ व अनारोग्यकारक वातावरणात भेसळयुक्त पनीर उत्पादन होत असल्याचे आढळून आले. घटनास्थळी पनीर उत्पादनासाठी खाद्यतेलाचा वापर होत असल्याचे निदर्शनास आले. सदर ठिकाणाहून पनीर, पामोलीन तेल, अॅसेटीक अॅसिड यांचे नमुने विश्लेषणासाठी घेऊन त्यांचा उर्वरित साठा जप्त करण्यात आला. भेसळयुक्त असल्याच्या संशयावरून पनीर या नाशवंत अन्न पदार्थाचा उर्वरित साठा सुमारे ६५० किलो किंमत रु. १,१५,२००/- त्वरित नष्ट करण्यात आला. सदर प्रकरणी नारपोली पोलीस स्टेशन येथे प्रथम खबरी अहवाल क्र. ३९/२२ दि. २०.१.२०२२ नोंदविण्यात आला असून पुढील तपास सुरु आहे. सदर कारवाई अन्न व औषध प्रशासन मंत्री ना. डॉ. राजेंद्र शिंगणे, राज्यमंत्री ना. राजेंद्र येड्रावकर व मा. आयुक्त श्री. परिमल सिंग यांच्या मार्गदर्शनाखाली सह आयुक्त (दक्षता) श्री. समाधान पवार यांच्या नियंत्रणाखाली अन्न सुरक्षा अधिकारी श्री. एम.ए.जाधव, श्री. ए.डी.खडके, श्री. डॉ. राम मुंडे यांनी यशस्वीरित्या पार पाडली.  

स्वेच्छानिवृत्ती आणि अधिकारी भोंगळ कारभार

 

स्वेच्छानिवृत्ती आणि अधिकारी भोंगळ कारभार 

                  सरकारी नोकरी पाहिजे अशी सर्वांची इच्छा असते आणि ती पूर्ण करण्यासाठी आपण रांत्र दिवस अभ्यास करून मिळेल ते काम करून अर्धपोटी उपाशी राहून जर नशीबाने सरकारी किंवा ठेकेदार पद्धतीवर नोकरी मिळालीच तर आपले व आपल्या कुटुंबाचा उदरनिर्वाह मिळेल त्या परिस्थितीवर मात करून चालविला जातो. शासन निर्णयानुसार सरकारी नोकरीत आपल्या जीवनाची कमीत कमी २५/३० वर्ष शासकीय आॅफिस झाडून काढणारे. खुर्चीत बसून आदेश देणारे यातच महाराष्ट्र राज्य मार्ग परिवहन महामंडळ यांच्याकडे काम करणारे वाहक चालक मोटर परिवेक्षक शिपाई क्लार्क अशा विविध पदांवर काम करणार्या कर्मचारी यांना हिन वागणूक दिली जाते तरी सुद्धा नाइलाजाने हे सर्व जण खाली मान घालून काम करत असतात. यांतच नोकरिला असणार्या महिलांचे जीवन हे स्वार्थी नजराना सामोरे जाणारे असते त्यांना त्यांचे वरिष्ठ अगदी निच वागणूक देत आहेत असे निदर्शनास आले आहे म्हणजे सर्व नोकरी आयुष्य हे सर्कस म्हणावे लागेल. आणि एक वेळ या शासकीय सरकारी नोकरीला राम राम करण्याची वेळ येते शासनाच्या पेन्शन अधिनियम कायदा यानुसार महिन्याला तुमच्या पगारातून पी एफ कापला जातो आणि त्यातून गोळा होणारी विशिष्ट रक्कम त्या रक्कमेत शासन निर्धारित रक्कम जमा करून वयाच्या ५९ वया वर्षी निवृत्ती घेणार या व्यक्तिला पेन्शन म्हणून दिली जाते. आणि त्यातच तो व्यक्ती आपल्या उतरत्या वयात आपला व आपल्या कुटुंबाचे पालनपोषण करत असते यामध्ये सुध्दा बोगस कारभार होत आहे तो असा की निवृत्ती झाली एकाची आणि पेन्शन पी पी ओ नंबर बदलला जातो आणि स्वेच्छानिवृत्ती घेणारे काही कर्मचारी आहेत त्यांना ती पेन्शन मिळतच नाही. उच्च अधिकारी व कर्मचारी अशा लोकांना उडवाउडवीची उत्तरे देऊन ज्या व्यक्तिने आपल्या आयुष्यातील सर्वात महत्वाची वर्षे देऊन शासकीय आॅफिस अधिकारी व कर्मचारी यांची सेवा केली त्यांना आपल्या हक्काची पेन्शन मिळविण्यासाठी आपलेच चप्पल झिजवावे लागते सर्वात वाईट आहे बघा. 

                  श्री अब्दुल रहेमान इस्माइल पटेल हे महाराष्ट्र राज्य मार्ग परिवहन महामंडळ पुणे येथे वाहन प्रशिक्षक पदांवर. रा प नारायणगाव. आगार काम करत होते. आपल्या वैयक्तिक कारणांमुळे त्यांची शारीरिक आरोग्य व्यवस्थित नसल्यामुळे व घरचा काहीतरी अडचणी मुळे 

विभागीय आस्थापना आदेश ३७ 

नुसार 

(१) मा महाव्यवस्थापक क व औ स क्रमांक २३/२००३ म्हणजे २६/८/२००३ नुसार आदेश. परिपत्रक जारी करण्यात आला होता

(२) मा महाव्यवस्थापक क व औ स यांचें परिपत्रक राप / कर्म वरगराजय / संवर्ग/ २२५३ दिनांक १०/५/२००६ 

(३) मा उपाध्यक्ष व व्यवस्थापकीय संचालक यांचें पत्र क्र जा क्र / आस्था/ सा प्र/ ३३ दिनांक ४/१/२००७

(४) आगार व्यवस्थापक रा प नारायणगाव पत्र क्र जा क्र राप/ आवया / ना गाव / प्र शा / ५७७दिनांक १९/१०/२०२० रोजी पटेल यांनी. स्वेच्छानिवृत्ती साठी सदर नारायणगाव परिवहन महामंडळ यांचेकडे स्वेच्छानिवृत्ती श्री अब्दुल रहेमान इस्माइल पटेल तातपु कारागीर क वाहनपरिक्षक रा प नारायणगाव आगार यांनी तात्पु कारागीर क वाहनं प्रशिक्षक या पदावरून तीन महिन्यांची पूर्व सूचना देऊन दिनांक १७/ १०/२०२० रोजीचया अर्जानुसार दिनांक ३१/०१/२०२१ म पु पासून स्वेच्छानिवृत्ती मंजूर करण्यात यावी यासाठी पत्र व्यवहार केला होता त्यानुसार त्यांची सेवानिवृत्ती दिनांक ३१/०१/२०२१ पासून मंजूर करण्यात येत आहे असे नारायणगाव आगार यांनी पत्रानुसार कळविले आहे आणि त्यानुसार श्री पटेल यांचें नाव रा प नारायणगाव आगार येथील हजेरी पटावरून हटविण्यात आले आहे व पुणे विभागाच्या संखयाबळावरून दिनांक ३१/ ०१/ २०२१ म पु पासून कमी झाले सर्व काही व्यवस्थित चालले होते नंतर पटेल याना त्यांनी घेतलेल्या स्वेच्छानिवृत्ती ची पेन्शन मिळायला हवी होती पण ती मिळतच नव्हती म्हणून पटेल यांनी नारायणगाव आगार व्यवस्थापक व विभागीय नियंत्रक यांच्याकडे ३०/१०/२०२१ रोजी व १७/६/२०२१ रोजी विभागीय नियंत्रक यांचेकडे पत्र व्यवहार केला वेळोवेळी आपले आर्थिक नुकसान सहन करत वेळोवेळी परिवहन महामंडळ कार्यालयाला आपलेच हक्काचे निवृत्ती वेतन मिळण्यासाठी हेलपाटे मारावे लागले कोणत्याही विभागीय नियंत्रक व महाव्यवस्थापक. उप अधक्ष. आगार व्यवस्थापक. यांच्याकडे विनंती करत होते पण कोणत्याही अधिकारी व कर्मचारी यानी या पटेलांना कोणताही थांगपत्ता लागू दिला नाही. उलट उडवाउडवीची उत्तरे दिली 

