अहमदनगर की निज़ाम शाही....….AHMEDNAGAR NIZAM SHAHI

 अहमदनगर की निज़ाम शाही....….

अहमदनगर -

अहमद निज़ामशाह का असल नाम मलिक अहमद था। वह कुछ वर्षों तक बहमनी वंश के सुल्तान महमूद के अधीन पूना के निकट जुन्नर के हाकिम रहे।

वह बीदर के दक्खिनी मुसलमानों के दल के नेता निज़ामुल मुल्क बहरी के बेटे थे। अपने पिता की मृत्यु के बाद मलिक अहमद ने बहमनी राज्य के आख़िरी सुल्तान महमूद (1482-1518 ई.) को हराकर अपने स्वतन्त्र राज्य की स्थापना की और अपनी राजधानी का नाम अहमदनगर रखा।

उन्होंने अपना नाम अहमद निज़ामशाह और अपने राजवंश का नाम निज़ामशाही रखा। 1499 ई. में उन्होंने देवगिरी अथवा दौलताबाद क़िले को जीतकर उस पर अपना अधिकार कर लिया और इस प्रकार अपने राज्य को मज़बूत बनाया।

उन्होंने 1506 ई. तक राज्य किया। उसकी मृत्यु 1508 ई. में हुई।


अहमदनगर के प्रमुख शासक...


बुरहान निजामशाह – मलिक अहमद की मृत्यु के बाद उनका सात वर्षीय पुत्र बुरहान शासक बना। सौभाग्य से उसे मुकम्मल खाँ दक्किनी के रूप में एक योग्य प्रधानमंत्री प्राप्त हुआ। अहमद नगर के सुल्तानों में बुरहान पहलेे शासक थे जिसने निजामशाह की उपाधि धारण की।


हुसैन निजामशाह – इनके शासन काल को दक्कन के इतिहास में एक युगांतकारी युग के रूप में स्वीकार किया जाता है। 1562ई. में बीजापुर के आदिशाह, गोलकुण्डा के इब्राहीम कुतुबशाह और विजयनगर के रामराय की संयुक्त सेनाओं ने अहमद नगर पर आक्रमण किया। इस सैनिक मोर्चे का निर्माता विजयनगर का रामराय था। इन संयुक्त सेनाओं ने आम तौर पर अहमदनगर के निवासियों और विशेष रूप से मुसलमानों को बुरी तरह लूटा। हुसैन निजामशाह 1565ई. में विजयनगर के विरुद्ध मुस्लिम संघ में सम्मिलित था।


मुर्तजा निजामशाह – यह हुसैन निजामशाह के उत्तराधिकारी थे। इनके शासनकाल में मुगलों ने पहली बार अहमदनगर पर आक्रमण किया।

बुरहान- यह मुगल सम्राट अकबर के दरबार में बंधक था। इसे बीजापुर के सुल्तान इब्राहीम आदिलशाह द्वितीय द्वारा पराजित होना पङा । दूसरी सबसे बङी विफलता इसकी यह थी कि कि यह पुर्तगालियों से चौल को पुनर्विजित नहीं कर सका।ऐतिहासिक ग्रंथों के संदर्भ में उसके शासन काल में बुरहान – ए – मआसिर नामक ऐतिहासिक ग्रंथ की रचना हुई।


चाँदबीबी- इनका विवाह बीजापुर के शासक अली आदिलशाह के साथ हुआ था। अपने पति की मृत्यु के बाद वह पुन: अहमदनगर वापस लौट आयी और अहमदनगर की राजनीति में बङी स्मरणीय भूमिका का निर्वाह किया। बुरहान की मृत्यु के बाद उसका पुत्र इब्राहीम शासक बना जिसने केवल चार माह तक ही शासन किया। इस काल में अहमदनगर की स्थिति अत्यंत विवाद ग्रस्त थी, क्योंकि निजामशाही अमीर वर्ग के चार गुटों द्वारा दावेदारों ने गद्दी के लिए अपने दावे प्रस्तुत किये जिसमें एक का समर्थन मियाँ मंझू (दक्कनी) ने किया और दूसरे पक्ष का चाँदबीबी ने किया। जब मियाँ मंझू ने अपने समर्थन की स्थिति संकटग्रस्त देखी तो उसके मुगल सम्राट अकबर के पुत्र मुराद को अपनी सहायता के लिए आमंत्रित किया। इस आमंत्रण के प्रत्युत्तर में मुराद ने अपनी सेनाओं सहित अहमद नगर की ओर प्रस्थान किया। चाँदबीबी ने बहादुरी के साथ अहमदनगर के प्राचीर की रक्षा की। किन्तु अंत में उसे मुगलों से समझौता करना पङा तथा बरार क्षेत्र मुगलों को समर्पित कर दिया।




मलिक अंबर – अहमदनगर की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष के नाटक के अगले दृश्य का नायक मलिक अंबर था जो मूलत: एक अबीसीनियाई दास था, जिसे तीन बार दासता से मुक्त किया जा चुका था और बाद में वह अहमदनगर का एक प्रमुख वजीर बन गया। उसने मुर्तजा द्वितीय को सुल्तान घोषित किया और स्वयं अहमदनगर की कमान संभाली। उसने मुगलों के सम्मुख नतमस्तक न होने का संकल्प लिया था। मलिक अंबर अहमदनगर को केन्द्र बनाकर छापामार युद्ध प्रणाली के द्वारा मुगल प्रदेशों पर बार-2 आक्रमण किये। मुगलों के विरुद्ध उसका यह प्रतिशोध काफी लंबे सलय तक चलता रहा, किन्तु 1617 तथा 1621ई. में वह खुर्रम के हाथों पराजित हुआ। मलिक अंबर ने दक्षिण में टोडरमल की भूमि व्यवस्था के आधार पर रैय्यतबाङी (जाब्ती प्रणाली) व्यवस्था लागू की तथा भूमि को ठेके (इजारा) पर देने की प्रथा को समाप्त कर दिया। अंत में 1633ई. में मुगल सम्राट शाहजहाँ ने अहमदनगर को मुगल साम्राज में मिला लिया.

फिरोज शेख 

07272204782

(अहमदनगर महाराष्ट्र)

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