एम आय एम की जीत मुसलमानों को सियासत से बेदखल करने वालों के ताबूत..
डॉ० ज़फरुल इस्लाम खान
एआईएमआईएम के शानदार प्रदर्शन की सराहना करते हुए, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ० ज़फरुल इस्लाम खान ने इंडिया टुमारो से कहा है कि बिहार में एआईएमआईएम की शानदार जीत भारत के मुसलमानों को राजनीति से अलग-थलग करने और हाशिए पर पहुंचाने की कोशिश करने वालों के ताबूत में एक कील साबित हुआ है.
कांग्रेस पार्टी ने ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन और उसके नेता असदुद्दीन ओवैसी पर बिहार चुनावों में अपने उम्मीदवारों को मैदान में उतारकर भाजपा और उनके सहयोगी दलों की मदद करने का आरोप लगाया है, जबकि एआईएमआईएम ने सामाजिक और राजनीतिक रूप से प्रभावशाली प्रदर्शन कर मतदारो को प्रभावित किया है और राज्य के मुस्लिम बहुल सीमांचल क्षेत्र की पांच विधानसभा सीटें जीतने में सफल रही है.
एआईएमआईएम के शानदार प्रदर्शन की सराहना करते हुए, दिल्ली अल्पसंख्यक आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ० ज़फरुल इस्लाम खान ने इंडिया टुमारो से कहा है कि बिहार में एआईएमआईएम की शानदार जीत भारत के मुसलमानों को राजनीती से अलग-थलग करने और हाशिए पर पहुंचाने की कोशिश करने वालों के ताबूत में एक कील साबित हुआ है.
एआईएमआईएम को “वोट कटुआ” बताने वाली कांग्रेस पर नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए उन्होंने कहा, “ऐसी टिप्पणियों करना आसान है. क्या मुस्लिम मतदाताओं पर उनका एकाधिकार है? दूसरों को चुनाव लड़ने का अधिकार नहीं है? तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और वामपंथी दलों ने मुस्लिम राजनीतिक आवाज़ों को हाशिए पर डाल दिया है और अगर कोई संसद में हमारी आवाज़ उठाता है तो उसे कोई बीजेपी की बी टीम कैसे कह सकता है. ऐसी पार्टियों ने हमारे लिए क्या किया? अगर मुसलमानों को मुख्यधारा की राजनीति से दूर रखा गया है तो यह भाजपा की रणनीति है.”
उन्होंने एआईएमआईएम की जीत को मुसलमानों को हाशिए पर लाने के प्रयास के खात्में के रूप में मानते हैं. वह कहते हैं, “कुछ आवाजें ऐसी होनी चाहिए जो राज्य विधानसभाओं और संसद में मुस्लिम मुद्दों को उठा सकें.”
कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों पर कटाक्ष करते हुए, डॉ० खान ने कहा, “एआईएमआईएम नहीं बल्कि धर्मनिरपेक्ष दलों की आपसी कलह भाजपा की जीत का प्रमुख कारण है. वे धर्मनिरपेक्षता और गांधी की विचारधारा के बारे में बात करते हैं लेकिन एक दूसरे के खिलाफ चुनाव लड़ते हैं. यदि वे एकजुट होते तो भाजपा जीत नहीं पाती. इसलिए बीजेपी की जीत के लिए ओवैसी को दोषी ठहराना धर्मनिरपेक्ष दलों की हताशा के को दर्शाता है.
उन्होंने कहा, “यदि ओवैसी की पार्टी ने चुनाव लड़ा है तो यह उनका संवैधानिक अधिकार है और धर्मनिरपेक्ष दलों के लिए एक उचित जवाब है कि यदि आप हमारे मुद्दों को नहीं उठाते हैं तो और भी लोग हैं जो राज्य विधानसभाओं और संसद में मुसलमानों की आवाज़ उठाएंगे.”
डॉ० खान ने ट्वीट किया है, बिहार में एआईएमआईएम की जीत भारत के मुसलमानों को राजनीति से बेदखल करने और हाशिए पर पहुंचाने की कोशिश करने वालों के ताबूत में एक कील है. ओवैसी को एक नया बिहार और संभवतः एक नया भारत बनाने में मदद करने के लिए बधाई.”