            आत्ता मला सांगा जर पटेल यांचा पी पी ओ नंबर जर दुसर्या व्यक्तिला गेला असेल. तर त्याचवेळी निवृत्त झालेल्या त्या संबंधित व्यक्तिचा पी पी ओ नंबर कुठ आहे ? म्हणजे पटेल व संबंधित व्यक्तिं यांचे पी पी ओ नंबर दोन झाले तर मग एका व्यक्तिची पेन्शन कुठ आहे ? म्हणजे विभागीय नियंत्रक म्हणण्यानुसार जर विचार केला की आम्ही माहिती बरोबर पाठविली आहे ही सर्व चूक पेन्शन विभागांची आहे म्हणजे विभागीय नियंत्रक यांच्या व पेन्शन विभागासी संबंधित असणारे अधिकारी व कर्मचारी यांनी जी माहिती पेन्शन विभागाला दिली असेल त्याप्रमाणे पेन्शन विभागाने पेन्शन प्रकिया पूर्ण केली असणार म्हणजे विभागीय नियंत्रक नारायणगाव आगार यामध्ये काम करणारे व उच्च पदांवर असणार्या सर्व अधिकारी व कर्मचारी यांच्या गलथान कारभार आहे हे निश्चित झाले आहे मग असा मोठा प्रश्न आपल्यापुढे आहे की संबंधित पटेल यांना द्यावी लागणारी एका वर्षाची पेन्शन या अधिकारी व कर्मचारी यांच्या पगारातून कापली गेली पाहिजे. आणि पटेल यांना आपल्या पेन्शन साठी परगावाहून येणे जाणे यासाठी झालेला एक वर्षाचा खर्च सर्व संबंधित अधिकारी व कर्मचारी यांच्याकडून वसुल करण्यात यावा. पटेल यांना जो पर्यंत पेंशन प्रकरणं निकालात निघत नाही तोपर्यंत सर्व जबाबदार अधिकारी व कर्मचारी यांचा पगार. निवृत्ती सर्व काही रोखण्यात यावे. संबंधित अधिकारी व कर्मचारी यांना चाफ बसला पाहिजे. आणि एक वर्षाची पेन्शन यातीलच कोणत्या अधिकारी व कर्मचारी यांच्या खिशात एक वर्ष जात नसेल कशावरून विचार करा 

              अशा सर्व विषयाला कंटाळून अखेर पटेल यांनी बांधकाम कामगार व इतर श्रमजीवी कर्मचारी युनियन इस्लामपूर. रुग्ण हक्क व अधिकार समिती सांगली जिल्हा. रेशन अधिनियम कायदा २०१३ रक्षक समिती सांगली जिल्हा. मौलाना आझाद विचार मंच सांगली जिल्हा. माहिती अधिकार नियोजन समिती सांगली जिल्हा यांचे संस्थापक अध्यक्ष अहमद नबीलाल मुंडे यांच्याकडे आपल्यावर व आपल्या कुटुंबांवर एक वर्ष झालेल्या अन्यायाला वाचा फोडण्यासाठी तक्रार केली आहे. त्यानुसार संबंधित विभागीय नियंत्रक यांच्याशी ( रमाकांत महादेव गायकवाड यांची भेट घेतली असता त्यांनी पाहिजे तसा आम्हाला प्रतिसाद दिला नाही उलट ज्यांचे प्रकरणं आहे त्याच व्यक्तिने आम्हाला भेटा असे बेजबाबदार आणि आपल्या पदाला न शोभणारे वक्तव्य करण्यात आले म्हणजे यांना आपल्या पदाचा आणि आपल्या हातात असणार्या सत्तेचा मोठा गर्व झाला आहे असे दिसते

              समाजसेवा बंद आंदोलन मोर्चा उपोषण रस्ता रोको आंदोलन निवेदन तक्रार अर्ज मागणी अर्ज प्रचार प्रसार प्रसिध्दी जाहिरात वाचन लेखन संबोधन प्रबोधन आणि मग नेतृत्व करण्यासाठी

बांधकाम कामगार व इतर श्रमजीवी कर्मचारी युनियन इस्लामपूर

रुग्ण हक्क व अधिकार समिती सांगली जिल्हा

रेशन अधिनियम कायदा २०१३ रक्षक समिती सांगली जिल्हा

मौलाना आझाद विचार मंच सांगली जिल्हा

माहिती अधिकार नियोजन समिती सांगली जिल्हा

संस्थापक अध्यक्ष अहमद नबीलाल मुंडे

९८९०८२५८५९

असं झालं पाहिजे का ?

 

असं झालं पाहिजे का ?

              बांधकाम कामगार यांना न्याय मिळावा त्यांचे सामाजिक आर्थिक शैक्षणिक वैद्यकीय अशी सेवा सुविधा मिळण्यासाठी हक्काचे व्यासपीठ म्हणजे सन १९२६ साली या कार्यालयाचे पदनाम बदलून ते संचालक माहिती व कामगार इंटिलिजस असे ठेवण्यात आले. यावेळी कामगार आयुक्त पदसिद्ध आयुक्त श्रमिक भरपाई अधिकारी म्हणून नियुक्ती करण्यात आली. १९३९साली या कार्यालयाचे विभाजन करण्यात आले कामगार आयुक्त व माहिती संचालक अशी वेगवेगळी कार्यालये करणेत आली सन १९४७ साली मुंबई कामगार कार्यालयाची पुनर्रचना करण्यात आली यावेळी दोन वेगळेच संचालक करणेत आले १९५३ नंतर वेगळ्या मुंबई कामगार मंडळांची स्थापना करणेत आली. १९७९ मध्ये कामगार कार्यालयाची फेर रचना करणेत आली आहे त्याचे प्रशासकीय दृष्टीने तीन विभाग करण्यात आले 

(१) मुंबई कार्यालय (२) मुंबई विभाग कार्यालय (३) मुंबई जिल्हा कार्यालय कामगार कार्यालयाचे प्रमुख हे कामगार आयुक्त आहेत

                 केंद्र सरकार व राज्य सरकार मिळून केंद्रीय कामगार कायदे १९ आहेत व राज्य सरकारने कामगारांसाठी ६ कायदे तयार केले आहेत तय नुसार असंघटित क्षेत्रातील कामगार यांना महाराष्ट्र इमारत व इतर बांधकाम कामगार कल्याणकारी मंडळ मुंबई यांचेकडून १९ कल्याणकारी योजना राबविण्यात येतात त्यात प्रामुख्याने आर्थिक संरक्षण सामाजिक. वैद्यकीय. शैक्षणिक आरोग्य आशा विविध कल्याणकारी योजना राबविण्यात येतात. बांधकाम क्षेत्र. माथाडी. एम आय डी सी. कामगार. या कामगारांना विद्यार्थी शिकण्यासाठी शैक्षणिक सवलत. कामगार लग्नापासून ते मृत्यू पर्यंत आर्थिक स्वरुपात मदत देण्याचा माणस आहे नोंदणी कृत महिला बांधकाम कामगार यांच्यासाठी आरोग्य योजना. नैसर्गिक प्रसूती. शस्त्रक्रियेद्वारे प्रस्तुती. यासाठी मंडळाने अनुदानाची तरतूद केली आहे यासाठी. आत्ता महत्त्वाचा दुवा असणारा तो म्हणजे

