"मलिक अंबर" एक हबशी गुलाम था.एक हबशी गुलाम से लेकर निजा़मशाही के रक्षक तक का उसका सफर किसी फिल्म के किरदार से कम नही रहा.ई स 1600 मे चांद बी बी की अचानक हत्या के बाद अहमदनगर की निजा़मशाही का अस्तित्व ही खतरे मे आ गया,उसी वक्त मलिक अंबरने ई स1601 से 1626 तक अपने शौर्य,युध्द कौशल्य,युध्द निती,बुध्दीमत्ता और चातुर्य के बल पर सतत 26 वर्षो तक निजा़मशाही की मुगल और आदिलशाह जैसे बलवान शासको से रक्षा की.
मलिक अंबर का जन्म ई स 1546-1549 के बीच हरार(इथोपिया-अफ्रिका) के एक गरीब *हबशी(Abyssinian* ) घर मे हुआ.'मिर कासिम' नामक व्यापारी ने बगदाद के एक बाजा़र मे मलिक अंबर को गुलाम की हैसियत से खरीदा और उसे निजा़मशाही सरदार ' *चंगेज़ खान'* को बेचा(चंगेज़ खानी महल-अहमदनगर का जुना कोर्ट).चंगेज़ खान मलिक अंबर की ईमानदारी और बुध्दीमत्ता से बहोत प्रभावित हुआ.चंगेज़ खान की मृत्यु के बाद मलिक अंबर गुलामी से आजा़द हो गया और वो आदिलशाही सैन्य मे शामिल हो गया.वहा उसके वर्ण का द्वेष करने वाले वहोत लोग थे इसलिए वो वापस अहमदनगर आया और निजा़मशाही सैन्य मे एक मामुली सिपाही की तौर पर शामिल हो गया.अपने शौर्य के बल पर जल्द ही वो 150 घोडस्वारो का प्रमुख बन गया.ई स 1600 मे चांद बीबी की अचानक हत्या के बाद अहमदनगर मुगलो के हाथ मे आ गया लेकिन निजा़शाही के दुसरे ईलाको पर अभी भी निजा़मशाही का कब्जा़ था.दौलताबाद,नाशिक की तरफ से मियाँ राजु और दक्षिण की ओर तेलंगाणा से मलिक अंबर ने निजामशाही फौज की कमान संभाली.दोनो ने मुगलो के सामने surrender करने से इंकार कर दिया.मलिक अंबरने निजा़मशाही वंशज एक बच्चे( *मुर्तुजा़ निजा़मशाह2* ) को राजा घोषित कर प्रथम परंडा फिर जुन्नर और अंत मे दौलताबाद को निजा़मशाही की राजधानी बनायी.
मलिक अंबरने ' *गनिमी* *कावा'(Guerrilla warfare)* का युध्द मे पहेली बार उत्कृष्ट उपयोग करके मुगलो को बार बार पराजित किया.मुगल राजकुमार दानियल,परवेज़,खुर्रम,शाहजहाँ इनहोने निजा़मशाही पर कब्जा़ करने की हर मुमकिन कोशिश की लेकिन मलिक अंबरने उन्हे हमेशा नाकाम किया.मलिक अंबर के साथ शाहजी,शरफोजी,मालोजी,परसोजी,त्र्यंबकजी,माधवजी,दत्ताजी जैसे शूर मराठा योध्दा थे.
ई स 1612 मे मलिक अंबरने दौलताबाद के करीब एक सुंदर और well planned शहर की स्थापना *'खडकी'(आज का *_औरंगाबाद_* ) ये नाम से की.आज भी औरंगाबाद मे उसके architecture को देखा जा सकता है.
मलिक अंबर मस्लिम था लेकिन वो दुसरे धर्मो का भी बहोत आदर करता था.अपने शासन काल मे मलिक अंबर ने खेती,architecture और अन्य व्यवसाय को बढावा दिया.खेती के बागायती और जिरायती ये विभाग पहेली बार मलिक अंबरने किये.
*_भातोडी का युध्द-_*
भातोडी का युध्द मलिक अंबर के असाधारण युध्दकौशल्य और शौर्य का प्रतिक माना जाता है.october 1624 को ये युध्द अहमदनगर शहर से 20 कि मि पूर्व भातोडी नामक स्थल पर हुआ था.एक तरफ मुगल,आदिलशाही,कुतुबशाही संयुक्त विशाल सेना थी तो दुसरी ओर छोटी निजा़मशाही फौज.इस युध्द मे मलिक अंबर ने असाधारण जीत हासिल की.इसी युध्द मे शिवाजी महाराज के पिता *शाहजी भोसले* ने विशेष शौर्य दिखाया.इस जीत के बाद मलिक अंबर ने निजा़मशाही का चारो ओर विस्तार किया.
*मृत्यु-*
भातोडी युध्द की पराजय के बाद मुगल और आदिलशाह मलिक अंबर से डर गए.इसी वक्त उसने निजा़मशाही राज्य का सब से अधिक विस्तार किया.अपने career के उच्छ शिखर पर रहेते हुए 80 साल की आयु मे वार्धक्य से मलिक अंबर का निधन *अंबरापुर* (अहमदनगर पूर्व 46km,ता.शेवगाँव) नामक स्थान पर 14 मे 1626 को हुआ.कबर खुलदाबाद मे है.
*लेखक*
*डॉ.खालिद अंबेकर*
*एम डी (आयुर्वेद)*
*अहमदनगर*
*मो.9881786198*
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Nice
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