लखनऊ स्थित वरिष्ठ अधिवक्ता ज़फ़रयाब जिलानी, जो बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी के साथ जुड़े रहे हैं, ने कहा कि मुसलमानों ने हमेशा कांग्रेस का समर्थन किया जिसकी वजह से केंद्र और राज्यों में सत्ता हासिल हुई लेकिन इसने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया. मुसलमान अभी भी गुजरात, राजस्थान, कर्नाटक, मध्य प्रदेश और यहां तक कि केरल जैसे राज्यों में कांग्रेस का समर्थन कर रहे हैं क्योंकि इन राज्यों में मुसलमानों के लिए यह बेहतर विकल्प है. उन्होंने कहा कि, “मुसलमानों को बिहार में एआईएमआईएम में बेहतर विकल्प मिला और उन्होंने उसे वोट किया. लोकतंत्र में हर एक को चुनाव लड़ने का अधिकार है.”
ऑल इंडिया मुस्लिम मजलिस मुशावरत (एआईएमएमएम) के अध्यक्ष नावेद हामिद ने कहा, “भारतीय संविधान ने हर व्यक्ति को एक राजनीतिक पार्टी बनाने और चुनाव लड़ने का अधिकार दिया है. फासीवादी ताकतें, जो दिन-प्रतिदिन मज़बूत होती जा रही हैं वह फासीवादी विचारधारा का विरोध करने वाले धर्मनिरपेक्ष दलों से सवाल कर रही हैं. लेकिन बिहार चुनाव ने संकेत दिया है कि वह समय आ गया है, जब धर्मनिरपेक्ष दलों को मुस्लिम मतदाताओं के प्रति अपनी नीतियों की समीक्षा करनी होगी और आत्मनिरीक्षण करना होगा कि मुसलमान उनसे क्यों दूर हो रहे हैं.”
वरिष्ठ पत्रकार और ईसाई कार्यकर्ता जॉन दयाल ने इंडिया टुमारो से बात करते हुए कहा कि, “लोकतंत्र में हम किसी भी पार्टी को चुनाव में हिस्सा लेने से नहीं रोक सकते. एआईएमआईएम मुख्य रूप से मुस्लिम वोटों पर फोकस कर रही है. यह देश के किसी भी हिस्से में चुनाव लड़ेगा वह केवल उन विशेष वोटों को ही प्रभावित करेगा. इसलिए, इसका मकसद सत्ता के लिए बार्गेन करना है.”
उन्होंने कहा, “अपने मकसद के लिए अगर एआईएमआईएम कुछ दलों के वोटों में कटौती कर रही है, तो यह उन पार्टियों का दुर्भाग्य है. मुझे लगता है कि लोकतंत्र में किसी भी पार्टी को ‘वोट कटर’ कहना निंदनीय है. मैं इसे बीजेपी की बी टीम नहीं कहूंगा क्योंकि इससे मुस्लिम युवाओं की आकांक्षाओं को ठेस पहुंचेगी जो सोचते हैं कि राजनीति में मुसलमानों का कोई विकल्प नहीं है. कोई भी व्यक्ति, जो ओवैसी को वोट देता है, वह कांग्रेस, राजद, वाम दल, या जदयू को वोट नहीं देगा. ओवैसी हिंदू विरोधी नहीं हो सकते हैं लेकिन हिंदू उनके लिए प्रतिरोधी हैं.”
पूर्व आईपीएस अधिकारी, सामाजिक कार्यकर्ता और राजनीतिज्ञ एसआर दारापुरी बिहार में एआईएमआईएम की जीत को ओवैसी के लिए उपलब्धि मानते हैं, लेकिन इसे काउंटर प्रोडक्टिव के रूप में भी देखते हैं.
दारापुरी कहते हैं, “समुदाय और जाति-आधारित राजनीति हमेशा काउंटर प्रोडक्टिव होती है. मुस्लिमों को गठबंधन बनाने में पुनर्विचार करना चाहिए और समझना चाहिए कि भाजपा को लोकतांत्रिक ताकतों के ज़रिए हराया जा सकता है न कि साम्प्रदायिकता के ज़रिए. निश्चितरूप से एआईएमआईएम के उदय से भाजपा मज़बूत होगी.”
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एम आय एम की जीत मुसलमानों को सियासत से बेदखल करने वालों के ताबूत में एक कील है: डॉ० ज़फरुल इस्लाम
क्या ओवैसी ने बंगाल में चुनाव लड़ने की घोषणा कर के अन्य पार्टियों की चिंता बढ़ा दी हैं?
क्या ओवैसी की जीत मुस्लिम नेतृत्व वाली पार्टियों को अछूत समझने वालों के लिए एक सबक है?
https://www.videosprofitnetwork.com/watch.xml?key=8918e3ebc1d8b81261ae6dde0667357dपढिये -
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