                बांधकाम कामगार आहे हे सिद्ध करण्याचा अधिकार इंजिनिअर ठेकेदार कंत्राटदार शासकीय निमशासकीय कार्यालयाच्या अंतर्गत येणारा सर्व बांधकाम विभाग व त्यात असणारे सर्व बांधकाम उप अभियंता यांना देण्यात आला आहे आज सर्व उलट झाल आहे कारणं आज बांधकाम कामगार यांच्या जीवावर लाखोंची करोडोंची माया गोळा करणारे आज बांधकाम कामगार नोंदणी साठी लागणारे ९० दिवसांचे प्रमाणपत्र यासाठी विशिष्ट रक्कम घेत आहेत त्यामुळे आज खरोखरच कामगार असणारे लाभापासून वंचित राहिले आहेत आणि बाधकामासी कोणताही संबंध नसणारे लोक बांधकाम कामगार कल्याणकारी योजनांचा लाभ घेत आहेत म्हणजे बोगस कामगार नोंदणी साठी जबाबदार आहेत ते म्हणजे फक्त आणि फक्त इंजिनिअर ठेकेदार कंत्राटदार. यांची सुध्दा आज चौकशी झाली पाहिजे

          मंडळाकडून येणारा बांधकाम कामगार यांच्यासाठी विविध योजनांचा लाभ सापेक्ष पणे कामगारा पर्यंत पोहचविण्यासाठी आज गावात तालुका जिल्हा राज्य देश यामध्ये बर्याच कामगार संघटना तयार झाल्या आहेत. त्यात कामगार नेते पुढारी आमदार खासदार मंत्री यांना पेव फुटले आहे म्हणजे रोज तयार होणारे एजंट योजना मिळवून देतो म्हणून अवाजवी पैसे उकळणे. लाभार्थी कामगार यांना मिळणारा लाभतून मोठा आर्थिक वाटा काढून घेणे. दमदाटी करणे. कामगार भवन मध्ये अधिकारी व कर्मचारी कमी सर्वच ठिकाणी संघटना वाले एजंट यांचा सुळसुळाट वाढला आहे. म्हणजे अधिकारी व कर्मचारी यांना हाताला धरून तुम्ही खा आणि आम्हाला खाऊ द्या असा फंडा वापरला जातो. एका बाजूने इंजिनिअर ठेकेदार कंत्राटदार आणि दुसरिकडे कामगार संघटना. आणि बाकी काय राहीले ते सहहयक कामगार आयुक्त भवन मध्ये असणारे कर्मचारी व अधिकारी यानी कसर पूर्ण केली आहे म्हणजे बांधकाम कामगार योजनांचा आणि लाभाचा बाजार झाला आहे आणि यासाठी कारणीभूत आहेत ते म्हणजे फक्त आणि फक्त इंजिनिअर

(१) महाराष्ट्र इमारत व इतर बांधकाम कामगार कल्याणकारी मंडळ मुंबई यांनी खालील उपाययोजना करण्याची गरज आहे त्यामुळे खरोखरच कामगार आसेल त्यालाच लाभ मिळेल

(१) ९० दिवसांचे प्रमाणपत्र देणारया इंजिनिअर ठेकेदार कंत्राटदार यांनी बांधकाम कामगार याचे ९९ दिवसांचे पगार पत्रक जोडणे बंधनकारक करा

 पगार रोख देत असेल तर शपथ पत्र करणे बंधनकारक करा. बांधकाम कामगार यांच्या पगार बॅंकेतून होत असेल तर बॅंकेचे डिटेल्स जोडणे बंधनकारक करा

इंजिनिअर यांना कामगार नोंदणी दाखले देण्यासाठी एक विहित अट घाला

(१) नोंदणीकृत महिला कामगार यांच्यासाठी असणार्या विविध आरोग्य योजनांचा लाभ महिला कामगार यांच्या बॅक खात्यात वर्ग करण्यात यावा किंवा दवाखान्याच्या नांवे वर्ग करण्यात यावा. अन्यथा आपल्या जिल्ह्यात असणारे धर्मादाय आयुक्त यांचेकडून नियुक्त दवाखान्यातच उपचार घेणे बंधनकारक करण्यात यावे महात्मा ज्योतिबा फुले जन आरोग्य योजना. राजीव गांधी जीवनदायी आरोग्य योजना. पंतप्रधान आयुष्मान आरोग्य योजना. या सर्व मोफत करून ज्या दवाखान्यात ह्या योजना आहेत तेथेच उपचार करणे बंधनकारक करण्यात यावे मग निधी कशाला पाहिजे कशासाठी मंडळांचे कोट्यवधी रुपये पाण्यात घालताय

(२) नोंदणीकृत बांधकाम कामगार यांच्या पाल्यांसाठी असणारी शिष्यवृत्ती योजना त्यांच्या खात्यात वर्ग करण्यात यावी आथवा शाळेच्या नावावर वर्ग करण्यात यावी. मंडळाने दिलेला लाभ कश्यासाठी वापरला त्याचा लेखा जोखा मागण्यात यावा

(३) व्यसनमुक्ती केंद्र यामध्ये व्यसनमुक्ती उपचार घेणा-या बांधकाम कामगार यासाठी देण्यात येणारा लाभ व्यसनमुक्ती केंद्राच्या नावांवर वर्ग करण्यात यावा

(४) बांधकाम कामगार यांना औजारे खरेदी साठी देण्यात येणारा लाभ हा मागणी करतांना दुकानांचे बिल जोडणे बंधनकारक करा. व त्यानुसार त्या खरेदी बिलाप्रमाणे त्या दुकानदारांच्या नांवे सदर रककम वर्ग करण्यात यावी 

(५) बांधकाम कामगार काम करत असताना अपघातात अपंगत्व आल्यास त्यासाठी असणारा दोन लाख रूपयांचा लाभ त्यांच्या हातात न देता त्याला बैठा उधोग उभा करण्याची तरतूद करण्यात यावी

(६) मंडळाकडून बांधकाम कामगार काम करत असताना अपघात होऊ नये यासाठी देण्यात येणारा सुरक्षा संच वाटप करण्याचे आज मोठ खुळ आहे पण पुरुष कामगारापेक्षा महिला कामगार यांना मोठ्याप्रमाणात आज सुरक्षा संच वाटप केले जात आहे आम्ही आपल्या जिल्ह्यात एक सर्वे केला आहे त्यानुसार कोणत्याच कामांवर महिला काम करताना किंवा कोणताही पुरुष कामगार मंडळाकडून देण्यात आलेला सुरक्षा संच वापरत नाही मग मंडळांचे कोट्यवधी रुपये कशासाठी पाण्यात घालताय प्रत्येक जिल्ह्यातील सहहयक कामगार आयुक्त भवन मधील अधिकारी व कर्मचारी याना कशासाठी पगार दिला जातो रोज एक गाव याप्रमाणे यांनी सर्वे करून सुरक्षा संच वापर होतो का नाही हे पाहणे गरजेचे आहे जो कोणी सुरक्षा संच वापरत नसेल तर शासनाला चुकीची माहिती देऊन शासनाची फसवणूक केली या बेसवर आशा बांधकाम कामगार महिला कामगार यांच्यावर दंडात्मक व शिक्षेची तरतूद करण्यात आली पाहिजे

(६) कामगार अपघातांत मृत्यू झाला तर असणारा पाच लाखांचा विमा व ती रक्कम त्यांच्या मुलगा किंवा मुलगी यांच्या नावे वर्ग करण्यात यावी

(७) बांधकाम कामगार अपघातांत मृत्यू झाला तर त्याच्या पाश्चात्य दिली जाणारी पेनसन ही त्यांच्या २४००० त्यांच्या पत्नीच्या नावे वर्ग करण्यात यावी

 (८) बांधकाम कामगार नोंदणी करताना जेवढा रजिस्ट्रेशन नंबर महत्वाचा त्याप्रमाणे बांधकाम कामगार काम करीत असताना त्याचा फोटो जोडणे बंधनकारक करा

      वरिलप्रमाणे मत मांडण्याचा एवढाच उद्देश आहे की भ्रष्टाचार कामगारांची आर्थिक व मानसिक सामाजिक लुट थांबविणे असा आहे. जर बांधकाम कामगार यांना मंडळाकडून मिळणारा लाभ हा पैशाच्या स्वरुपात न देता वस्तूंच्या स्वरूपात देण्यात आला तर बांधकाम कामगार यांच्या हातात पैसा न आल्यामुळे व्यसनमुक्ती सारखा जटिल प्रश्न सुटणार आहे. बांधकाम कामगार यांची लुट थांबविण्यासाठी मदत होणार आहे. समाज कल्याण पंचायत समिती यांच्याकडून राबविल्या योजनांमध्ये ही तरतूद आहे. अशी तरतूद केल्यामुळे शासनाचा एक एक रुपया कारणी लागताना दिसेल आमची किंवा जिल्ह्यातील सर्व बांधकाम कामगार यांची हीच रास्त मागणी आहे 

    समाजसेवा बंद आंदोलन मोर्चा उपोषण रस्ता रोको आंदोलन निवेदन तक्रार अर्ज मागणी अर्ज प्रचार प्रसार प्रसिध्दी जाहिरात वाचन लेखन संबोधन प्रबोधन आणि मग नेतृत्व करण्यासाठी

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रेशन अधिनियम कायदा २०१३ रक्षक समिती सांगली जिल्हा

मौलाना आझाद विचार मंच सांगली जिल्हा

माहिती अधिकार नियोजन समिती सांगली जिल्हा

संस्थापक अध्यक्ष अहमद नबीलाल मुंडे

९८९०८२५८५९

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर यांचे भाषण

 

डॉ बाबासाहेब आंबेडकर यांचे भाषण

        मूलभूत हककासंबधीचया तरतुदीवर सर्वात मोठा गहजब करण्यात आला आहे १३! वया कलमास अनेक अपवाद ठेवून मूलभूत हक्कांचा गाभाच खाण्यात आला आहे. अशी टीका करण्यात येते. टिकाकाराना वाटते की मूलभूत हक्क हे अनिर्बंध असल्याशिवाय मूलभूत होऊ शकत नाही. याबाबत ते अमेरिकेच्या घटनेचा आधार घेतात. असे म्हणले जाते की अमेरिकेच्या बिल आॅफ राईट्स मध्ये असलेल्या हक्कांवर बंधने नसल्यामुळे ते खरया अर्थाने मूलभूत आहेत. ही टीका गैरसमजुती वर आधारलेली आहे. असे म्हणताना डॉ बाबासाहेब आंबेडकर यांना दुःख होते. मूलभूत हक्क व सामान्य हक्क यामध्ये फरक दर्शविताना जी टीका केली जाते ती रास्त नाही. मूलभूत हक्क हे अनिर्बंध हक्क आहेत असे म्हणणे बरोबर नाही. मूलभूत हक्क व इतर सामान्य हक्क यातील खरा फरक असा आहे की सामान्य हक्क हे करार मदाराने प्राप्त होतात तर मूलभूत हक्क राष्ट्राचा कृपेने मिळतात यामुळे त्या हक्कांवर राष्ट्रांस निर्बंध ठेवता येत नाही

            अमेरिकेतील मूलभूत हक्क अनिर्बंध स्वरूपाचे आहेत असे म्हणणे चुकीचे आहे अमेरिकेच्या सुप्रीम कोर्टाच्या निर्णयाचे परिशीलन केल्यास हे सहज दिसून येईल घटना मसुद्यातील कलम १३ समर्थनार्थ सुप्रीम कोर्टाचा एक निकाल उद्धृत केल्यास भरपूर कल्पना येईल. गिटलो विरुद्ध न्युयॉर्क या खटल्यात. गुन्हेगारांची अराजकता या कायद्याचा सनदशीर बद्दलचा प्रश्न उद्भवला होता. हिंसेचा प्रकार करणार्या वरील कायद्यान्वये शिक्षा ठरलेली आहे त्यावेळी सुप्रीम कोर्ट म्हणते

        घटनेनुसार दिलेल्या भाषणं स्वातंत्र्य आणि लेखन स्वातंत्र्य हे अनिर्बंध पणे भाषणं करण्याचा अथवा बेजबाबदार प्रकाशन प्रसिद्ध करण्याचा परवाना होऊ शकत नाही. फार दिवसांपासून हे तत्व प्रस्थापित झालेले आहे भाषण स्वातंत्र्य दुरूपयोग करण्याचे व दुरूपयोगामुळे ओढविणार या शिक्षेपासून संरक्षण मिळण्याचे लाईन्स हे मूलभूत हक्क देऊ शकत नाही 

          यास्तव अमेरिकेतील मूलभूत हक्क अनिर्बंध आहेत व मसुद्यातील हक्क निर्बंध आहेत हे म्हणणे चुकीचे आहे

          असा युक्तिवाद केला जातो की जर मूलभूत हक्कांवर काही बंधने ठेवावयाची असतील तर खुद्द ती घटनेचेच ठेवावीत परंतु घटना अशी बंधने ठेवणार नसेल तर परस्थिती नुसार ती बंधने ठेवण्याचे कार्य न्यायालयाकडे सोपवावे या युक्तिवादास अमेरिकन घटनेचा आधार घेतला जातो. अमेरिकन घटनेचा हा विपर्यास आहे असे मला वाटते अमेरिकन घटनेत असे काही एक नाही सभा संमेलनात एकत्रित येणयासंबधी हक्का खेरीज कोणत्याच मूलभूत हक्कांवर खुद्द घटनेने बंधने टाकलेली नाहीत त्याचप्रमाणे मूलभूत हक्कांवर निर्बंध ने. ठेवण्यास न्यायालयाला मोकळीक ठेवली आहे. हे म्हणणेही बरोबर नाही. ही बंधने टाकण्याचा अधिकार कांग्रेसचा म्हणजे विधिमंडळाचा आहे. अमेरिकन घटनेत ज्या वेळी प्रथमच मूलभूत हक्क समाविष्ट केले त्या वेळी ते अनिर्बंध होतें. लवकरच अमेरिकेनं कांग्रेसला हे दिसून आले की मूलभूत हक्कांवर मर्यादा ठेवणें अत्यावश्यक आहे. अशा मर्यादा टाकणे हे कितपत सनदशीर आहे हे ठरविण्याचे प्रश्न ज्या वेळी सुप्रीम कोर्टापुढे आला त्या वेळी असा युक्तिवाद करण्यात आला की मूलभूत हक्कांवर मर्यादा घालण्याचा अधिकार घटनेने कांग्रेसला दिलेला नाही त्यावेळी बंदोबस्ताचया अधिकारांचे नवे तत्व सुप्रीम कोर्टाने शोधून काढले व अनिर्बंध मूलभूत हक्कांचा पुरस्कार करणारे म्हणणे हाणून पाडले सुप्रीम कोर्टाचे म्हणणे डॉ बाबासाहेब आंबेडकर यांनी आपल्या भाषणात पुढीलप्रमाणे मांडले आहे

        जे कोणी भाषण स्वातंत्र्याचा दुरुपयोग करुन जनतेची नितीमत्ता खराब करतील जनतेच्या कल्याणाच्या आड येतील गुन्हेगारी उत्तेजन देतील अगर शांततेचा भंग करतील त्यांना शासन करण्याचा अधिकार राष्ट्रास आहे राज्याच्या बंदोबस्तासाठी सुप्रीम कोर्टास हा अधिकार वापरावा लागत असून याबद्दल कोणास आक्षेप घेता येणार नाही

             घटना मसुद्यात हा मार्ग पत्करलेला नाही मूलभूत हक्क अनिर्बंध ठेवून सुप्रीम कोर्टाकडे धावणयाऐवजी थेट हिदसरकार यांनाच नियंत्रण ठेवण्याचा अधिकार दिलेला आहे एकूण अमेरिकन घटनेत तसेच सदर मसुद्यात मूलभूत हक्क अनिर्बंध नाहीत

        मूलभूत हक्कांचा जोडून मार्गदर्शक तत्वे समिविषट केली आहेत. पार्लमेंट री लोकशाहीसाठी तयार केलेल्या घटनेतील हे अभिनव वैशिष्ट्य आहे. अशा तर्हेचे वैशिष्ट्य फक्त आयरिश सटेटचया घटनेत सापडू शकेल मार्गदर्शनाच्या तत्वावर देखील टीका झालेली आहे असे म्हणण्यात येतं की ही तत्वे म्हणजे केवळ सदिच्छा आहेत त्यांच्या पाठिमागे सत्ता नाही ही टीका अर्थहीन आहे

       मार्गदर्शनाच्या तत्वावर कायदेशीर अधिकार नाही असे कोणी म्हणत असल्यास ते मी मान्य करतो परंतु त्यांना कसलाच अधिकार नाही हे मी कबूल करणार नाही ब्रिटिश सरकार आपल्या साम्राज्यातील वसाहतीतीचया गव्हर्नर जनरल व गव्हर्नरांना ज्याप्रमाणे आदेशपत्र देत असेल त्याप्रमाणे या मार्गदर्शक तत्त्वांची योजना आहे हिंदूंच्या प्रेसिडेंटला व गव्हर्नरांना उधेशून ही मार्गदर्शक तत्वे सांगितली आहेत एका विशिष्ट पक्षास सत्तेवर आरूढ करण्यासाठी हिंदची घटना तयार केलेला नाही सत्ता कोणाच्या हाती असावी हे जनताच ठरवेवील मात्र राज्य करतयानी लोकशाहीच्या कसोट्यांवर उतरले पाहिजे याचा अर्थ असा की जे कोणी सत्ताधारी बनतील त्यांना आपल्या लहरीप्रमाणे ति वापरता येणार नाही राज्यसत्ता वापरतांना मार्गदर्शक तत्त्वांचे पालन त्यांनी केले पाहिजे राज्यकर्ते यांच्या हातून या तत्वाचा भंग झाल्यास त्याबद्दलचा जाब त्यांना कोर्टापुढे द्यावा लागणार नाही हे खरे तथापि मतदारांपुढे त्याचा जाब द्यावाच लागेल ज्या वेळी खरया लोककल्याणाचा पक्ष राजसत्ता काबीज करण्याची धडपड करील त्या वेळी या तत्वाचे महत्व कळून येईल

      मार्गदर्शनाच्या तत्वामागे कोणतीही शक्ति नाही म्हणून त्यांचा समावेश घटनेत करु नये असे म्हणणे रास्त नाही घटनेमध्ये कोणते स्थान त्यांना द्यावे याबाबत फारतर मतभेद होतील. ज्या कलमांच्या पाठिमागे शक्ति नाही त्यांची अडचण घटनेमध्ये करून ठेवणे बरे नव्हे हे मी कबूल करतो

        काही टीकाकार म्हणतात केंद्र सरकार भलतेच मजबूत आहे तर काहीजण बोलतात सरकार यापेक्षाही दणकट झाले पाहिजे आमच्या मसुद्यात दोहोंचा मध्य साधला आहे केंद्र सरकार यांना अधिक सत्ता असू नये असे तुम्ही कितीही म्हणाला तरी सरकार बळकट झाल्याशिवाय राहणार नाही आधुनिक जगातील परिस्थिति अशी आहे की केंद्र सरकार बलवत्तर अपरिहार्य आहे. अमेरिकेच्या फेडरल सरकारची वृद्धि कशी झाली हे आपण लक्षात ठेवणयाजोगे आहे. घटनेनुसार अमेरिकन फेडरल सरकारला मर्यादित अधिकार होते. तरिपण सरकारने आपले पूर्वीचे क्षेत्र एवढे वाढविले आहे की त्यामुळे घटक राज्ये गिळांकृत झालेली आहेत हल्लीच्या परिस्थितीचा हा परिणाम आहे. हिंद सरकार वर देखील नव्या परिस्थितीचा परिणाम होऊन ते अधिक अधिक भक्कम झाल्याशिवाय राहणार नाही. केंद्र सरकारच्या या प्रवृततीस आपण आळा घातला पाहिजे. त्यांचे वजन व शक्ति समसमान राहीली पाहिजे. नाहि तर जास्त वजनामुळे ते कोलमडून पडण्याचा प्रसंग यावयाचा

          केंद्र सरकार आणि प्रांत यांचें एक प्रकारचें व केंद्र सरकार आणि संस्थाने यांचें दुसरया प्रकारचें घटनात्मक संबंध ठेवलाबधदल आमच्या मसुद्यावर टीका केली जाते. संस्थांनानी हिंद सरकारच्या सर्व खात्याचा स्विकार करावा. अशी त्यांच्यावर सकति नाही परराष्ट्र संबंध. संरक्षण. दळणवळण. एवढ्या खात्या पुरती सकति आहे. कंकरट लिसटही स्विकारण्याची सकति संस्थांना वर नाही सवताची घटना समिती बोलावून त्यांना आपापली घटना तयार करण्याचे स्वातंत्र्य आहे. असे स्वातंत्र्य असणे दुर्दैवी व. असमर्थनीय गोष्ट आहे. या गोष्टी मुळे खुद्द संस्थानाच्या प्रगतीला धोका पोहोचेल. केंद्र सरकारला आपली सत्ता सर्व ठिकाणी सारखी वापरता येणार नाही. अशी सत्ता असून नसल्यासारखी आहे. युद्धजन्य काळात या घोटाळ्यामुळे राष्ट्रांवर कठिण प्रसंग गुदरलयाशिवाय राहणार नाही. यातून अंत्यंत अनिष्ट गोष्ट ही की संसथानाना आपले सैन्य ठेवण्याची मुभा घटना मसुद्यात अन्वये ठेवलेली आहे. ही तरतुद अंत्यंत प्रतिगामी व धोकेबाज असून त्यामुळे हिंदचे तुकडे होतील आणि केंद्र सरकार उखडले जाईल असे मला वाटते. मसुदा कमिटीचे संस्थांना संबंधीत तरतूद मोठ्या आनंदाने लिहिली आहे. अशातला भाग नाही. प्रांत व संस्थाने यांचें केंद्र सरकारशी असणारे घटनात्मक संबंध सुसूत्रता असावी. आशी मसुदा कमिटीची फार इच्छा होती. दुर्दैव असे की याबाबतीत कमिटीस काहीच सुधारणा करता आली नाही

      घटना मसुद्याचा पहिल्या कलमात हिंदचे वर्णन. युनियन आॅफ स्टेटस. राजयसंघ असे केले आहे त्यासंबंधी काहीजण टीका करतात फेडरेशन ऑफ स्टेटस असे हिंदचे वर्णन असावयास पाहिजे असे त्यांचे म्हणणे पडते एकतंत्री राज्यपद्धती असलेल्या दक्षिण आफ्रिकन राज्याचे वर्णन युनियन म्हणून केले आहे. हे खरे आहे. पण कॅनडाचे फेडरेशन असूनही त्यास युनियन म्हणूनच संबोधण्यात येते तेव्हा हिंदचे वर्णन युनियन म्हणून केल्याचे भाषेच्या संप्रदायास काही बाधा येते असे नव्हे. युनियन हा शब्द बुध्दी पुरसकर वापरलेला आहे हे ध्यानात घेतले पाहिजे. कॅनडा या घटनेत युनियन हा शब्द का वापरला आहे हे मी सांगू शकतो. मसुदा कमिटीस ही गोष्ट स्पष्ट करावयाची होती की हिंद सरकार हे फेडरल असले तरी प्रांतीय राज्याचा करार मदारामुळे ते स्थापन झालेले नाही. अर्थात कोणत्याही प्रांतीय सरकारास हिंदपासून फुटून निघण्याचा अधिकार नाही. जरी कारभाराविषयी सोयीसाठी देशांचे विभाग पाडले असले तरी देश एक. लोक एक आणि घटनाही एकच आहे. घटक राज्यांना फेडरल सरकारातून फुटून निघण्याचा अधिकार नाही हे प्रस्थापित करण्याकरिता अमेरिकेनं लोकांना यादवी युद्ध खेळावे लागले. यास्तव वरील गोष्ट निर्विवाद पणे कळावी मसुदा कमिटीने युनियन शब्दांची योजना केली आहे

            घटनेतील दुरुस्ती विषयक जी कलमे आहेत त्यावरही कडाडून टीका करण्यात आलेली आहे घटनेत दुरुस्ती घडवून आणणे कठीण आहे कसे म्हटले जाते. काही वर्षांपर्यंत तरी घटनेत साध्या मूजाॅरिटीने दुरुस्ती करता यावी. असेही सुचविण्यात आले आहे. सांप्रतची घटना समिती पौढ मतदान द्वारे निवडणून येणार्या भावी लोकसभेत तो अधिकार नाकारला आहे. अशीही टीका झालेली आहे या टीकाना कोणताही आधार नाही असे मी स्पष्ट पणे म्हणतो अमेरिकेनं व आॅसटेलिया घटनांकडे पाहिल्यास हे दिसून येईल की हिंद घटनेत दुरुस्ती घडवून आणणे सोपे आहे जनमताचा कौल वैगैरेसारखी पध्दती घटना मसुद्यात ठेवलेली नाही केंद्र व प्रांतीय विधिमंडळाच्या हाती घटना दुरुस्ती सत्ता ठेवलेली आहे केवळ दोनच बाबतीत प्रांतीय विधिमंडळाच्या संमतीची अट ठेवलेली आहे घटनेतील बाकी दुरुस्ती लोकसभाच करणार आहे दुरुस्ती संबंधीत एकच अट आहे आणि ती ही की प्रत्येक सभागृहातील हजर असलेल्या व मत देणार या सदस्यांच्या २/३ संख्येने आणि एकूण सदस्यांच्या बहुसंख्येने ही करावी यापेक्षा सोपी पध्दती शोधून काढणे कठीण आहे

              सध्याची घटना समिती व भावी लोकसभा यांच्या दर्जा तील फरक लक्षात न घेतल्यास बराच गोंधळ निर्माण झाला आहे. सध्या घटना समितीस पक्षपाती हेतू नाहीत ब-यापैकी व कार्यक्षम घटना बनविणयापलिकडे तिला काही साधवायचे नाही. एखादे विशिष्ट बिल पास करून घ्यावयाचे आहे या हेतूने घटनेचे कोणतेही कलम लिहिलेले नाही भावी लोकसभा घटनेमध्ये दुरुस्ती करणारं असेल तर पक्षीय दृष्टी राहीलं एखादे बिल पास करण्याच्या हेतूनेच भावी लोकसभेतील एखाद्या पक्ष घटनेत दुरुस्ती मागेल अशा पध्दतीने असेल तर सध्याच्या घटना समितीस तसा काहीच पक्षीय हेतू नाही 

      मार्गदर्शक तत्त्वांतून भविष्यात भारतीय समाज अर्थव्यवस्था कशी असावी याचे चित्र रेखाटले आहे. या आदर्शाची उभारणी करण्यासाठी सरकारने झटावे अशी अपेक्षा केली आहे. गेल्या चार दशकातील अनुभवात असे प्रयत्न करताना व्यक्तिस्वातंत्र्याचा संकोच होतो असे लक्षात आले आहे. या दोन्हीत संतुलन राखण्याचा प्रयत्न घटना दुरुस्तीतून व न्यायालयीन निवाडयातून केलेला दिसतो. तथापि मार्गदर्शक तत्वाच्या दिशेने झालेली प्रगती लक्षणीय नाही. आदर्श लोककल्याणकारी राज्य फार दूरवर आहे

              समाजसेवा बंद आंदोलन मोर्चा उपोषण रस्ता रोको आंदोलन निवेदन तक्रार अर्ज मागणी अर्ज प्रचार प्रसार प्रसिध्दी जाहिरात वाचन लेखन संबोधन प्रबोधन आणि मग नेतृत्व करण्यासाठी

बांधकाम कामगार व इतर श्रमजीवी कर्मचारी युनियन इस्लामपूर

रुग्ण हक्क व अधिकार समिती सांगली जिल्हा

रेशन अधिनियम कायदा २०१३ रक्षक समिती सांगली जिल्हा

मौलाना आझाद विचार मंच सांगली जिल्हा

माहिती अधिकार नियोजन समिती सांगली जिल्हा

संस्थापक अध्यक्ष अहमद नबीलाल मुंडे

९८९०८२५८५९

हरवलेल्या ज्योतीचा भेटली कुटुंबाला - manavseva Project

 

आयुष्याची नवी वाट...
हरवलेल्या ज्योतीची 'मानवसेवा' मुळे घडली कुटुंबाची भेट


हिंगोली येथील ३० वर्षीय 'ज्योती' मानसिक संतुलन बिघडल्यामुळे कुटुंबापासून दुरावली होती. मानसिक आजारामुळे समाजात तिच्याविषयी एक भीती निर्माण झाल्याची बातमी होती, काही लोकांनी तिला एका बंद खोलीत कोंडून ठेवले. बंद खोलीच्या खिडकीतून तिला जेवण पाणी देत होते.

सदर महिलेची माहिती अहमदनगर येथील श्री अमृतवाहिनी ग्रामविकास मंडळाला मिळाली. संस्थेचे कार्यकर्ते सुशांत गायकवाड, अविनाश पिंपळे, पुजा मुठे, सुरेखा केदार, सरीता गोडे यांनी या महिलेची बंद खोलीतून सुटका करीत संस्थेच्या *'मानवसेवा प्रकल्पात'* दि.२३/१०/२०२१ रोजी दाखल केले. ज्योती हिच्यावर मानसोपचार तज्ञ डॉ अनय क्षीरसागर आणि डॉ. सुरेश घोलप यांच्या मार्गदर्शनाखाली उपचार करण्यात आले. संस्थेच्या स्वयंसेवकांनी तिची मानवसेवा प्रकल्पात काळजी घेवून संरक्षण दिले. संस्थेच्या समुपदेशक पुजा मुठे यांनी ज्योतीचे उपचार पूर्ण करुन समुपदेशनात माहिती घेऊन कुटुंब शोधले. श्री अमृतवाहिनी ग्रामविकास मंडळाच्या 'मानवसेवा' प्रकल्पाने तिच्या कुटुंबीयांशी संपर्क करुन दि.१२/०१/२०२२ रोजी ज्योतीला सन्मानाने कुटुंबाच्या ताब्यात देवून पुनर्वसन केले. ज्योतीला तिचे मुले आणि कुटुंब मिळताच अश्रू अनावर झाले. 

*मानवसेवा हीच ईश्वर सेवा!*


*मानवसेवा प्रकल्प* 

(मन आणि घर हरवलेल्या मानसांच हक्काचं घर)

द्वारा- *श्री अमृतवाहिनी ग्रामविकास मंडळ*

☎️ (०२४१) २४२९९४२

📱९०११७७२२३३

अन्यथा न्यायालयात जाणार - डॉ परवेज अशरफी

अन्यथा न्यायालयात जाणार - डॉ परवेज अशरफी

अहमदनगर - अहमदनगर जिल्ह्यात विविध ठिकाणी खासगी व शासकीय कार्यालयात आणि विद्यालय, महाविद्यालय, रेशन दुकानात सरकारी आदेश असल्याचे भासून लसीकरण सक्तीचा करत आहे. या अनुषंगाने एम आय एम जिल्हाध्यक्ष डॉ परवेज अशरफी यांनी मा. जिल्हाधिकारी साहेबांना लसीकरण सक्तीचा करता येणार नसल्याचे विविध उच्च न्यायालयाचे आदेश व भारत सरकारचे आरोग्य व परिवार मंत्रालयाचे लेखी पत्राचे हवाले देत लसीकरण सक्तीचा करू नाहीत. अशी विनंती केली. परंतु मा. जिल्हाधिकारी यांनी लसीकरण सक्तीचा करणार नसल्याचे परंतु शासकीय कार्यालयात लसीकरण नसेल तर प्रवेश देणार नसल्याचे सांगितले.

त्या मुळे खासगी कर्यालात्यात, विद्यालय, महाविद्यालयात, राशन दुकान, महामार्ग, येथे शासकीय अधिकारी लसीकरण बाबत विचारणा करीत, त्यांना लसीकरण घ्या नाहीतर दुकान उघडता येणार नाही. विद्यालयात व महाविद्यालयात प्रवेश मिळणार नाही. असे सांगत आहे, यामुळे सामान्य जनतेला वेठीस धरण्याचे काम करण्याचे प्रयत्न करण्यात येत आहे. शासकीय कार्यालय हे सामान्य जनते साठीच असते त्यालाच इंग्रजी मध्ये "It is for the people and by the people" जर शासकीय कार्यालयात जनतेला परवानगी नसेल तर त्या कार्यालयाचा उपयोग काय? असा प्रश्न एम आय एम जिल्हाध्यक्ष डॉ परवेज अशरफी यांनी उपस्थित केला. मा. जिल्हाधिकारी साहेबांनी घटने विरोधातला आदेश मागे घेणे व सामान्य जनतेचा मानसिक छळ थांबवण्याची विनंती केली आहे. सामान्य जनतेचे मौलिक अधिकाराचे हणन होत असेल तर मा. जिल्हाधिकारी विरोधात न्यायालयात जाणार असल्याचे एम आय एम जिल्हाध्यक्ष डॉ परवेज अशरफी यांनी सांगितले.

मुस्लिम आणि आरक्षण

 



मुस्लिम आणि आरक्षण   आरक्षण

            स्वातंत्र्यानंतर धर्मातील व्यवस्थेच्या पुरस्कार करणाऱ्या राज्यकर्ते यांनी मुस्लिमांसाठी वेगळा शरियत कायदा चालू ठेवून समान नागरी कायदा होऊ दिला नाही. हिंदू कोड बिल मंजूर झाले. सर्वांना फौजदारी कायदा लागू आहे. पण सर्वांना समान नागरी कायदा लागू करण्याचे प्रयत्न एक गठ्ठा मतांसाठी केले नाही. निवडणूका आल्या की मुस्लिम समाजांचे एक गठ्ठा मतदान असल्यामुळे सर्व पक्षाना सर्व राजकीय नेत्यांना पुढारी यांना मुस्लिम समाजाची प्रकरक्षाने आठवण होते मग अल्पसंख्याक नावाखाली मुस्लिम समाजातील युवकांच्या गावापासून जिल्ह्यापर्यंत पदाधिकारी निवडी चालू होतात. आणि आमचा स्वाभिमानी. सन्मान प्रिय. हुजूरि. न करणारा मुस्लिम समाजातील युवक एखाद्या पक्षाच्या दावणीला बांधले जातात. मग निवडणूक असते आमचे युवक आपल्यावर सर्व पक्षाच भार आहे नेता एक दोन वेळा युवकांच्या खांद्यावर हात ठेवला की युवक जीवतोड काम करतो. आश्वासन असते निवडणूक झाली की मुस्लिम आरक्षणाचे आंदोलन उभे करु. सर्वांना मुस्लिम आरक्षण मिळवून देतो. आणि एक वेळ निवडणूक पार पडली की आरक्षण पदाधिकारी वार्यावर जातात. आपल्याला कळणार केव्हा ? मुस्लिम समाजातील एक ही व्यक्ति क्लास वन अधिकारी. कोणत्याही शासकीय आॅफिस मध्ये आमचा गोल टोपीचा अधिकार मी तरी बघितला नाही. तुम्ही बघितला आहे का? 

            मुस्लिम समाजाला. आरक्षण द्या कारण आपला समाज भटक्या विमुक्त जाती मध्ये मोडतो असे म्हणणारे. यांना समाजाबद्दल काय माहित आहे का. ? मुस्लिम समाजाचा प्रसार करण्यासाठी आपले धर्मगुरू मौहंमद पैगंबर. यांना भटकंती करावी लागली. तर मुस्लिम धर्माचे धर्मगुरू भटकंती करत होते म्हणजे आमची पार्श्वभूमी आम्ही भटके आहोत हे सिद्ध करण्यासाठी पुरेसे नाही का ? पण कोणताही धर्मग्रंथ आपले समाजांचे वागणे राहणे. चालीरीती हे सिद्ध होते पण तुम्ही भटके आहात हे सिद्ध होत नाही. याचा अर्थ असा होतो की आणि तसा उल्लेख आढळतो पण तो पुरावा होऊ शकतं नाही. मुस्लिम भटके आहेत यासाठी. कारणं धर्मग्रंथ हा समाजाचा पुरावा होऊ शकतो का नाही हे मला माहीत नाही. आज आपण म्हणतो आमचें पूर्वज अडाणी गरजू होते पोटासाठी हे गाव ते गाव फिरत होते. त्यांना शिक्षण कसले ते माहीत नव्हते. त्यावेळी. कुठला कागद. कुठली शाळा. अस्तित्वात होती का नाही काय माहित ? आमच्या पूर्वजांना काय माहित होते एक काळ असा येईल की तुम्ही कोणत्या जाती धर्माचे आहात हे सिद्ध करावे लागेल. पूर्वज अडाणी असल्यामुळे कोणताही १९६७ चा पुरावा आज जातीचा दाखला घेण्यासाठी पुरावा नसल्यामुळे. आमच्या मुलांना. शिक्षण सवलत नाही. नोकरी सवलत नाही. कोणत्याही शासकीय योजनेचा लाभ नाही. म्हणजे योजना हजार आहेत पण त्यात सर्वात मोठा साप घालून ठेवला आहे तो म्हणजे जातीचा दाखला. म्हणजे योजना चालू केले की सर्वसामान्य माणसाच्या मुलांना मिळतच नाही. मुस्लिम समाजाने आज आरक्षण मुद्दा घेण्यापेक्षा. जातीच्या दाखल्यावर उठाव करण्याची गरज आहे. जाचक अटी रद्द करा यासाठी एकत्र येण्याची गरज आहे. आपली संख्या जास्त आहे त्यामुळे आपली ताकद कोणताही झेंडा न घेता उभी करण्याची गरज आहे सर्वसामान्य माणूस रस्त्यावर कोणताही झेंडा न घेता उतरला पाहिजे त्याशिवाय बदल होणार नाही. नाहीतर मुस्लिम समाजातील मुल नाही नोकरी मग घाल चिकन दुकान. गवंडयाचया हाताखाली जा. भंगार दुकान. गाड्या खरेदी विक्री. कपडे व्यवसाय. असे विविध उद्योग करतानाच दिसणार आणि आपले जीवन कष्टात. दबावात गेले. दहशतीत. हिंदू मुस्लिम. यातच पिसत राहणार आणि मुस्लिम समाजाचा कोणताही मुलगा अधिकार होणार नाही. बंद आंदोलन मोर्चा उपोषण निवेदन. आपल्या समाजाच्या ताकदिवर करा. कारणं सर्वात मोठी ताकद ही समाजाची आहे. तुम्हाला उठवून बसविणारे यांना तरी अल्पसंख्याक म्हणजे काय हे माहित आहे का ? असेल तर त्याची खरी माहिती मुस्लिम समाजाला द्या. मुद्दे आत्ता गरजेचे असतील तरच उठाव करून आपली ताकद दाखवा. संविधानात असणारी खरी माहिती समाजा पर्यंत पोहचवा. 

              राज्यकर्त्यांनी मतांसाठी मुस्लिम अल्पसंख्याक यांचेकडे अधिक लक्ष दिले. हा हिंदू वर अन्याय नाही का अशी हिंदूत्व वादी यांनी तक्रार केली आहे. धर्मनिरपेक्षता प्रतयक्षता नाही. धर्मनिरपेक्ष राज्यव्यवस्थेचा पुरस्कार केला असला तरी समान नागरी कायदया अभावी ही व्यवस्था निर्थक आहे घटनेत ४४ क्रमांकाच्या कलम ह्यासाठी मार्गदर्शक तत्वे म्हणून घटनाकारांनी समाविष्ट केलेले आहे पण ते केवळ शोभेचे तत्व म्हणूनच राहिले आहे.  

             मुस्लिम सुधारणावादाकडे दुर्लक्ष राज्यकर्ते सुधारणांबाबत हिंदूंच्या बाबतीत जेवढे आग्रही आहेत. तेवढे ते मुसलिमाबाबत नाहीत. असा प्रचार करण्यासाठी हिंदू राष्ट्रवादी प्रचारक यशस्वी ठरले. काही प्रश्नांवर सरकारने धरसोड भूमिका घेतली त्यामुळे हिंदू राष्ट्रवाद याना. प्रचारास संधी मिळत आहे. 

         देशनिषठा. देशातील बहुसंख्य मुस्लिमांची निष्ठा भारतावर नसून पाकिस्तान वर आहे अशी समाजात मुस्लिम धर्माबाबत अफवा केली आहे ज्यांना पाकिस्तान वर निष्ठा आहे त्यांनी तिकडेच स्थलांतर करावे असा आक्रमक प्रचार हिंदू जातीयवादी करीत आहेत

         मुस्लिम संख्या राज्यकर्ते यांनी कुटुंब नियोजन बाबत मुस्लिम धोरण शिथिल ठेवले आहे. त्याचा परिणाम म्हणजे मुस्लिम लोकसंख्या झपाट्याने वाढत आहे. हा हिंदू वर अन्याय आहे. त्यामुळे भविष्यात हिंदू हे एक दिवस अल्पसंख्याक होतील काय अशी भीती त्यांच्या मनात आहे 

      मुस्लिम धार्जिणे धोरणे देशातील हिंदूंच्या. काही मंदिरांवर मुस्लिमांनी आक्रमण करून कब्जा घेऊन मशिदी उभारल्या आहेत. त्यांचा पाडाव करून पाकिस्तान धार्जिण मुस्लिमांना धडा शिकवावा असा प्रचार होत आहे 

      स्वातंत्र्यानंतर राज्यकर्त्यांनी धर्मनिरपेक्ष व्यवस्थेचा पुरस्कार केला पण समान नागरी कायदा यातून अल्पसंख्याक यांना वगळून त्यांचे धार्मिक कायदे चालू ठेवले. ही वस्तुस्थिती आहे. मुस्लिम समाज हा आजही अल्पसंख्याक समाज आहे. देशाच्या एकूण लोकसंख्येच्या आजही त्यांचे प्रमाण ११/ टक्के एवढेच आहे. हया समाजाबद्दल राज्यकर्ते यांची भूमिका लवचिक आहे. १९८७ मध्ये शहाबानो खटल्यात सर्वोच्च न्यायालयाचा पोटगी संबंधित निवाडा धुडकावून सरकारने कायद्यात दुरुस्ती करून मुस्लिम महिलांना पोटगीचा हक्क नाकारला होता. अनेक पुरोगामी मुसलमानानी ह्या सरकारी पावित्र्याचा कडाडून विरोध केला होता. ह्यातून हिंदूत्व वादी यांना काहीसे अनुकूल वातावरण मिळाले. ह्या वातावरणाचा फायदा घेऊन समस्त हिंदूत्व वादी. धर्मनिरपेक्ष राज्यव्यवस्था मोडीत काढायला निघाले. आहेत. बाबरी मशीद सारखा नाजूक प्रश्न. साहसवादी भूमिका घेवून हिंदूत्व वादी. संघटनांनी भारताची न्याय व्यवस्था. व संसदीय व्यवस्था अमान्य केली. ६ डिसेंबर १९९२ रोजी अयोध्येत वादग्रस्त बाबरी मशीदचे संरक्षण करण्यात आपली कर्तव्ये विन्मुख हि हिंदू समाजाची सर्वोच्च सेवा असून त्यासाठी आपणं सत्ता गमावली. हौतात्म्य प्राप्त झाले असे समर्थन केले गेले. साहसवाधयाचे केवळ धर्मनिरपेक्ष व्यवस्थेला आव्हान नसून ते न्यायव्यवस्थेला आहे. हेच स्पष्ट होते. बाबरी मशीद पाडावानंतर सरकारने काही मुस्लिम वादी व हिंदूत्व वादी. संघटनांवर बंदी घातली होती परंतु बाहरी लवादाने काही संघटना वरील बंदी अवैध ठरविल्याने त्यांना मोकळीक लाभली आहे. एकंदरीत सध्याच्या परिस्थितीत हिंदूत्व वादी. संघटनांचे आव्हान वाढतं असून ते पुढेही वाढत जाईल. अशी स्थिती दिसते. अर्थात ह्या आवहानाचे उद्रेक मधून मधून दिसतील. 

            मुस्लिम समाजाच्या मनात मानसिक भयाची छाया उमटलेली दिसते. धर्मनिरपेक्ष हे सुद्धा त्यांना हिंदू जमातवादी प्रमाणे थोंताड वाटते. धर्मनिरपेक्ष म्हणजे धर्म व सनातन मूल्य बुडविणे असून त्याद्वारे आपली धार्मिक ओळख संपुष्टात येईल. अशी त्यांची समजूत करून देण्यात आलेली आहे. मुस्लिमांचा धर्मनिरपेक्षतेला होणारा निर्थक विरोध लक्षात घेऊन हिंदू जमातवादी त्याला प्रतिउत्तर म्हणून त्याचं मार्गाने बहुसंख्याकाना धर्माच्या नावाखाली संघटन करणे चालू केले आहे 

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